शास्त्रों के अनुसार माना जाता है और हमने कई बार सुना भी है की नवरात्रि में दुर्गा पूजा व मूर्ति निर्माण में 10 जगहों की मिट्टी का उपयोग किया जाता है। इसके पीछे धार्मिक व पौराणिक दोनों ही महत्व है जिसके कारण देवी की मूर्ति पूजा में इनका प्रयोग करने की मान्यताएं हैं। इस समय देशभर में नवरात्रि के लिए मां दूर्गा की मूर्ति निर्माण का कार्य शुरु हो चुका है। लगभग देश के सभी हिस्सों में नवरात्रि की धूम देखी जाती है लेकिन बंगाल राज्य में इसका अधिक महत्व माना जाता है। इस वर्ष नवरात्रि 10 अक्टूबर से शुरू हो रही है। इस दौरान देवी की भक्ति में 9 दिनों तक सभी भक्त मां दूर्गा की आराधना करते हैं।
इसलिए किया जाता है इन मिट्टि का प्रयोग
10 जगहों मिट्टी प्रयोग करने का पौराणिक महत्व बताया गया है। देवीभाग्वत् पुराण के अनुसार सभी देवों और प्रकृति के अंश से मां दुर्गा का तेज प्रकट हुआ था। इसलिए देवी दूर्गा की मूर्ति के निर्माण में दस जगहों की मिट्टी का प्रयोग करने की परंपरा चली आ रही है। इसके अलावा भी इसका एक कारण है मां दुर्गा की पूजा में सभी की समान भागीदारी के लिए भी सभी स्थानों की मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। पुराणों के अनुसार, अनुष्ठानों के लिए दस मृतिका की आवश्यकता होती है। दस मृतिका, दस जगहों से लाई गई मिट्टी के मिश्रण को कहा जाता है। इसे प्रतिमा निर्माण के लिए प्रयोग किए जाने वाली मिट्टी में मिलाकर मूर्ति निर्मित की जाती है। आइए जानते हैं उन 10 प्रमुख स्थानों के बारे में जहां की मिट्टी से होता है दुर्गा जी की मूर्ति का निर्माण।
इन महत्वपूर्ण 10 जगहों की मिट्टी का होता है उपयोग
मूर्ति पूजा के लिए वेश्यालय के आंगन की मिट्टी की जरूरत होती है, यह बात ज्यादातर लोग जानते हैं। लेकिन इसके 9 अन्य स्थान इस तरह से हैं- पहाड़ की चोटी, नदी के दोनों किनारों, बैल के सींगों, हाथी के दांत, जंगली जानवर की ऐड़ी, दीमक के ढेर, किसी महल के मुख्य द्वार, किसी चौराहे और किसी बलि भूमि की मिट्टी लाई जाती है। पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा पूरे देश में प्रसिद्ध है। इस दौरान यहां पूर्ण विधि-विधान से देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। कोलकाता में पूजा के लिए रेड लाइट एरिया सोनागाछी से वेश्यालय के आंगन की मिट्टी लाने की परंपरा रही है।
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