शिव जी श्री गणेश के पिता हैं इस बात को सभी बखूबी जानते हैं। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं की गणेश जी के एक और पित हैं। जी हां आपको यह बता दें की गणेश जी जब एक बार देवराज इंद्र और सभी देवी, देवता सिंदूरा नाम के दैत्य के अत्याचारों से परेशान थे उस समय सभी देवता ब्रह्मा जी के पास अपना दुख लेकर गए और अपनी ससस्या सुनाई। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें गणपति जी के पास जाने को कहा उसके बाद सभी देवता गणपति जी के पास गए और उनसे प्रार्थना करते हुए बोले कि उन्हें दैत्य सिंदूरा के अत्याचारों से मुक्ति दिलाएं। सभी देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना सुनने के बाद उन्होंने माता पार्वती के घर गजानन के रुप में अवतार लिया। वहीं जिस समय गजानन ने अवतार लिया था उसी समय राजा वरेण्य की पत्नी पुष्पिका के घर भी एक बालक ने जन्म लिया था।
राजा को गणेश जी ने दिया था वरदान
प्रसव के दौरान रानी पीड़ा से मूर्छित हो गईं और रानी के पुत्र को राक्षसी उठा कर ले गई। लेकिन रानी के आंख खुलने से पहले ही भगवान शिव के गणों ने गजानन को रानी पुष्पिका के पास भेज दिया। शिव के गणों द्वारा ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि क्योंकि गणपति भगवान ने पूर्वजन्म में राजा वरेण्य की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वह उनके यहां पुत्र रूप में जन्म लेंगे। यही कारण था की उन्होंने गजानन का अवतार लिया था। लेकिन जब रानी पुष्पिका ने अपने पास गजानन को गजमुख गणपति के रुप को देखा तो वे भयभीत हो गईं।
राजा नें गणपति को जंगल में छोड़ दिया
जब राज्य में सभी को इस बात का पता चला तो राजा वरेण्य को बताया गया की ऐसा बालक राज्य के लिए अशुभ है। यह बात सुनते ही राजा वरेण्य ने बालक को जंगल में छोड़ दिया। जंगल में इस शिशु के शरीर पर मिले शुभ लक्षणों को देखकर महर्षि पराशर उस बालक को आश्रम लाए। यहीं पर पत्नी वत्सला और पराशर ऋषि ने गणपति का पालन पोषण किया। बाद में राजा वरेण्य को यह पता चला कि जिस बालक को उन्होंने जंगल में छोड़ा था, वह कोई और नहीं बल्कि गणपति हैं। अपनी इसी गलती से हुए पश्चाताप के कारण वह भगवान गणपति से प्रार्थना करते हैं कि मैं अज्ञान के कारण आपके स्वरूप को पहचान नहीं सका इसलिए मुझे क्षमा करें।
भगवान गणेश ने राजा वरेण्य की प्रार्थना सुनी और उन्होंने राजा को अपने पूर्वजन्म के वरदान का स्मरण कराया। इसके बाद भगवान गणेश ने अपने पिता वरेण्य से अपने स्वधाम-यात्रा की आज्ञा मांगी। स्वधाम-गमन की बात सुनकर राजा वरेण्य ने आंसु भरी नेत्रों से गणेश जी से प्रार्थना करते हुए बोले की है कृपामय! मेरा अज्ञान दूरकर मुझे मुक्ति का मार्ग प्रदान करें। तब भगवान गणेश जी ने राजा वरेण्य को ज्ञानोपदेश दिया। जिसे आज गणेश-गीता के नाम से जाना जाता है।
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