चातुर्मास 2020: इस दिन से शुरु हो रहा है, जानिये क्या करें व क्या नहीं

सनातन धर्म में व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के 4 महीने को 'चातुर्मास' कहा गया है। ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए ये माह महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन चातुर्मास में शादी-ब्याह, गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार, मुंडन संस्कार सहित कुछ मांगलिक कार्य निषेध माने गए हैं।

चातुर्मास 4 महीने की अवधि होती है, जो इस बार यानि वर्ष 2020 में 5 माह की रहेगी। चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। इस बार 1 जुलाई से चातुर्मास आरंभ हो रहे हैं। वहीं इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती ही है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक का समय चार्तुमास का समय होता है। देवोत्थान एकादशी के साथ शुभ कार्यों की शुरुआत दोबारा फिर से हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि इन चार महीनों के दौरान सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं इसलिए कई तरह के शुभ और मांगलिक कार्यों थम जाते हैं।

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चातुर्मास 2020: इस बार चार की जगह पांच माह का...
चातुर्मास इस बार यानि 2020 में पांच महीने का पड़ रहा है। हिंदू धर्म में 01 जुलाई से चातुर्मास शुरू होगा, 25 नवंबर तक देवशयन करेंगे। 26 नवंबर को इसकी समाप्ति होगी। 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक क्वांर के महीने में अधिकमास भी पड़ रहा है। इसके कारण चातुर्मास के दिनों में वृद्धि हो गई है। 4 महीने के स्थान पर 4 महीने 25 दिन का चतुर्मास होगा।

इस बार अधिमास पड़ेगा जिस कारण से आश्विन माह दो होंगे। अधिमास होने के कारण चातुर्मास चार महीने के बजाय पांच महीने का होगा। ऐसे में इसके बाद सभी तरह के त्योहार आम वर्षो के मुकाबले देरी से आएंगे। जहां श्राद्ध के खत्म होने पर तुरंत अगले दिन से नवरात्रि आरंभ हो जाते लेकिन अधिमास के होने से ऐसा नहीं हो पाएगा। इस बार जैसे ही श्राद्ध पक्ष खत्म होगा फिर अगले दिन से आश्विन मास का अधिमास आरंभ हो जाएगा।

क्या होता है अधिमास
हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर तीन वर्ष में एक बार एक अतिरिक्त माह आता है। इसे ही अधिमास, मलमास और पुरुषोत्तम माह के नाम से जाना जाता है।

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हर तीन साल में अधिमास
हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के आधार पर चलता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है। वहीं एक चंद्र वर्ष में 354 दिन होते हैं। इन दोनों का अंतर लगभग 11 दिनों का होता है। धीरे-धीरे तीन साल में यह एक माह के बराबर हो जाता है। इस बढ़े हुए एक महीने के अतंर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक अतिरिक्त महीना आ जाता है। इसे ही अधिमास कहा जाता है। अधिमास का महीना आने से ही सभी त्योहार सही समय पर मनाए जाते हैं।

चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास में एक स्थान पर रहकर जप और तप किया जाता है। चातुर्मास में भगवान विष्णु क्षीर सागर में चार महीने के लिए विश्राम करते हैं ऐसे में सृष्टि का संचालन भगवान शिव अपने हाथों में लेते हैं। इसी महीने में ही भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना सावन भी मनाया जाता है।चातुर्मास के दौरान यानी 4 माह में विवाह संस्कार, संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं। देवोत्थान एकादशी के साथ शुभ कार्यों की शुरुआत दोबारा फिर से हो जाती है।

आने वाले चार महीने जिसमें सावन, भादौ, आश्विन और कार्तिक का महीना आता है उसमें खान-पान और व्रत के नियम और संयम का पालन करना चाहिए। दरअसल इन 4 महीनो में व्यक्ति की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है इससे अलावा भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है।

इन चार महीनों में सावन का महीना सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस माह में जो व्यक्ति भागवत कथा, भगवान शिव का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दान करेगा उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।

पंडित शर्मा के अनुसार अधिकमास में तिल, गेहूं, सोने का दान तथा संध्योपासना कर्म व पर्व का होम ग्रहण का जप, अग्निहोत्र देवता पूजन, अतिथि पूजन अधिकमास में ग्राहृय है। श्रीमद् भागवत कथा मोक्षदायी है। इस मास में 33 देवताओं का स्मरण, पूजन करने का विधान होता है। इसके अलावा अधिमास में तीर्थयात्रा, देवप्रतिष्ठा, तालाब, बगीचा, यज्ञोपवीत आदि कर्म निष्क्रिय हो जाते हैं। राज्याभिषेक, अन्नप्राशन, गृह आरंभ, गृहप्रवेश इत्यादि कर्म नहीं करना चाहिए।

ये नियम पालें : इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए। वैसे साधुओं के नियम कड़े होते हैं। दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए।

वर्जित कार्य : चातुर्मास में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं।

इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है।

चातुर्मास में क्या करें, क्या ना करें…
1. मधुर स्वर के लिए गुड़ नहीं खायें।
2. दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का त्याग करें।
3. वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध का सेवन करें।
4. पलंग पर शयन ना करें।
5. शहद, मूली, परवल और बैंगन नहीं खायें।
6. किसी अन्य के द्वारा दिया गया दही-भात नहीं खायें।



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