पितृ तर्पण के लिए सनातन धर्म में पितृ पक्ष का खास महत्व है। इसके तहत हर वर्ष 16 श्राद्ध का समय भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से शुरु माना जाता है, वहीं इसका समापन अश्विन अमावस्या के दिन होता है। ऐसे में इस साल यानि 2020 में पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2020 Date) में 2 सितंबर, बुधवार से शुरू होकर 17 सितंबर, बृहस्पतिवार तक चलेगा।
वहीं इस बार 31 अगस्त 2020 यानि भद्रपद शुक्ल त्रयोदशी से पंचक का प्रारंभ हो रहा है। ऐसे में इस बार भाद्रपद शुक्ल की पूर्णिमा के दिन यानि 2 सितंबर 2020 को तीसरा पंचक रहेगा। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक पितृ तर्पण किया जाता है।
मान्यता है कि जो व्यक्ति इन सोलह दिनों में अपने पितरों की मृत्यु तिथि के मुताबिक तर्पण करता है। उसे पितरों का आशीर्वाद मिलता है। ऐसे व्यक्ति से उसके पितृ प्रसन्न होकर उसके जीवन की सभी अड़चनों को दूर करते हैं।
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वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य का प्रवेश कन्या राशि में होता है तो, उसी दौरान पितृ पक्ष मनाया जाता है। पंचम भाव हमारे पूर्व जन्म के कर्मों के बारे में इंगित करता है और काल पुरुष की कुंडली में पंचम भाव का स्वामी सूर्य माना जाता है इसलिए सूर्य को हमारे कुल का द्योतक भी माना गया है।
कन्यागते सवितरि पितरौ यान्ति वै सुतान,
अमावस्या दिने प्राप्ते गृहद्वारं समाश्रिता:
श्रद्धाभावे स्वभवनं शापं दत्वा ब्रजन्ति ते॥
मान्यता के अनुसार जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है तो सभी पितृ एक साथ मिलकर अपने पुत्र और पौत्रों (पोतों) यानि कि अपने वंशजों के द्वार पर पहुंच जाते हैं। इसी दौरान पितृपक्ष के समय आने वाली आश्विन अमावस्या को यदि उनका श्राद्ध नहीं किया जाता तो वह कुपित होकर अपने वंशजों को श्राप देकर वापस लौट जाते हैं। यही वजह है कि उन्हें फूल, फल और जल आदि के मिश्रण से तर्पण देना चाहिए तथा अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार उनकी प्रशंसा और तृप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए।
पितृ पक्ष का महत्व : Importance ( Mahatva/ / Significance ) of Pitru Paksha
हिन्दू धर्म के अनुसार साल में एक बार मृत्यु के देवता यमराज सभी आत्माओं को पृथ्वी लोक पर भेजते हैं। इस समय यह सभी आत्माएं अपने परिवारजनों से अपना तर्पण लेने के लिए धरती पर आती हैं। ऐसे में जो व्यक्ति अपने पितरों का श्रद्धा से तर्पण नहीं करता है। उसके पितृ उससे नाराज हो जाते हैं।
इसलिए पितृ पक्ष के दौरान पितृ तर्पण जरूरत करना चाहिए। पितृ पक्ष में पितरों के लिए श्रद्धा से तर्पण करने से जहां पितृों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, वहीं परिवार के सदस्यों की तरक्की का रास्ता खुलता है। साथ ही पितृ दोष का भी निवारण होता है। कहते हैं कि जिस घर में पितृ दोष लग जाता है उस घर में लड़के पैदा नहीं होते हैं, न ही उस घर में पेड़-पौधे उगते हैं और न ही कोई मांगलिक कार्य हो पाते हैं।
पितृ पक्ष में सर्वपितृ अमावस्या का महत्व बहुत अधिक है। कहते हैं इस दिन भूले-बिसरे सभी पितरों के लिए तर्पण किया जाना चाहिए। जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि नहीं पता होती है उन लोगों को भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए। सनातन धर्म में कहा जाता है कि तर्पण एक बहुत जरूरी क्रिया है जिससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
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पितृ तर्पण:विधि...
जिस तिथि को आपके पितृ देव का श्राद्ध हो, उस दिन बिना साबुन लगाए स्नान करें। फिर बिना प्याज-लहसुन डाले अपने पितृ देव का पसंदीदा भोजन या आलू, पुड़ी और हलवा बनाकर एक थाल में रखें। पानी भी रखें। इसके बाद हाथ में पानी लेकर तीन बार उस थाली पर घूमाएं। पितरों का ध्यान कर उन्हें प्रणाम करें। साथ में दक्षिणा रखकर किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को दान दें। इस दिन तेल लगाना, नाखुन काटना, बाल कटवाना और मांस-मदिरा का सेवन करना मना होता है।
पितृ पक्ष में न करें ये 5 गलतियां... Rules of Pitru Paksha
1- बाल न कटवाएं - मान्यता है कि जो लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध या तर्पण करते हों उन्हें पितृ पक्ष में 15 दिन तक अपने बाल नहीं कटवाने चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से पूर्वज नाराज हो सकते हैं।
2- किसी भिखारी को घर से खाली हाथ न लौटाएं- कहा जाता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज किसी भी वेष में अपना भाग लेने आ सकते हैं। इसलिए दरवाजे पर कोई भिखारी आए तो इसे खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। इन दिनों किया गया दान पूर्वजों को तृप्ति देता है।
3- लोहे के बर्तन का इस्तेमाल न करें- कहा जाता है कि पितृ पक्ष में पीतल या तांबे बर्तन ही पूजा, तर्पण आदि के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। लोहे के बर्तनों की मनाही है। लोहे के बर्तनों को अशुभ माना जाता है।
4- नया समान न खरीदें- कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दिन भारी होते हैं ऐसे में कोई नया काम या नया समान नहीं खरीदना चाहिए। जैसे कपड़े, वाहन, मकान आदि।
5- दूसरे का दिया अन्न न खाएं- मान्यता है श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को 15 दिन तक दूसरे के घर बना खाना नहीं खाना चाहिए और न ही इस दौरान पान खाना चाहिए।
पितृदोष : जानें क्या है?
