बागेश्वर धाम: शिव का धाम या हनुमान जी का, जानें इनका विशेष संबंध

बागेश्वर धाम के बारे में तो इन दिनों आपने भी कई बार सुना होगा, ये वहीं बागेश्वर धाम है जहां के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र शास्त्री है। यहां ये भी जान लें कि बागेश्वर धाम श्री हनुमान का मंदिर है, वहीं हनुमान जी, भगवान शिव के 11वें रूद्रावतार माने गए हैं। ऐसे में आपको ये जानकर विशेष आश्चर्य होगा कि जहां एक ओर श्रीहनुमान जी का मंदिर बागेश्वर धाम मप्र के छत्तरपुर में मौजूद है, तो वहीं बागेश्वर नाम का एक हजारों वर्ष पूराना भगवान शिव का मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में भी मौजूद है। दरअसल बागेश्वर धाम नाम से एक और तीर्थ स्थल उत्तराखंड राज्य में स्थित है। ये सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित है। यह बागेश्वर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यहीं पर स्थित है बागेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर, जिसे “बागनाथ” या “बाघनाथ” के नाम से भी जाना जाता है। वहीं मध्यप्रदेश के छतरपुर के बागेश्वर धाम व देवभूमि के बागेश्वर धाम के बीच की दूरी करीब 565 किलोमीटर की है।

shri_bageshwar_dham_government_village_garha_chhatarpur_madhya_pradesh-2.png

भगवान शिव का बागेश्वर यानि बागनाथ मंदिर
भारत के उत्तराखंड राज्य को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है। यहां कदम कदम कई प्राचीन स्थल हैं। कुमाऊं एक ऐसा क्षेत्र है जहां बागेश्वर धाम तीर्थ स्थल है। इसके पूरब में भीलेश्वर, पश्चिम में निलेश्वर पहाड़ी, उत्तर में सूरजकुंड और दक्षिण में अग्नि कुंड जैसे पवित्र स्थल हैं। यह स्थान धार्मिक तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ खूबसूरती, ग्लेशियरों, नदियों आदि के लिए भी मशहूर है।

उत्तराखण्ड के प्रयाग और काशी के नाम से विख्यात सरयू नदी के संगम पर स्थित बाघनाथ मन्दिर पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है। इस स्थल को मार्कण्डेय मुनि की तपस्थली अथवा तपोभूमि माना जाता हैं। कहा जाता है कि जिस प्रकार सगर ऋषि के पुत्र भागीरथ ने अपने पूर्वजों के तर्पण के लिए गंगा का अवतरण किया, उसी प्रकार महर्षि वशिष्ठ द्वारा सरयू लायी गयी थी। मार्कण्डेय ऋषि की तपोभूमि में प्रवेश करते ही वेगवती, बलखाती लहराती सरयू ठिठक कर रह गयी। वशिष्ठ जी ने नदी के मार्ग में नील पर्वत की एक विशाल शिला पर मार्कण्डेय मुनि को ध्यान मुद्रा में समाधिस्त देखा और नदी के आगे न बढ़ने का कारण भी जान गए।

 

MUST READ-

प्राचीन मंदिर जहां बाघ रूप में हैं भगवान शिव और भैरवनाथ हैं द्वारपाल

shri_bageshwar_temple_of_devbhoomi_uttrakhand.png

वशिष्ठ जी ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित अनेक देवी-देवताओं की स्तुति की अन्ततः शिव द्वारा इस समस्या का समाधान सुझाया गया। जिसके बाद मां पार्वती ने गाय का रूप धारण कर मार्कण्डेय मुनि के सामने घास चरने का उपक्रम करने लगी। फिर भगवान शिव बाघ का रूप धारण कर घोर गर्जन करते हुए गाय रूपी पार्वती पर झपटे। गाय जोर-जोर से रम्भाती हुई मुनि की शिला की ओर दौड़ी; इससे मार्कण्डेय मुनि की समाधि भंग हो गयी और बाघ से गाय को बचाने के लिए मुनिवर अपनी शिला छोड़कर गाय की ओर दौड़े। इसी अन्तराल में सरयू नदी मार्कण्डेय शिला को स्पर्श करती हुई आगे बढ़ गई। इसके बाद बाघ और गाय रूपी शिव और पार्वती भी मुनि के समक्ष अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गए।

इसी घटना के साक्ष्य के रूप में मुनि की प्रार्थना पर ‘व्याघ्रेश्वर’ नाम से शिव इस स्थल पर निवास करने के लिए सहमत हो गए। सम्पूर्ण घटना की पुष्टि के लिए आकाशवाणी हुई जिसमें उमा-महेश की स्तुति की गयी। इसी वाणी के फलस्वरूप वाणेश्वर मन्दिर का निर्माण किया गया। इस तरह सरयू के बहने से आज भी आम जनता में यह धारणा छायी है कि ‘गंग नान बागेश्वर और देवता देखन जागेश्वर’ अर्थात गंगा स्नान के लिए बागेश्वर और देवताओं के दर्शन के लिए जागेश्वर जाना चाहिए।

