Babulnath ji temple in mumbai : मुंबई का बाबुल नाथ मंदिर देशभर के लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां स्थानीय लोगों के साथ ही देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं और माथा टेक कर भोलेनाथ का आशीर्वाद लेते हैं। माना जाता है कि यह मंदिर 350 साल पहले अस्तित्व में आया था। लेकिन अब सदियों बाद यहां स्थापित शिवलिंग में दरारें आना शुरू हो गई हैं। यानी शिवलिंग धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगा है। मौके की नजाकत को देखते हुए यहां प्रबंधन ने शिवलिंग पर किसी भी तरह का अभिषेक करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं शिवलिंग को हो रहे नुकसान से बचाने के लिए मंदिर प्रशासन ने आईआईटी-बॉम्बे से मदद मांगी है। शिवरात्रि के पर्व पर यहां लाखों की संख्या में भक्तआते हैं और प्रत्येक सोमवार को यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पहुंचने वालों में सबसे ज्यादा संख्या मारवाड़ी और गुजराती समुदाय के लोगों की होती है।
मुंबई में मालाबार हिल्स पर है यह मंदिर
यह मंदिर भारत के राज्य महाराष्ट्र के शहर मुंबई में स्थित है। जहां भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की गई है। इस प्राचीन मंदिर को बाबुलनाथ जी के नाम से जाना जाता है। इनके नाम को लेकर भी लोगों में बड़ी जिज्ञासा देखी जाती है कि आखिर भगवान शिव को बाबुल नाथ कहकर क्यों पुकारा जाता है? भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक यह बाबुलनाथ जी का मंदिर महाराष्ट्र के मुंबई में गिरगांव चौपाटी की उत्तर दिशा में मालाबार हिल्स की पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर 17.84 किलोमीटर लंबी मीठी नदी के पास स्थित है। नक्शे पर श्री बाबुलनाथ मंदिर की स्थिति 18.9587 डिग्री उत्तर और 72.8086 डिग्री पूर्व है।
एक अवधि में ऑनलाइन दर्शन की सुविधा भी
इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि जो भक्त यहां नहीं पहुंच पाते वे ऑनलाइन लाइव दर्शन का लाभ ले सकते हैं। इस सेवा का लाभ लेने के लिए भक्तों को किसी भी तरह का कोई भी शुल्क नहीं देना पड़ता। यानी यहां फ्री ऑनलाइन दर्शन की सुविधा है।
कैसे पहुंचा जा सकता है यहां
बाबुलाल मंदिर से कुछ दूरी पर ही छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए इसका बहुत प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। इसीलिए यह भारत में दूसरा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा है। इसके अलावा मुंबई सेंट्रल तथा ग्रांट रोड की सहायता से देश के अलग अलग राज्यों से लोग सफर करके यहां दर्शन करने पहुंचते हैं। वहीं नेता जी सुभाष चंद्र बोस सड़क मार्ग की सहायता से श्री बाबुलनाथ मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। इस मार्ग को बाबुलनाथ मार्ग भी कहा जाता है।
ये भी पढ़ें: ये है सबसे बड़ा जैन तीर्थ, इसे देखे बिना अधूरा माना जाता है जीवन
जरूर पढ़ें ये इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स
- मराठी शैली की वास्तु कला
यह प्राचीन मंदिर मराठी शैली की वास्तुकला के लिए जाना जाता है। विदेश से आए पर्यटकों के लिए यह खासा आकर्षण का केंद्र रहता है।
- इसलिए पड़ा बाबूल नाथ जी नाम
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर के नाम के पीछे एक रोचक कहानी है। दरअसल बताया जाता है कि एक ग्वाले ने इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को अपनेे गुरु श्री पांडुरंग को दिखाया था। इस ग्वाले का नाम बाबुल था। यही कारण है कि इस मंदिर का नाम श्री बाबुलनाथ जी पड़ा। वहीं एक और मान्यता के मुताबिक मंदिर में स्थापित शिवलिंग बबूल के वृक्ष की छाया में मिला था। बबूल के पेड़ से इनका नाम श्री बाबुलनाथ पड़ गया।
