जगतपति भगवान श्री नारायण को इस सृष्टि का पालनकर्ता माना गया हैं, और ये त्रिदेवों में से एक है । व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक जो भी सुख-दुःख अनुभव करता है वे सभी भगवान नारायण की कृपा पर ही निर्भर है, स्वभाव से शांत और आनंदमयी श्री भगवान सदैव क्षीर सागर में शेषनाग पर विश्राम की अवस्था में विराजमान होकर सृष्टि का भरण पोषण करते रहते हैं ।
श्री भगवान की आराधना से व्यक्ति के सभी पापों का, रोगों का नाश हो जाता है, और वह जीवन में सभी सुखों को प्राप्त करता है । अगर श्री भगवान के मूल मंत्रों की नियमित जप साधना की जाय तो भगवान नारायण अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों की हर मनोकामनां पूरी करते हैं ।
मूल मंत्र
पहला मंत्र
।। ॐ नमोः नारायणाय ।।
दूसरा मंत्र
।। ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय ।।
श्री भगवान के इन मंत्रों की जप साधना शुक्ल पक्ष के किसी भी गुरुवार के दिन पीले वस्त्र धारण कर प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में आरंभ कर सकते हैं, पूजा में पीले फूलों की माला, पंचमेवा व घी का दीपक जलाकर करें । गुरुवार के अलावा एकादशी, द्वादशी या पूर्णिमा तिथि में भी आरंभ कर सकते है ।
पूजा विधान
श्री भगवान के मूल मंत्र की साधना करने के लिए या तो श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर का चयन कर सकते हैं या अपने घर का ही पूजा स्थल । अगर में पहले से ही भगवान नारायण की फोटो या मूर्ति स्थापित है तो उसके सामने पीले वस्त्र का आसन बिछाकर कलश और दीपक स्थापना करें । अब साधक भी भगवान के सामने कुशा के पीले आसन पर बैठ जाये एवं फिर उपरोक्त मूल मंत्रों में से किसी एक या दोनों का जप 3 + 3 माला (तुलसी की माला से ) शुद्ध होकर करें । मंत्र जप के बाद श्री भगवान की आरती करें एवं अपने कार्य की पूर्णता के लिए दंडवत लेटकर प्रार्थना करें । भगवान श्री नारायण की कृपा से साधक के सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं ।
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