दो नदियों गोमती और सरयू के संगम पर स्थित व्याघेश्वर नामक स्थल धार्मिकता के साथ-साथ व्यापारिक केन्द्र के रूप में भी प्रसिद्ध रहा हैं। इस स्थल पर प्रतिवर्ष कार्तिक माह में उत्तरायणी मेले के दिन का आयोजन प्राचीन काल से होता रहा है। इसका उल्लेख कत्यूरी राजा ललितसूरदेव तथा पदमटदेव के ताम्रपत्रों में भी किया गया है।

shri_bageshwar_dham_government_village_garha_chhatarpur_madhya_pradesh.png

दरअसल बागनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। जिसका निर्माण अल्मोड़ा के राजा लक्ष्मी चंद ने 1450 ईस्वी में इसका कराया था।

सूर्यकुण्ड तथा अग्निकुण्ड
बागेश्वर नगर की उत्तर दिशा सूर्यकुण्ड जबकि दक्षिण दिशा में अग्निकुण्ड स्थित है। ये दोनों प्राकर्तिक कुंड हैं।

पुरातात्विक रूप से बागनाथ :
बागनाथ मन्दिर परिसर, लघु मूर्तिशैड एवं बागेश्वर के बाबा अखाड़े, भैरव नाथ, ढिकाल भैरव, वाणेश्वर तथा अन्य आधुनिक मन्दिरों में लगभग सातवीं से दसवी शती ई. के दौरान निर्मित देवालयों के अनेक अवशेष तथा प्राचीन प्रस्तर प्रतिमाएं रखी हुई हैं। इनमें चैत्यगवाक्ष, द्वारशाखाएं तथा विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां – उमा-महेश, सूर्य, विष्णु, पार्वती, महिषसुरमदिनी, दशावतार पट्ट, सप्तमातृका पट्ट, चतुर्मुखी, पंचमुखी शिवलिंग, हरिहर, गणेश, कार्तिकेय सहस्रमुखी शिव-लिंग शेषशायी विष्णु, नन्दी, गणेश आदि प्रतिमाएं भी हैं। यहा मौजूद प्राचीन देवालयों और प्रतिमाओं के आधार पर यह अनुमान लगभग सहज हो जाता है कि दोनों नदियों के संगम पर लगभग छठीं, सातवी शती ई. के पहले से ही देवालयों का निर्माण होता रहा था।

बागनाथ का वर्तमान देवालय चंदवंशीय राजा लक्ष्मीचन्द द्वारा सन् 1602 ईस्वी में निर्मित करवाया था। कुमाऊँ पर लक्ष्मीचन्द का शासनकाल सन 1597 से सन् 1621 तक माना जाता है। बागनाथ मंदिर के प्रांगण में निर्मित लघु देवकुलिकाऐं परवर्ती काल की हैं। इसके निकट विद्यमान वाणेश्वर मंदिर वास्तु कला की दृष्टि से बाघनाथ मंदिर के समकालीन प्रतीत होता है किन्तु भैरवनाथ मंदिर आधुनिक निर्मित है।

बागनाथ मन्दिर का पुरातात्विक दृष्टि के अन्तर्गत चहारदीवारी के मध्य निर्मित बागनाथ मंदिर के तलविन्यास के अन्तर्गत गर्भगृह, अन्तराल तथा गूढ मण्डप का निर्माण किया गया है। गर्भगृह की बाहरी माप 7.0 x 6.50 मीटर है। उर्ध्वविन्यास के अन्तर्गत विभिन्न गढ़नों से युक्त वेदीबन्ध, सादा जंघा भाग तथा पंचस्थ रेखा शिखर बनाए गए हैं। सबसे ऊपर विशाल आमलक के ऊपर काष्ठ छत्र में ताम्र छत से विजौरा का निर्माण किया गया है।

