देश दुनिया में नये साल का उत्सव मनाने की सभी धर्मों में अलग-अलग माह की तारीखों में विभिन्न परंपराओं के साथ मनाया जाता है । किसी किसी धर्मों में नाच-गाकर हर्षोल्लास के साथ नए साल का स्वागत वंदन किया जाता है, तो कहीं ईश्वर की पूजा-पाठ के माध्यम से मनाया जाता हैं । उसी प्रकार इस्लाम धर्म के नया साल की शुरूआत आगामी 12 सितंबर 2018 को खुदा की इबादत से की जायेगी ।
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को मुस्लिम समाज का नया साल हिजरी शुरू होता है । इस्लामी या हिजरी कैलेंडर चंद्र आधारित है, जो न सिर्फ मुस्लिम देशों में इस्तेमाल होता है, बल्कि दुनियाभर के मुस्लिम भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए इसी का इस्तेमाल करते हैं। इस बार इस्लामिक नव वर्ष हिजरी सन् का प्रारंभ 12 सितंबर से शुरू हो रहा है ।
दुनिया के हर मजहब या कौम का अपना-अपना नया साल होता है नए साल से मुराद आशय है पुराने साल का खात्मा समापन और नए दिन की नई सुबह के साथ नए वक्त की शुरुआत । नए वक्त की शुरुआत ही दरअसल नए साल का आगाज आरंभ है । हिन्दू धर्म में जैसे वर्ष प्रतिपदा अर्थात गुड़ी पड़वा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से विक्रमी नवसंवत्सर का आरंभ होता है वैसे ही मोहर्रम के महीने की पहली तारीख से इस्लामी नया साल यानी नया हिजरी सन् शुरू होता है । इस्लामी कैलेंडर में जिलहिज के महीने की आखिरी तारीख को चाँद दिखते ही पुराना साल विदाई के पायदान पर आकर रुखसत हो जाता है और अगले दिन यानी मोहर्रम की पहली तारीख से इस्लामी नया साल शुरू हो जाता है मोहर्रम के महीने की पहली तारीख से नया हिन्दी सन् यानी नया इस्लामी साल शुरू होता है
कहा जाता है कि पहली तारीख यानी यकुम प्रथम मोहर्रम से जो इस्लामी नया साल शुरू होता है उसमें मुबारकबाद अर्थात बधाई देने के लिए कभी भी मोहर्रम मुबारक नहीं कहा जाता । क्योंकि मोहर्रम के महीने की दसवीं तारीख जिसे यौमे आशुरा कहा जाता है, को ही हजरत इमाम हुसैन की पाकीजा शहादत का वाकेआ पेश आया था इसलिए शुरुआती तीन दिनों यानी मोहर्रम के महीने की पहली तारीख से तीसरी तारीख तक मुबारकबाद दे देनी चाहिए ।
कुछ ओलेमा इस्लामी विद्वान और व्याख्याकार चौथे मोहर्रम तक भी नए साल की मुबारकबाद देने की बात को तस्लीम स्वीकार करते हैं । लेकिन इसमें मतभेद हैं इसलिए मोहर्रम की तीसरी तारीख तक ही नए साल की मुबारकबाद देना बेहतर माना जाता हैं । नए साल का मतलब इस्लाम मजहब में बेवजह का धूमधड़ाका करना या फिजूल खर्च करना या नाच गानों में वक्त बर्बाद करना नहीं है बल्कि अल्लाह की नेमत वरदान और फजल कृपा की खुशियाँ मनाना है ।

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