भगवान श्रीहरि विष्णु ने मुख्य रूप से 24 अवतार लिए हैं। भगवान विष्णु के कई नाम हैं जिनमें से 16 ऐसे नाम हैं जिन्हें कुछ खास परिस्थिति में ही जपते हैं जिससे संकट दूर हो जाते हैं। आओ जानते हैं कि यह नाम कब कब जपना चाहिए।
इस संबंध में एक श्लोक प्रचलित है:-
विष्णोषोडशनामस्तोत्रं ( Vishnu shodash naam stotram )
औषधे चिन्तयेद विष्णुं भोजने च जनार्दनं
शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिम
युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं
नारायणं तनुत्यागे श्रीधरं प्रियसंगमे
दु:स्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम
कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनम
जलमध्ये वराहं च पर्वते रघुनंदनम
गमने वामनं चैव सर्वकार्येषु माधवं
षोडश-एतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत
सर्वपाप विनिर्मुक्तो विष्णुलोके महीयते
- इति विष्णो षोडशनाम स्तोत्रं सम्पूर्णं
1. औषधि लेते समय जपें- विष्णु
2. अन्न ग्रहण करते समय जपें- जनार्दन
3. शयन करते समय जपें- पद्मनाभ
4. विवाह के समय जपें- प्रजापति
5. युद्ध के समय - चक्रधर (श्रीकृष्ण का एक नाम)
6. यात्रा के समय जपें- त्रिविक्रम (प्रभु वामन का एक नाम)
7. शरीर त्यागते समय जपें- नारायण (विष्णु के एक अवतार का नाम नर और नारायण)
8. पत्नी के साथ जपें- श्रीधर
9. नींद में बुरे स्वप्न आते समय जपें- गोविंद (श्रीकृष्ण का एक नाम)
10. संकट के समय जपें- मधुसूदन
11. जंगल में संकट के समय जपें- नृसिंह (विष्णु के एक अवतार नृसिंह भगवान)
12. अग्नि के संकट के समय जपें- जलाशयी (जल में शयन करने वाले श्रीहरि)
13. जल में संकट के समय जपें- वाराह (वराह अवतार जिन्हें धरती को जल से बाहर निकाला था)
14. पहाड़ पर संकट के समय जपें- रघुनंदन (श्रीराम का एक नाम)
15. गमन करते समय जपें- वामन (दूसरा नाम त्रिविक्रम जो बाली के समय हुए थे)
16. अन्य सभी शेष कार्य करते समय जपें- माधव (श्रीकृष्ण का एक नाम)
त्रिलोक के पालनकर्ता भगवान विष्णु के इन अष्ट नामों को प्रतिदिन प्रातःकाल, मध्यान्ह तथा सायंकाल में स्मरण करने वाला शत्रु की पूरी सेना को भी नष्ट कर देता है और उसकी दरिद्रता तथा दुस्वप्न भी सौभाग्य और सुख में बदल जाते हैं।
विष्णोरष्टनामस्तोत्रं
अच्युतं केशवं विष्णुं हरिम सत्यं जनार्दनं।
हंसं नारायणं चैव मेतन्नामाष्टकम पठेत्।
त्रिसंध्यम य: पठेनित्यं दारिद्र्यं तस्य नश्यति।
शत्रुशैन्यं क्षयं याति दुस्वप्न: सुखदो भवेत्।
गंगाया मरणं चैव दृढा भक्तिस्तु केशवे।
ब्रह्मा विद्या प्रबोधश्च तस्मान्नित्यं पठेन्नरः।
इति वामन पुराणे विष्णोर्नामाष्टकम सम्पूर्णं।
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