देव उठनी एकादशी के दिन इन तीन की पूजा किए बिना अधूरा ही रहता हैं देव उठनी एकादशी का व्रत

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान श्री विष्णु जी के योगनिद्रा से जागते ही, इसी दिन से सभी मंगल कार्यों का शुभारंभ हो जाते हैं । प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी, देवठान एकादशी आदि के नाम से जानी जाती हैं । इस दिन व्रत रखने से अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होती हैं । औऱ अगर इस दिन इन तीन देवताओं की पूजन एक साथ नहीं किया जाता तो इसका व्रत अधूरा ही माना जाता है । इस साल देव उठनी ग्यारस 19 नवंबर 2018 दिन सोमवार को है ।
देवों के सोने और जागने का अंतरंग संबंध आदि नारायण भगवान सूर्य वंदना से हैं, क्योंकि सृष्टि की सतत क्रियाशीलता सूर्य देव पर ङी निर्भर है, सभी मनुष्य की दैनिक व्यवस्थाएं सूर्योदय से निर्धारित मानी जाती हैं । चूंकि प्रकाश पुंज होने के नाते सूर्य देव को भगवान श्री विष्णु जी का ही स्वरूप माना गया है, इसलिए तो प्रकाश को ही परमेश्वर की संज्ञा दी गई हैं । इसलिए देवउठनी एकादशी पर विष्णु सूर्य के रूप में पूजे जाते हैं, जिसे प्रकाश और ज्ञान की पूजा कहा जाता है ।

 

इन तीन की पूजा अनिवार्य होती है


देव उठनी ग्यारस असल में विश्व स्वरूपा भगवान श्री विष्णु के श्रीकृष्ण वाले विराट रूप की पूजा की जाती हैं । इस दिन विशेष रूप से श्री तुलसी, श्री विष्णु एवं श्री सूर्य नारायण की पूजा की जाती हैं । जो भी श्रद्धालु इस दिन व्रत रखकर विधिविधान से इन तीनों को पूजन करते है उनकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं । विशेष रूप से पुराणों में सूर्योपासना का उल्लेख मिलता है और इस दिन बारह आदित्यों के नामों के जप करने का भी उल्लेख हैं । बारह आदित्य- इंद्र, धातृ, भग, त्वष्ट, मित्र, वरुण, अयर्मन, विवस्वत, सवितृ, पूलन, अंशुमत एवं विष्णु जी । देवउठनी एकादशी से तुलसी विवाह व तुलसी पूजन का भी विधान है ।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2PFyJWw
Previous
Next Post »