पितरों की आत्मा की शांति के लिए हिन्दू धर्म में हर वर्ष श्राद्धपक्ष या पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण किया जाता है। श्राद्ध पक्ष के इन सोलह दिनों के दौरान श्राद्ध कर्म करना बेहद खास माना गया है।
इन 16 दिनों में आने वाले सभी श्राद्ध का अपना एक विशेष महत्व है, लेकिन इसमें भी नवमी तिथि के मातृ नवमी श्राद्ध को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। पंडितों व जानकारों के अनुसार एक तरह से मातृ नवमी मां के मोक्ष की तिथि है।
वहीं शास्त्रों के अनुसार नवमी का श्राद्ध करने पर श्राद्धकर्ता को धन, संपत्ति व ऐश्वर्य प्राप्त होता है और सौभाग्य भी सदा बना रहता है। ऐसे में इस बार गुरुवार, सितंबर 30, 2021 को मातृ नवमी श्राद्ध किया जाएगा।
जानकारों के अनुसार मातृ नवमी पर श्राद्ध कर्म आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में नवमी तिथि बहुत श्रेष्ठ श्राद्ध मानी गई है। 16 दिवसीय श्राद्धों के दौरान नवमी तिथि पर ही माता और परिवार की विवाहित महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है। दरअसल इस दिन उनके नाम से भोजन करवाए जाने के साथ ही उनकी पूजा भी की जाती है। आइए जानते हैं क्यों खास होती है यह तिथि और इस दिन क्या करना चाहिए।
पंडित एके शर्मा के अनुसार किसी भी सौभाग्यवती स्त्री का श्राद्ध हमेशा नवमी तिथि में ही किया जाता है, भले ही मृत्यु किसी भी तिथि कोई हुई हो।
यूं तो कोई भी पूर्वज जिस तिथि को मृत्यु लोक को त्यागकर परलोक गया होता है, इस पक्ष की उसी तिथि को उनका श्राद्ध किया जाता है, लेकिन स्त्रियों के लिए नवमी तिथि विशेष मानी गई है।
Must Read- Shradh Parv : पितृदोष निवारण के विशेष उपाय
इस दिन परिवार की पितृ माताओं को विशेष श्राद्ध करना चाहिए और एक बड़ा दीपक आटे का बनाकर जलाना चाहिए। पितरों की तस्वीर पर तुलसी की पत्तियां अर्पित करनी चाहिए। साथ ही श्राद्धकर्ता को भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ भी करना चाहिए।
सभी इच्छाएं होती हैं पूरी
मातृ नवमी का विशेष महत्व इसलिए भी है कि इस दिन परिवार की उन सभी महिलाओं की पूजा की जाती है,जिनकी मृत्यु हो चुकी है और उनके नाम से श्राद्ध भोज कराया जाता है। इस दिन चूंकि माताओं की पूजा होती है इसलिए इसे मातृ नवमी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि मातृ नवमी का श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को पितरों का आशीष तो मिलता ही है साथ ही उसकी समस्त इच्छाएं भी पूरी हो जाती हैं।
मातृ नवमी का महत्व
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि यानि मातृ नवमी के दिन मुख्य रूप से परिवार वाले अपनी माता और परिवार की उन महिलाओं का श्राद्ध करते हैं जिनकी मृत्यु सुहागिन के रूप में हुई हो। यही कारण है कि इस दिन पड़ने वाले श्राद्ध को मातृ नवमी श्राद्ध भी कहते हैं।
Must Read- इन चीज़ों का दान कर देगा आपको कई परेशानियों से मुक्त!
