पंच केदार का रहस्य: देश के इस मंदिर में होती है केवल भगवान भोलेनाथ के मुख की पूजा

सनातन धर्म में भगवान शिव प्रमुख देवों में से एक हैं। फिर चाहे वह आदि पंच देवों की बात हो या त्रिदेवों की भगवान शंकर इन सभी में आते हैं। दरअसल सनातन धर्म में जहां जीवन की उत्पत्ति का श्रेय ब्रह्मा को दिया जाता है, वहीं उत्पन्न जीवों को पालने का दायित्व श्री हरी विष्णु और अंत में इनके संहार का दायित्व भगवान शिव का माना गया है।

ऐसे में भारत के हर राज्य में आपको भगवान शंकर के मंदिरों के दर्शन हो ही जाएंगे। भारत के इन्हीं राज्यों में से एक राज्य ऐसा भी है, जहां के कई धार्मिक स्थलों पर भगवान के साक्षात दर्शन होते से प्रतीत होते हैं। ऐसे में आज हम भगवान शंकर के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां केवल भगवान भोलेनाथ के मुख की पूजा होती है। जबकि बाकि शरीर की पूजा दूसरे राष्ट्र में होती है।

 

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दरअसल देश का पहाड़ी राज्य उत्तराखंड भी आध्यात्म का केन्द्र है, जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे में हम आपको उत्तराखंड में स्थित भोलेनाथ के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो अति प्राचीन व भोलेनाथ के भक्तों की आस्था का केन्द्र है।

पंच केदारों में से एक रुद्रनाथ मंदिर
प्राचीन मंदिर पंच केदारों में से एक केदार रुद्रनाथ मंदिर कहलाता है। भगवान शिव को समर्पित रुद्रनाथ मंदिर समुद्रतल से 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव के मुख की पूजा होती है। यहां सबसे अधिक हैरान करने वाली बात यह है कि भगवान शिव के मुख को छोड़कर बाकी शरीर की पूजा नेपाल के काठमांडू में की जाती है।

Only Lord shiv mouth is worshiped in this temple

यह स्थान पशुपतिनाथ मंदिर के नाम से भी विख्यात है। रुद्रनाथ मंदिर देश के अन्य शिव मंदिरों से इसलिए भी अलग है क्योंकि अन्य शिव मंदिरों में जहां भगवान शिव के-लिंग की पूजा की जाती है, वहीं इस मंदिर में भगवान शिव के मुख की पूजा होती है। इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव के मुख को ‘नीलकंठ महादेव’ कहा जाता है। यह रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है।

इसलिए है पंचकेदार के शामिल
कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने पाप से मुक्ति पाना चाहते थे इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को भगवान शंकर की शरण में जाने की सलाह दी। लेकिन अपने ही कुल का नाश करने के कारण भगवान शिव पांडवो से नाराज थे। जब पांडव वाराणसी पहुंचे तो भगवान शिव गुप्तकाशी में आकर छिप गए। पांडवों के गुप्तकाशी पहुंचने पर भोलेनाथ केदारनाथ पहुंच गए और बैल का रूप धारण कर लिया। इसके बाद पांडवो ने भगवान शिव से आर्शीवाद प्राप्त किया।

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मान्यता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ का ऊपरी हिस्सा “काठमाण्डू” में प्रकट हुआ, जिसे पशुपतिनाथ कहा जाता है। साथ ही भगवान शिव की भुजाओं का तुंगनाथ में, नाभि का मध्यमाहेश्वर में, बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप का श्री केदारनाथ में पूजन होता है। इसके अलावा भगवान शिव की जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई और मुख रुद्रनाथ में। इन पांच स्थानों को “पंचकेदार” कहा जाता है। इन्हीं में से एक है ‘रुद्रनाथ मंदिर’।

दुर्लभ पाषाण मूर्ति के होते हैं दर्शन
‘रुद्रनाथ मंदिर’ के पास ही विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में भगवान शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति के दर्शन होते हैं। भगवान शिव गर्दन टेढ़े किये हुए अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। मान्यता है कि भोलेनाथ की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है और आज तक इसकी गहराई का पता नहीं लग सका है। मंदिर के नजदीक वैतरणी कुंड में विष्णु जी के दर्शन होते हैं। मंदिर के पास ही नारद कुंड है, जहां यात्री स्नान करने के बाद भोलेनाथ के दर्शन करते हैं।

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गोपेश्वर से शुरू होती है यात्रा
भोलेनाथ के प्राचीन मंदिर रुद्रनाथ की यात्रा ऐतिहासिक स्थल गोपेश्वर से शुरू होती है। इस स्थान पर प्राचीन गोपीनाथ मंदिर के दर्शन भी होते हैं। इस मंदिर में एक लौह त्रिशूल भी विशेष रूप से दर्शनीय है। यात्रा के दौरान श्रद्धालु इस पावन लौह त्रिशूल के दर्शन जरूर करते हैं। गोपेश्वर से सगर गांव तक बस के द्वारा पहुंचा जाता है। इसके बाद की यात्रा पैदल करनी पड़ती है। सगर गांव से लगभग 4 किलोमीटर की चढ़ाई करने के बाद मुख्य यात्रा शुरू होती है।

यह यात्रा पुंग बुग्याल से आरम्भ होती है। बुग्याल मुख्य रूप से हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है। बुग्यालों व चढ़ाइयों को पार करने के बाद पित्रधार नामक स्थान आता है, जहां भगवान शिव व माता पार्वती के साथ ही नारायण मंदिर है। इस स्थान पर यात्री अपने पितरों के नाम के पत्थर रखते हैं। पित्रधार पहुंचने के बाद चढ़ाई खत्म होती है और उतर शुरू हो जाता है। यहां से 10-11 किलोमीटर चलने के बाद पावन स्थान ‘रुद्रनाथ मंदिर’ के दर्शन होते हैं।

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ऐसे पहुंचे मंदिर तक...
परंपरा के अनुसार रुद्रनाथ के कपाट खोले व बंद किए जाते हैं। सर्दी के मौसम में छह महीने के लिए नीलकंठ महादेव की गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में स्थापित की जाती है। इसी स्थान पर ही इन छह महीनों तक भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है। रुद्रनाथ की यात्रा मई महीने में आरंभ होती है। रुद्रनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले आपको ऋषिकेश जाना पड़ेगा। ऋषिकेश से लगभग 212 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है रुद्रनाथ मंदिर। ऋषिकेश तक रेल, बस या हवाई जहाज़ से पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश से गोपेश्वर तक बस या टैक्सी द्वारा पहुंच सकते हैं। गोपेश्वर से रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा शुरू होती है।

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