ऋषि पंचमी व्रत भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, इस दिन महिलाएं सप्त ऋषियों की पूजा धन-धान्य, समृद्धि, संतान प्राप्ति तथा सुख-शांति की कामना से करती हैं । ऋषि पंचमी के दिन विवाहित महिलाएं व कंवारी कन्याएं पूरी श्रद्धा, भक्ति के साथ व्रत रखकर पूजा अर्चना करती हैं । कहा जाता हैं कि इस दिन सप्तऋषियों का पूर्ण विधि-विधान से पूजन और व्रत करने से ज्ञात-अज्ञात पापों का नाश कर श्रेष्ठ शुभ फलदायी है ।
शास्त्रों के अनुसार ऋषि पंचमी के खेतों में हल से जोते अनाजों का सेवन करने की मनाही है । ऋषि पंचमी के अवसर पर महिलाएं व कुंवारी कन्याएं सप्तऋषि को प्रसन्न करने के लिए इस पूर्ण फलदायी व्रत को रखती हैं ।
पूजा विधि
ब्रह्मांड पुराण के अनुसार ऋषि पंचमी के दिन महिलाओं को एक चांदी या लकड़ी के बड़े सी चौकी या पटिए पर शुद्ध मिट्टी से सात ऋषियों ( 1- कश्यप ऋषि । 2- भारद्वाज ऋषि । 3- विश्वामित्र ऋषि । 4- गौतम ऋषि । 5- जमदग्नि ऋषि । 6- वशिष्ठ ऋषि । 7- अत्रि ऋषि । ) की छोटी छोटी प्रतिक रूप में मूर्ति बनाना चाहिए ।
अब सबसे पहले इन सभी का आवाहन कर पूजन करें । पूजन के बाद सभी सप्तऋषियों का गाय के दूध, दही, घी, शहद एवं शुद्ध जल से नीचे दिये मंत्र का उच्चारण करते हुए अभिषेक करें । अभिषेक के बाद पुनः पुष्प, रोली, हल्दी, चावल, धूप, दीप नैवेद्य आदि से सभी का पूजन करने के बाद ऋषिपंचमी की कथा सुन या पढ़कर गाय के घी से यज्ञ करें । व्रती को सुबह और शाम दोनों समय निराहार या फलाहार लेकर व्रत को पूर्ण करना चाहिए । इस दिन पवित्र नदियों में हिमाद्री स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता हैं ।
इन सप्तऋषियों का करें श्रद्धा विश्वास के पूजन ।
1- कश्यप ऋषि । 2- भारद्वाज ऋषि । 3- विश्वामित्र ऋषि । 4- गौतम ऋषि ।
5- जमदग्नि ऋषि । 6- वशिष्ठ ऋषि । 7- अत्रि ऋषि ।

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