कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव की पूजा का विधान है। हर साल वैशाख माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी पर्व मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 26 अप्रैल, शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। कालाष्टमी के मौके पर देशभर के भैरव मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। वहीं उत्तरप्रदेश के काशी में बाबा भैरवनाथ का मंदिर बहुप्रसिद्ध है। कहा जाता है की बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी भगवान शिव की नगरी है, लेकिन यहां बाबा भैरवनाथ कोतवाल कहलाते है। मान्यताओं के अनुसार बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को भैरवनाथ के दर्शन करना जरुरी होता है, अन्यता विश्वनाथ के दर्शन अधूरे माने जाते हैं। कालाष्टमी के दिन भैरवनाथ मंदिर में बड़ी धूमधाम व विशेष पूजा होती है। इस दिन मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। आइए जानते हैं बाबा भैरवनाथ मंदिर के बारे में कुछ खास बातें....
बाजीराव पेशवा ने बनवाया था मंदिर
बाजीराव पेशवा ने सान् 1715 में दोबारा इस मंदिर को बनवाया था। वास्तुशास्त्र के मुताबिक, ये मंदिर आज तक वैसा ही है। इसकी बनावट में कभी कोई बदलाव नहीं किया गया। मंदिर की बनावट तंत्र शैली के आधार पर है। ईशानकोण पर तंत्र साधना करने की महत्वपूर्ण स्थली है।
इसलिए कालभैरव करते हैं काशी की रखवाली
भगवान शिव की नगरी कही जाने वाली काशी के बाबा भैरवनाथ कोतवाल भी हैं। जी हां, भैरवनाथ को काशी का कोतवाल कहा जाता है। कथाओं के अनुसार, काल भैरव ने ब्रह्म हत्या के पापा से मुक्ति के लिए काशी में रहकर तप किया था। शिवजी ने काल को आशीर्वाद दिया कि तुम इस नगर के कोतवाल कहलाओगे। बस तभी से काल भैरव इस नगरी की रखवाली करते हैं और जहां बाबा भैरव ने तप किया था, आज वहां काल भैरव का मंदिर स्थापित है।
काशी में यमराज को भी काल भैरव से लेनी पड़ती है अनुमति
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काशी में मृत्यु देने से पहले यमराज को काल भैरव से अनुमति लेनी पड़ती है। भैरव की अनुमति के बिना काशी में यमराज भी कुछ नहीं कर सकते हैं। जीवन में ग्रहों की स्थिति खराब हो या फिर मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती हो। ऐसे में काल भैरव का दर्शन करने से सारी बाधा दूर हो जाती है।
औरंगजेब ने जब काल भैरव मंदिर पर किया था हमला
बताया जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल में जब काशी के विख्यात बाबा विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया गया, तब भी कालभैरव का मंदिर पूरी तरह अछूता बना रहा था। कालभैरव का मंदिर तोड़ने के लिए जब औरंगजेब के सैनिक वहां पहुंचे तो अचानक पागल कुत्तों का एक पूरा समूह कहीं से निकल पड़ा था। उन कुत्तों ने जिन सैनिकों को काटा वे तुरंत पागल हो गए और फिर स्वयं अपने ही साथियों को उन्होंने काटना शुरू कर दिया। बादशाह को भी अपनी जान बचाकर भागने के लिए भागना पड़ा। उसने अपने अंगरक्षकों द्वारा अपने ही सैनिक सिर्फ इसलिए मरवा दिये की पागल होते सैनिकों का सिलसिला कहीं खुद उसके पास तक न पहुंच जाए। शास्त्रों के अनुसार, बाबा भैरव की सवारी कुत्ता है। बताया जाता है ये कुत्ते भैरवजी की सेना ही थी, जिससे मंदिर को कुछ नहीं हुआ। इस घटना के बाद काशी के कोतवाल की महिमा दूर-दूर तक फैल गई।
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal http://bit.ly/2GHRiDk
EmoticonEmoticon