- इस मंदिर का निर्माण सन् 1806 ई. में किया गया था। इसके बाद सन 1840 में भगवान शिव के परिवार के सदस्यों की मूर्तियों को यहां स्थापित किया गया। इनमें माता पार्वती, श्री गणेश जी, कार्तिकेय, नागदेव आदि के साथ ही शीतला माता, हनुमान जी, लक्ष्मीनारायण, गरुड़ और चंद्रदेव आदि की मूर्तियों को भी यहां स्थापित किया गया है। माना जाता है कि सन् 1780 में इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया था।
यहां सीढिय़ों के साथ लिफ्ट भी
श्री बाबुलनाथ महादेव देवालय नामक संस्था इस मंदिर की देख-रेख करती है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढिय़ां तो हैं ही इसके साथ ही लिफ्ट की सुविधा भी यहां दी गई। लेकिन भक्तसीढिय़ां चढ़कर ही मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं।
यह है रोचक इतिहास
इस मंदिर के इतिहास से संबंधित कई कथाएं भी प्रचलित है। इनमें से एक पौराणिक कथा के अनुसार मंदिर की इस मालाबार पहाड़ी पर आज से लगभग 300 वर्ष पूर्व समय में एक बड़ा चरागाह था। पहाड़ी और उसके आस-पास की जमीन का ज्यादातर हिस्सा सुनार पांडुरंग के पास था। इस समृद्ध सुनार के पास कई गायें थीं, जिनके लिए पांडुरंग ने एक चरवाहा रखा हुआ था। इस चरवाहा का नाम था बाबुल।
सभी गाय में से कपिला नाम की गाय सभी से ज्यादा दूध देती थी। पांडुरंग ने एक दिन देखा कि कपिला कुछ दिनों से बिल्कुल भी दूध नहीं दे रही है, इसलिए उसने बाबुल से इसका कारण पूछा। तो बाबुल का उत्तर सुनकर सुनार हैरान रह गया। बाबुल ने बताया कपिला काफी दिनों से दूध नहीं दे रही। उसने बताया कि यह गाय घास चरने के बाद एक विशेष स्थान पर जाकर अपना दूध फेंक आती है। तभी सुनार ने अपने आदमियों से उस स्थान पर खुदाई करने के लिए कहा और खुदाई के बाद वहां से एक कालेे रंग का स्वयंभू शिवलिंग निकला। तब से लेकर आज तक उस स्थान पर बाबुलनाथ के पूजन की परम्परा चली आ रही है।
यह भी पढ़ें: महाभारत काल से स्थापित है मां बगलामुखी का ये मंदिर, तंत्र साधना का विशेष महत्व
अब दरक रहा है शिवलिंग
350 साल पुराना यह शिवलिंग अब दरकने लगा है। यानी इसमें दरारें पडऩे लगी हैं। शिवलिंग के इस नुकसान से मंदिर प्रबंधन पहले तो परेशान हो गया। लेकिन अब प्रबंधन ने शिवलिंग को हो रहे नुकसान से बचाने के लिए आईआईटी-बॉम्बे से मदद मांगी। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ समय से यहां लगातार शिवलिंग पर दरारें देखी जा रही थीं। इन दरारों को ध्यान में रखते हुए मंदिर के अधिकारियों ने दूध, राख, गुलाल और तरह-तरह के प्रसाद चढ़ाने पर फिलहाल रोक लगा दी है। शिवलिंग पर अभिषेक के लिए केवल पानी की ही अनुमति दी गई है।
विशेषज्ञों की रिपोर्ट के बाद उठाया यह कदम
इसके बाद आईआईटी बॉम्बे के विशेषज्ञों ने इस जगह का निरीक्षण किया और एक प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में सामने आया कि मिलावटी पदार्थों के अभिषेक के लगातार प्रभाव से शिवलिंग को नुकसान पहुंच रहा है। विशेषज्ञों की रिपोर्ट के बाद टीम ने मंदिर प्रशासन के साथ मिलकर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया और यहां आस-पास सामान बेचने वालों से पूछताछ की। इस दौरान पता चला कि मंदिर के आस पास मिलने वाला दूध और अन्य सामान मिलावटी था, जिसने शिवलिंग को नुकसान पहुंचाया है।
यह भी पढ़ें: देवास में है दो बहनों का वास, चमत्कारिक है यह शक्तिपीठ
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/t2JCbYq
EmoticonEmoticon