प्रयाग कुंभ मेला 2019 जाने शाही स्नान की तिथि और महत्व, कुंभ भूमि में प्रवेश मात्र से नष्ट हो जाते हैं सारे पाप

नये साल 2019 में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम प्रयागराज में कुंभ मेला लगने जा रहा है । हिन्दू धर्म में सबसे अधिक महत्वपूर्ण पवित्र कुंभ मेला प्रत्येक 12 साल में एक बार लगता हैं । पवित्र कुंभ मेला में देश ही नहीं बल्की पूरी दुनिया से श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में स्नान कर पुण्य के भागी बनने के लिए आते हैं । प्रयागराज कुंभ नये साल में 14 जनवरी 2019 से शुरू होकर मार्च 2019 तक चलेगा । जाने कुंभ के स्नान की पूर्ण जानकारी एवं महत्व के बारे में विस्तार से सिर्फ पत्रिका डॉट कॉम पर ।

 

 

कुंभ मेला
साल 2019 में 14 जनवरी मकर संक्रांति के दिन से 12 साल बाद उत्तरप्रदेश के प्रयागराज तीर्थ स्थल पर जहां पर तीन पवित्र नदियों- गंगा, यमुना एवं सरस्वती का संगम होता के तट पर शुरु होगा । कुंभ स्नान के बारे में कहा जाता हैं कि कुंभ मेला के दौरान जो भी योग बनता है उसे ही कुंभ शाही स्नान योग कहते हैं । ऐसी धार्मिक मान्यता कि कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान करने से ज्ञात अज्ञात सभी पाप तापों से मुक्ति मिल जाती हैं साथ स्नान करने वाले को मोक्ष भी मिलता हैं । शास्त्रों में कहा गया हैं कि कुंभ मेले के दौरान गंगा का अमतृमय जल दिव्य औषधियों से युक्त भी हो जाता हैं और कुंभ स्नान करने वाले के अनेक सुक्ष्म व स्थुल रोगों का नाश भी हो जाता हैं ।

 

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कुंभ के बारे में बड़े बड़े ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि बृहस्पति और सूर्य ग्रह की स्थिति के आधार पर ही देव भूमि भारत के विभिन्न पवित्र तीर्थ स्थलों पर कुंभ मेले का आयोजन होता हैं । ग्रह नक्षत्रों की चाल के अनुसार अनुसार, हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में सदियों से पूर्ण कुम्भ या फिर अर्ध कुंभ मेले का आयोजन होता है, और खगोल गणनाओं के आधार पर कुंभ मेला मकर संकांति के दिन प्रारम्भ होता हैं ।

 

शाही कुंभ स्नान की तिथियां

1- मकर संकांति - 14 एवं 15 जनवरी 2019 सोमवार एवं मंगलवार
2- पौष पूर्णिमा- 21 जनवरी 2019 सोमवार
3- पौष एकादशी स्नान- 31 जनवरी 2019 गुरुवार
4- मौनी अमावस्या- 4 फरवरी 2019 सोमवार
5- बसंत पंचमी- 10 फरवरी 2019 रविवार
6- माघी एकादशी- 16 फरवरी 2019 शनिवार
7- माघी पूर्णिमा 19 फरवरी 2019 मंगलवार
8- महाशिवरात्रि 04 मार्च 2019 सोमवार

 

कुंभ की पौराणिक कथा
कुंभ मेले के बारे में एक अति प्राचीन मान्यता हैं कि- एक बार देवताओं से रूष्ठ होकर महर्षि दुर्वासा देवताओं को शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया, जिस कारण सभी देव गण शक्ति के अभाव में कमजोर हो गए, और इसी का फायदा उठाकर असुरों ने देवताओं पर आकमण कर उन्हें परास्त कर दिया । तभी भगवान श्रीविष्णु ने देवों की सहायता के लिए असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया, और उसी मंथन से अमृत से भरा कुंभ निकला । लेकिन असुरों ने अमृत कुंभ पर अधिकार कर आकाश में उड़ गए और उनके पीछे देवता भी पीछा करने लगे और उनके बीच बारह दिनों तक युद्ध हुआ उसी युद्ध के दौरान कुंभ (कलश) से अमृत की कुछ बूंदे धरती के चार स्थानों पर- प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं । तभी से इन चारों स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होने लगा ।

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