- भाद्रपद (भादो) माह की सिंह संक्रांति को उत्तराखंड में घी संक्रांति या ओल्गी संक्रांति कहते हैं।
- घी संक्रांति या घिया संक्रांद या घी-त्यार कहते हैं। गढ़वाल में घिया संक्रांद और कुमांऊ में घी-त्यार कहते हैं।
- कहा जाता है जो इस दिन घी नहीं खायेगा उसे अगले जन्म में गनेल यानी घोंघे के रूप में जन्म लेना होगा।
- यही कारण है कि नवजात बच्चों के सिर और पांव के तलुवों में घी लगाकर जीभ पर भी थोड़ा सा घी रखा जाता है।
- चरक संहिता में कहा गया है कि घी- स्मरण शक्ति, बुद्धि, ऊर्जा, बलवीर्य, ओज बढ़ाता है।
- घी वसावर्धक है। यह वात, पित्त, बुखार और विषैले पदार्थों का नाशक है।
- वस्तुतः यह कृषि और पशुपालन से जुड़ा हुआ एक लोक पर्व है।
- सिंह संक्रांति के दिन कई तरह के पकवान बनाकर खाते हैं जिसमें दाल की भरवां रोटियां, खीर और गुंडला या गाबा प्रमुख हैं।
- इस दिन दाल की भरवां रोटियों के साथ घी का सेवन किया जाता है। इस रोटी को बेडु की रोटी कहा जाता है।
- सिंह संक्रांति के दिन स्नान और दान करने का विशेष महत्व है।
- इस दिन सूर्य मंत्र के साथ सूर्यदेव की विशेष पूजा जरूर करना चाहिए।
- कुंडली में सूर्यदोष है, तो उसे सूर्यदेव से जुड़ी वस्तुओं का खासकर दान करना चाहिए। जैसे कि तांबा, गुड़ आदि।
from ज्योतिष https://ift.tt/AkiyTLc
EmoticonEmoticon