देवी दुर्गा के नौ रुपों के लगभग पूरे भारत में मंदिर बने हुए हैं और उन्हीं प्रसिद्ध मंदिरों में से एक मंदिर राजस्थान के सांभर कस्बे में स्थित हैं। सांभर जयपुर से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां मां दुर्गा का शाकंभरी रुप स्थापित है। वैसे तो दुर्गा जी के इस रुप के देशभर में कई मंदिर है, लेकिन यह मंदिर बहुत ही खास और प्रसिद्ध माना जाता है। सांभर का नाम भी मां शाकंभरी के तप के कारण ही पड़ा। लेकिन नमक झील और मंदिर से जुड़ी कुछ खास बाते हैं जो की मंदिर की खासियत बताते हैं....
इस वजह से मां का नाम पड़ा शाकंभरी
देवीभाग्वतपुराण के अनुसार राक्षसों के दुष्प्रभाव के कारण एक बार पृथ्वी पर अकाल पड़ गया था। जिसके बाद सभी देवताओं और मनुष्यों नें आदिशक्ति की आऱाधना की और उसके बाद मां ने सभी की प्रार्थान स्वीकार कर मां आदिशक्ति ने नव रूप धारण करके पृथ्वी पर दृष्टि डाली और उनकी दिव्य ज्योति से बंजर धरती में भी शाक उत्पन्न हो गई। इन्हीं शाक को खाकर सभी ने अपनी भूख मिटाई। यही कारण है की मां का नाम शाकंभरी पड़ा।
चौहान वंश ने की थी मंदिर की स्थापना
माना जाता है की चौहान वंश के शासक वासुदेव द्वारा इस मंदिर की स्थापना सातवीं सदी में झील और सांभर नगर में की गई थी। सांभर के शाकंभरी माता मंदिर में जो प्रतिमा लगी है, उसके बारे में कहा जाता है कि यह मां शक्ति की कृपा से प्रकट हुई स्वयंभू प्रतिमा है। मां शाकंभरी चौहान वंश की कुलदेवी भी मानी जाती हैं। सांभर में होने वाली कोई भी पूजा मां के आशीर्वाद के बीना नहीं होती। माना जाता है की हर शुभ कार्य को करने से पहले मां का आशीर्वाद लिया जाता है।
ऐसे हुई थी सांभर झील की उत्पत्ति
स्थानीय लोगों का कहना है की मां शाकंभरी के तप से ही यहां अपार संपदा उत्पन्न हुई थी। इसलिए मनुष्य लालच के कारण आपस में लड़ने लगे थे। जब इस समस्या ने विकट रूप ले लिया तो मां ने अपनी शक्ति से उस सारी संपदा को नमक में परिवर्तित कर दिया। यही कारण है की जिससे सांभर झील की उत्पत्ति हुई थी।
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