बागनाथ मंदिर के गर्भगृह के मध्य में प्राकृतिक रूप से स्वयंभू-शिवलिंग के आधार की एक चट्टान विद्यमान है। (जिसमें शिव पार्वती की कल्पना की गयी है) शिव को स्वयं भू-रूप मानकर पूजा की जाती है। इसके गर्भगृह में निर्मित ताखीं और मण्डप में आठ प्राचीन प्रतिमाएं रखी हुई है। मण्डप के दायें पार्श्व में भोग द्वार तथा मण्डप की छत पर पहुंचने के लिए दो तरफ संकरा सोपान भी निर्मित है। बाघनाथ मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण की ओर है, जिसके सम्मुख नन्दी की अनेक मूर्तियां और लघु देवकुलिकाएं विद्यमान हैं।

shri_bageshwar_temple_devbhoomi_uttrakhand.png

बाघनाथ मंदिर प्रांगण में चार लघु देवकुलिकाएं विद्यमान हैं, ये सभी देवकलिकाएं त्रिरथ प्रकार की रेखा शिखर युक्त नागर शैली में बनाई गयी हैं। सभी देवकुलिकाओं के शीर्ष पर आमलक के ऊपर आकाश-लिंग स्थापित किए गए हैं इनमें से एक देवकुलिका गर्भगृह में स्थानक सूर्य की प्रतिमा स्थापित की गयी है। अन्य देवकुलिकाओं में चतुर्मुखी व एक मुखी शिवलिंग रखे हुए हैं। मूर्तिशैड के सामने एक अन्य चतुर्मुखी शिवलिंग खुले आकाश में पूजा के लिए स्थापित है।

वहीं यहां गोमती नदी के बायें तट पर भैरवनाथ मन्दिर स्थापित है। यह पूर्ण रूप से आधुनिक मन्दिर है जो सामान्य बावड़ियों की तरह ढलवा छत युक्त चौपखिया है, किन्तु इस मन्दिर के बाहर तथा भीतर अनेक प्राचीन प्रतिमाएं रखी हुई हैं जो पूर्व मध्यकाल में निर्मित देवालयों में स्थापित की गयी थी। भैरव नाथ मन्दिर परिसर व गर्भगृह में अनेक प्रतिमाएं रखी गयी हैं। इसके अतिरिक्त अनेक महत्वपूर्ण प्रतिमाएं ढिकाल भैरव नाथ मन्दिर में रखी गयी हैं।

ऐसे पहुंचे देवभूमि उत्तराखंड के बागेश्वर धाम?

बागेश्वर का जिला भारत में उत्तराखंड के उत्तरी हिस्से में है. इसके पूर्व में पियौरागढ़ जिला है और पश्चिम में चमोली जिला है... उत्तर में महान हिमालय है और दक्षिण में जिला अल्मोड़ा है,

सड़क मार्ग से ऐसे पहुंचें बागेश्वर-
बागेश्वर शहर अच्छी तरह से भारत के अहम शहरों से जुड़ा हुआ है. अलग अलग शहरों से इसकी दूरी इस प्रकार है...

जगह - दूरी (किलोमीटर में)
लखनऊ - 556
नैनीताल - 153
दिल्‍ली - 470
हरिद्वार - 447
कौसानी - 40
देहरादून - 502
अल्मोड़ा - 90
बरेली - 295
पिथोरागढ़ - 149
सहारनपुर - 462
काठगोदाम - 180
हल्द्वानी - 186
द्वाराहाट - 83
छतरपुर - 565

बागेश्वर पहुंचने के लिए कोई भी बस और निजी टैक्सी बुक कर सकता है।

रेल द्वारा ऐसे पहुंचें
उत्तराखंड के बागेश्वर धाम: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जहां से आप टैक्सी या बस ले सकते हैं।

वायु मार्ग से ऐसे पहुंचें
उत्तराखंड के बागेश्वर धाम निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है, पंतनगर से धाम की दूरी करीब 190 किलोमीटर के आसपास है। यहां पहुंचकर आप धाम जाने के लिए टैक्सी या बस ले सकते हैं।


ऐसे पहुंचे छतरपुर जिले के बागेश्वर धाम-

आप छतरपुर जिले में स्थित बागेश्वर धाम सड़क मार्ग से, रेल मार्ग से और हवाई मार्ग से पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग से ऐसे पहुंचे बागेश्वर धाम
मध्य प्रदेश में बागेश्वर धाम सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए आपको NH 39 पर आना होता है। 39 के पन्ना-खजुराहो मार्ग वाले हिस्से पर एक रास्ता गढ़ा गांव के लिए कटता है। इसी गढ़ा गांव में बागेश्वर धाम है।

रेल मार्ग से ऐसे पहुंचे बागेश्वर धाम
मध्य प्रदेश में बागेश्वर धाम रेल मार्ग से पहुंचने के लिए आपको छतरपुर रेलवे स्टेशन पहुंचना होता है। छतरपुर रेलवे स्टेशन की धार्मिक स्थल से कुल दूरी 30 मिनट की है। आपको अगर छतरपुर की सीधी ट्रेन न मिले तो आप खजुराहो, महोबा स्टेशन की ट्रेन ले सकते हैं।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/xuDpSUL
Previous
Next Post »