इसलिए दो दिन रखा जाएगा वट सावित्री व्रत
वट सावित्री व्रत की तिथि को लेकर धर्म ग्रंथों में एक राय नहीं है। स्कंद पुराण और भविष्योत्तर पुराण में ज्येष्ठ पूर्णिमा को इस व्रत का विधान बताया गया है तो धार्मिक ग्रंथ निर्णयामृत में इसे ज्येष्ठ अमावस्या को रखने की बात कही गई है। इसके चलते यह व्रत अलग-अलग दिनों में रखे जाने की प्रथा बन गई है। वहीं कुछ पुरोहित तो इसे तीन दिन रखने की सलाह देते हैं। इस तरह तमाम लोग त्रयोदशी से अमावस्या और कुछ लोग त्रयोदशी से पूर्णिमा तक भी यह व्रत रखते हैं।
बहरहाल, नारीत्व का प्रतीक, सौभाग्य और संतान देने वाला यह व्रत उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या यानी 19 मई और गुजरात आदि राज्यों में यह ज्येष्ठ पूर्णिमा यानी तीन जून को रखा जा रहा है। सबसे खास बात है ज्येष्ठ अमावस्या को रखे जा रहे वट सावित्री व्रत के दिन कई शुभ योग बन रहे हैं।
अमावस्या को व्रत के दिन शोभन योग
जो लोग ज्येष्ठ अमावस्या यानी 19 मई को व्रत करेंगे, उनके लिए यह व्रत और भी फलदायी हो गया है क्योंकि इस दिन शोभन योग बन रहा है। शोभन योग में पूजा विशेष फलदायी होता है। पंचांग के अनुसार अमावस्या 18 मई को 9.42 से शुरू हो रही है और यह 19 मई रात 9.22 पर संपन्न होगी। उदयातिथि में यह व्रत 19 मई को रखा जाएगा। इस दिन शाम 6.17 बजे तक शोभन योग का भी निर्माण हो रहा है। यह योग बेहद शुभ माना जाता है, इस योग में पूजा से व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है और उसके दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है।
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शश राजयोग और शनि जयंती
पंचांग के अनुसार 19 मई को वट सावित्री व्रत के दिन यानी ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती और शनिश्चरी अमावस्या भी है। इस दिन शश योग का भी निर्माण हो रहा है। इसलिए जिन राशियों के जातकों की कुंडली में शनि की ढैय्या, साढ़ेसाती का प्रभाव चल रहा है, उन्हें इस दिन शनि की पूजा से विशेष लाभ मिलेगा। ज्येष्ठ अमावस्या को पूजा करने वाली महिलाओं पर कर्मफल दाता अति प्रसन्न होंगे और उत्तम फल देंगे।
ज्येष्ठ पूर्णिमा पर शिव और सिद्ध योग
जो लोग वट सावित्री व्रत 3 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा को रखेंगे, उस दिन दोपहर 2.48 पीएम तक शिव योग बन रहा है। इसके बाद सिद्ध योग (चार जून 11.59 एएम तक) लग जाएगा यह दोनों योग शुभ योग है। पूर्णिमा तिथि की शुरुआत तीन जून 11.16 एएम से होगी और यह तिथि 4 जून 9.11 बजे संपन्न होगी। कुछ लोग शनिवार को पूर्णिमा व्रत करेंगे तो कुछ लोग रविवार को यह व्रत रखेंगे।
वट सावित्री व्रत का महत्व
यह व्रत सौभाग्य में वृद्धि और पतिव्रत को आत्मसात कराने वाला है। भगवान विष्णु के उपासक इस व्रत को पूर्णिमा पर रखते हैं। इस व्रत में पीपल वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है और पुराणों के अनुसार इसमें ब्रह्म, विष्णु और महेश का वास होता है। इसलिए यह विशिष्ट है। इसके अलावा वट वृक्ष दीर्घायु और अमरत्व बोध का भी प्रतीक माना जाता है। इसलिए पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत रखा जाता है।
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