शास्त्रों के अनुसार दिवंगत आत्माओं के लिए इस दिन श्राद्ध क्रिया करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है साथ ही उनका आशीर्वाद परिवार पर हमेशा बना रहता है।
मान्यता के अनुसार मातृ नवमी श्राद्ध के दिन परिवार की बहु-बेटियों को व्रत रखना चाहिए। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से विशेष रूप से महिलाओं को सौभाग्य का आशीर्वाद भी मिलता है। इसी कारण इस दिन किए जाने वाले श्राद्ध का नाम सौभाग्यवती श्राद्ध भी है।
मातृ नवमी के दिन पुत्र वधुएं अपनी स्वर्गवासी सास व माता के सम्मान और मर्यादा के लिए श्रद्धांजलि देती हैं और धार्मिक कृत्य करती हैं।
माना जाता है कि इस दिन सतपथ ब्राह्मणों या जरूरतमंद गरीबों को भोजन करना चाहिए, इससे सभी मातृ शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
Must Read- Shradh Parv Calendar 2021: श्राद्ध पक्ष 2021 का कैलेंडर
मातृ नवमी श्राद्ध का नियम
मातृ नवमी श्राद्ध के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नानादि सहित सभी नित्य कर्मों के पश्चात घर के दक्षिण दिशा में एक हरे रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर सभी दिवंगत पितरों की फोटो रखें। अगर आपके पास किसी की फोटो न हो तो उसकी जगह एक साबुत सुपारी भी रख सकते हैं।
इसके बाद एक दीये में श्रद्धापूर्वक सभी पितरों के नाम से तिल का तेल डालें, फिर उस दीये को प्रज्वलित करें। इसके बाद सभी की फोटो के सामने सुगंधित धूप या अगरबत्ती को जलाकर रखें, फिर एक तांबे के लोटे में शुद्ध जल लेकर काला तिल उसमें मिला लें, जिसे फिर पितरों का तर्पण करें।
दिवंगत पितरों की फोटो पर तुलसी अर्पित करें और आटे से बना एक बड़ा दीया जलाकर उसे पितरों की फोटो के आगे रख दें। इसके पश्चात व्रती महिलाएं कुश के आसन पर बैठकर श्रीमद्भागवत गीता के नौवें अध्याय का पाठ करें। श्राद्धकर्म पूरा होने के बाद ब्राह्मणों को लौकी की खीर, मूंगदाल, पालक की सब्जी और पूरी आदि का भोजन कराएं। ब्राह्मण भोजन के बाद उन्हें क्षमता के अनुसार दक्षिणा देकर विदा करें।
Must Read- आपके पूर्वजों का बही-खाता यहां है मौजूद!
इन बातों का रखें ध्यान
: पितृपक्ष के दौरान कभी भी लोहे के बर्तनों का इस्तेमाल न करें, इसका कारण ये है कि इन्हें नकारात्मक प्रभाव का माना गया है।माना जाता है इसमें खाना देने से पितृ नाराज हो जाते हैं। ऐसे में यदि आप पितरों को प्रसन्न करना चाहते है तो इस दौरान हमेशा पीतल, कांसा व पत्तल की थाली व पात्र का प्रयोग करें।
: इस दिन श्राद्ध क्रिया करने वाले व्यक्ति को पान, दूसरे के घर के खाने और शरीर पर तेल लगाने से दूर रहना चाहिए। इन चीजों व्यासना और अशुद्धता वाली माना गया है।
: इस दौरान कुत्ते, बिल्ली, कौवा आदि पशु-पक्षियों का अपमान नहीं करना चाहिए। इसका कारण ये है कि मान्यता के अनुसार पितृ धरती पर इन्हीं में से किसी का रूप धारण करके आते हैं।
: श्राद्ध पक्ष के दौरान कभी भी भिखारी व जरूरतमंद को खाली हाथ नहीं जाने देना चाहिए और न ही उनसे अभद्रता करनी चाहिए। माना जाता है ऐसा करने वालो से इससे पितर नाराज हो सकते हैं।
: श्राद्ध पक्ष में कोई नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिए। माना जाता है कि इस दौरान शुरु किए गए काम में सफलता नहीं मिलती है।
: श्राद्ध पक्ष के दौरान 15 दिनों तक बाल या नाखून नहीं कटवाने चाहिए। क्योंकि ये शोक का समय होता है।
: श्राद्ध पक्ष में पितरों को भोजन देने के बाद ही खुद खाना ग्रहण करें। इसका कारण ये है कि उन्हें दिए बिना स्वयं भोजन ग्रहण करना पितरों का अनादर करने के समान होता है।
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/3iAFqFN
EmoticonEmoticon