ज्योतिष के जानकार सुनील शर्मा के अनुसार, श्राद्ध न करने से पितृदोष लगता है। श्राद्धकर्म-शास्त्र में उल्लिखित है-“श्राद्धम न कुरूते मोहात तस्य रक्तम पिबन्ति ते।” अर्थात् मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बंधियों का रक्त-पान करते हैं। उपनिषद में भी श्राद्धकर्म के महत्व पर प्रमाण मिलता है- “देवपितृकार्याभ्याम न प्रमदितव्यम ...।” अर्थात् देवता एवं पितरों के कार्यों में प्रमाद (आलस्य) मनुष्य को कदापि नहीं करना चाहिए।
पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध विधि...
पितृपक्ष में पितृतर्पण एवं श्राद्ध आदि करने का विधान यह है कि सर्वप्रथम हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें- “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।” इसके बाद पितरों का आह्वान इस मंत्र से करना चाहिए।
मंत्र- “ब्रह्मादय:सुरा:सर्वे ऋषय:सनकादय:। आगच्छ्न्तु महाभाग ब्रह्मांड उदर वर्तिन:।।”
इसके बाद पितरों को तीन अंजलि जल अवश्य दें- “ॐआगच्छ्न्तु मे पितर इमम गृहणम जलांजलिम।।” अथवा “मम (अमुक) गोत्र अस्मत पिता-उनका नाम- वसुस्वरूप तृप्यताम इदम तिलोदकम तस्मै स्वधा नम:।।” जल देते समय इस मंत्र को जरूर पढ़ें।
पितर प्रार्थना मंत्र...
पितर तर्पण के बाद गाय और बैल को हरा साग खिलाना चाहिए। तत्पश्चात पितरों की प्रार्थना करनी चाहिए, जिसमें
मंत्र - “ॐ नमो व:पितरो रसाय नमो व:पितर: शोषाय नमो व:पितरो जीवाय नमो व:पितर:स्वधायै नमो व:पितरो घोराय नमो व:पितरो मन्यवे नमो व:पितर:पितरो नमो वो गृहाण मम पूजा पितरो दत्त सतो व:सर्व पितरो नमो नम:।” को पढ़ें।
श्राद्ध कर्म मंत्र...
पितृ तर्पण के बाद सूर्यदेव को साष्टांग प्रणाम करके उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद भगवान वासुदेव स्वरूप पितरों को स्वयं के द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म मंत्र से अर्पित करें।
मंत्र- “अनेन यथाशक्ति कृतेन देवऋषिमनुष्यपितृतरपण आख्य कर्म भगवान पितृस्वरूपी जनार्दन वासुदेव प्रियताम नमम। ॐ ततसद ब्रह्मा सह सर्व पितृदेव इदम श्राद्धकर्म अर्पणमस्तु।।” ॐविष्णवे नम:, ॐविष्णवे नम:, ॐविष्णवे नम:।।'' इसे तीन बार कहकर तर्पण कर्म की पूर्ति करना चाहिए।
पितृ पक्ष 2020 की तिथि और वार... |
तारीख़ | : दिन | : श्राद्ध |
02 सितंबर 2020 | : बुधवार | : पूर्णिमा श्राद्ध ( पहला दिन ) |
03 सितंबर 2020 | : बृहस्पतिवार | : भाद्रपद पूर्णिमा व्रत |
04 सितंबर 2020 | : शुक्रवार | : प्रतिपदा श्राद्ध |
05 सितंबर 2020 | : शनिवार | : द्वितीया श्राद्ध |
06 सितंबर 2020 | : रविवार | : तृतीया श्राद्ध |
07 सितंबर 2020 | : सोमवार | : चतुर्थी श्राद्ध |
08 सितंबर 2020 | : मंगलवार | : पंचमी श्राद्ध |
09 सितंबर 2020 | : बुधवार | : षष्ठी श्राद्ध |
10 सितंबर 2020 | : बृहस्पतिवार | : सप्तमी श्राद्ध |
11 सितंबर 2020 |
: शुक्रवार | : अष्टमी श्राद्ध |
12 सितंबर 2020 | : शनिवार | : नवमी श्राद्ध |
13 सितंबर 2020 | : रविवार | : दशमी श्राद्ध |
14 सितंबर 2020 | : सोमवार | : एकादशी श्राद्ध |
15 सितंबर 2020 | : मंगलवार | : द्वादशी श्राद्ध |
16 सितंबर 2020 | : बुधवार | : त्रयोदशी/चतुर्दशी श्राद्ध |
17 सितंबर 2020 | : बृहस्पतिवार | : अमावस्या श्राद्ध/अश्विन अमावस्या ( आखिरी दिन ) |
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