विघ्नहर्ता सर्वसुख करता भगवान श्री गणेश जी की दो पत्नियां हैं एक ऋद्धि और दूसरी सिद्धि । कहा जाता है कि गणेश पूजा में जब तक इन दोनों का भी पूजन नहीं किया जाता तब तक गणेश जी की पूजा सफल नहीं मानी जाती अर्थात अधुरी ही रहती हैं । यदि विधिवत पूजा की जाये तो ऋद्धि-सिद्धि भी प्रसन्न होकर घर-परिवार में सुख शांति और संतानों को निर्मल विद्या-बुद्धि प्रदान करती हैं । भगवान गणेश की पत्नियां सिद्धि और ऋद्धि प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं । सिद्धि से 'क्षेम' और ऋद्धि से 'लाभ' नाम के शोभासम्पन्न दो पुत्र हुए हैं जो श्रीगणेश की संताने हैं ।
प्राचीन कथा
शास्त्रों के मुताबिक भगवान श्री गणेश की दो पत्नियां ऋद्धि-सिद्धि व पुत्र लाभ व क्षेम बताए गए हैं । जिनको लोक पंरपराओं में शुभ-लाभ भी कहा जाता है । ऐसी मान्यता हैं कि भगवान गणेश की पूजी में अगर ऋद्धि-सिद्धि जो कि यशस्वी, वैभवशाली व प्रतिष्ठित बनने का शुभ आशीर्वाद देने वाली है का भी पूजन नहीं किया जाता तो श्रीगणेश जी की कृपा भी नहीं मिल पाती, इसलिए शुभ-लाभ हर सुख-सौभाग्य की कामना से इनका पूजन भी अवश्य करना चाहिए ।
शास्त्रों के अनुसार सुख-सौभाग्य की कामना को पूरी करने के लिए गणेश चतुर्थी के दिन गणेश पूजन में श्री गणेश के साथ ऋद्धि-सिद्धि व लाभ-क्षेम का विशेष मंत्रों से स्मरण व पूजा बहुत ही शुभ माना जाता है ।
विशेष मंत्र एवं सलर पूजा विधि
गणेश चतुर्थी के दि प्रातः जल्दी स्नान करने के बाद ऋद्धि-सिद्धि सहित भगवान गणेश की मूर्ति को गंगाजल मिले शुद्धजल से स्नान कराकर उनके आस-पास लाभ-क्षेम स्वरूप दो स्वस्तिक बना दें । श्री गणेश व परिवार का गाय के घी का दीपक, धुप, केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा, मोदक अर्पित कर पूजा करें । बाद में गणेश आरती करें, प्रसाद बांटे व ग्रहण करें । पूजा के बाद नीचे दिये मंत्रों का उच्चारण करते हुए श्री गणेश व उनके परिवार को फूल चढ़ाकर शुभ व मंगल कामनाएं करें -
1- श्री गणेश जी मंत्र–
।। ॐ गं गणपतये नम: ।।
2- श्री ऋद्धि जी मंत्र
।। ॐ हेमवर्णायै ऋद्धये नम: ।।
3- श्री सिद्धि जी मंत्र
।। ॐ सर्वज्ञानभूषितायै नम: ।।
4- श्री लाभ मंत्र
।। ॐ सौभाग्य प्रदाय धन-धान्ययुक्ताय लाभाय नम: ।।
5- श्री शुभ मंत्र
।। ॐ पूर्णाय पूर्णमदाय शुभाय नम: ।।

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