पुरूषोत्तमा एकादशी 2020 : जानेे व्रत कथा और पूजन के साथ ही महात्म्य

हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहते हैं। एकादशी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘ग्यारह’। प्रत्येक महीने में एकादशी दो बार आती है–एक शुक्ल पक्ष के बाद और दूसरी कृष्ण पक्ष के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। प्रत्येक पक्ष की एकादशी का अपना अलग महत्व है। वैसे तो हिन्दू धर्म में ढेर सारे व्रत आदि किए जाते हैं लेकिन इन सब में एकादशी का व्रत सबसे पुराना माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस व्रत की बहुत मान्यता है।

वहीं पुरुषोत्तम मास (अधिक मास ) के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है वह परमा, पुरुषोत्तमा या कमला एकादशी कहलाती है, ऐसे में इस साल यानि 2020 के अधिक मास में दो एकादशी पड़ रही हैं।

पुरुषोत्तमा एकादशी व्रत 2020:
1— 27 सितंबर : रविवार : अधिक मास – आश्विन शुक्ल पक्ष – पुरुषोत्तमा एकादशी ( पद्मिनी एकादशी )
2— 13 अक्तूबर : मंगलवार : अधिक मास – आश्विन कृष्ण पक्ष – पुरुषत्ता एकादशी ( परम एकादशी )

पुरूषोत्तमा एकादशी व्रत पुरुषोत्तम मास (अधिक मास ) में करने का विधान है। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार पुरुषोत्तमा एकादशी के विषय में एक समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि, हे भगवन मुझे पुरुषोत्तम मास की एकादशी का फल बताएं, भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कहा कि एकादशी पापों का हरण करने वाली, मनुष्यों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली होती है।

पुरूषोत्तमा एकादशी पूजन : Purushottam Ekadashi Puja
पुरूषोत्तमा एकादशी व्रत में दशमी को व्रती शुद्ध चित्त हो उपवास करें। रात्रि में भोजन ग्रहण न करे, व्यसनों का परित्याग करता हुआ, भगवत् चिंतन में लीन रहकर भगवान का भजन करें. अगले दिन प्रातःकाल नित्य नैमित्तिक क्रियाओं से निवृत्त हो एकादशी व्रत का संकल्प लें कि, हे पुरुषोत्तम भगवान मैं एकादशी व्रत का संकल्प- लेता हूं, आप ही मेरे रक्षक हैं अत: मेरी प्राथना स्वीकार करें ऐसी प्रार्थना कर भगवान का षोडशोपचार पूजन करें।

पुरूषोत्तमा एकादशी व्रत कथा : Purushottam Ekadashi Fast Katha
कथा इस प्रकार है कि अवंतिपुरी में शिवशर्मा नामक एक ब्राह्मण निवास करता था। उसके पांच पुत्र थे इनमें जो सबसे छोटा पुत्र था, वह व्यसनों के कारण पाप क्रम करने लगा इस कारण पिता तथा कुटुंबीजनों ने उसका त्याग कर देते हैं। अपने बुरे कर्मों के कारण निर्वासित होकर वह भटकने लगा दैवयोग से एक दिन वह प्रयाग में जा पहुंचा। भूख से व्यथित उसने त्रिवेणी में स्नान करके भोजन की तलाश करनी आरंभ कि इधर-उधर भ्रमण करते हुए वह हरिमित्र मुनि के आश्रम में पहुंच जाता है। पुरुषोत्तम मास में वहां आश्रम में बहुत से, संत महात्मा एकत्रित होकर कमला एकादशी कथा का श्वण कर रहे होते हैं वह पापी भी पुरुषोत्तम एकादशी की कथा का श्रवण करता है।

ब्राह्मण विधिपूर्वक पुरूषोत्तम एकादशी की कथा सुनकर उन सबके साथ आश्रम पर ही व्रत किरता है जब रात होती है तो देवी लक्ष्मी उसे दर्शन देती हैं और उसके पास आकर कहती हैं कि “हे ब्राह्मण पुरूषोत्तम एकादशी के व्रत के प्रभाव से मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं औा तुम्हें वरदान देना चाहती हूं।

ब्राह्मण देवी लक्ष्मी से एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनाने का आग्रह्य करता है, तब देवी उसे कहती हैं कि यह व्रत दुःस्वप्न का नाश करता है तथा पुण्य की प्राप्ति कराता है, अतः एकादशी माहात्म्य के एक या आधे श्लोक का पाठ करने से भी करोड़ों पापों से तत्काल मुक्त हो जाता है। जैसे मासों में पुरुषोत्तम मास, पक्षियों में गरुड़ तथा नदियों में गंगा श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार तिथियों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है।

पुरूषोत्तमा एकादशी महात्मय : Significance of Purushottam Ekadashi
जो लोग प्रभु भगवान पुरुषोत्तम के नाम का सदा भक्तिपूर्वक जप करते हैं, जो लोग श्री नारायण हरि की पूजा में ही प्रवृत्त रहते हैं, वे कलियुग में धन्य होते हैं। ऐसा कहकर लक्ष्मी देवी उस ब्राह्मण को वरदान दे अंतर्धान हो जाती हैं. फिर वह ब्राह्मण भी प्रभु श्री विष्णु की भक्ति में लीन हो जाता है और अपने पापों से दूर हो सम्मानित एवं धनी व्यक्ति बनकर अपने घर की ओर जाता है।

पिता के घर पर संपूर्ण भोगों को प्राप्त होता हुआ वह ब्राह्मण भी अंत में भगवान विष्णु लोक को प्राप्त होता है। इस प्रकार जो भक्त पुरूषोत्तम एकादशी का उत्तम व्रत करता है तथा इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह संपूर्ण पापों से मुक्त हो धर्म-अर्थ-काम मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त कर लेता है।



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