कुंभ में साधु संतों के कुल इतने अखाड़े होते हैं, इनके दर्शन मात्र से दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता हैं

अगर ये कहा जाये की कुंभ भारतीय संस्कृति का आधार हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि भारत में लगने वाला कुंभ का मेला विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में से एक है, लाखों की संख्या में देश ही नहीं विदेशों के श्रद्धालु भी इस मेले में शामिल होते हैं । भारत की 4 पवित्र नदियों की गोद में हर बारह साल में एक बार कुंभ का मेला लगता हैं । इनमें से हरिद्वार में गंगा जी, उज्जैन में शिप्रा जी, नासिक में गोदावरी जी और प्रयागराज (इलाहाबाद) में जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता हैं की गोद में लगता हैं । यहां पर हर 6 साल में एक अर्ध कुंभ भी लगता हैं ।

 

कुंभ में अखाड़ों का विशेष महत्व होता हैं, पहले इनकी संख्या कम थी लेकिन अब वर्तमान में कुल 14 अखाड़ें हैं । अखाड़े शब्द की शुरुआत मुगलकाल के दौर से हुई, अखाड़ा साधुओं का वह दल होता है, जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता हैं और इनके संतों के दर्शन भी सरलता से नहीं हो पाते है, लेकिन इनके दर्शन जिसे हो जाये, जिस पर इनकी दष्टि पड़ जाये तो उनके जीवन का दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता हैं ।

kumbh mela

कुंभ में कुल इतने अखाड़ों की होती हैं पेशवाई

 

1- अटल अखाड़ा- इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं, इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ही दीक्षा ले सकते हैं और कोई अन्य इस अखाड़े में नहीं आ सकता । यह सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक माना जाता हैं ।

2- अवाहन अखाड़ा- इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन दोनों हैं । इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी हैं ।

3- निरंजनी अखाड़ा- यह अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा माना जाता हैं, इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्र्चर होते हैं । इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय जी हैं । कहा जाता हैं कि इस अखाड़े की स्थापना 826 ईसवी में हुई थी ।

4- पंचाग्नि अखाड़ा- इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते हैं । इनकी इष्ट देव मां गायत्री हैं और इनका प्रमुख केंद्र काशी हैं ।

 

5- महानिर्वाण अखाड़ा- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्मा इसी अखाड़े के पास हैं । इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं । इनकी स्थापना 671 ईसवी में हुई थी ।

6- आनंद अखाड़ा- इस अखाड़े की स्थापना 855 ईसवी में हुई थी । इस अखाड़े के आचार्य का पद ही प्रमुख होता हैं और इसका केंद्र वाराणसी हैं ।

7- निर्मोही अखाड़ा- वैष्णव संप्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं । इस अखाड़े की स्थापना रामानंदाचार्य ने 1720 में की थी । इस अखाड़े के मंदिर उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, बिहार, राजस्थान आदि जगहों पर स्थित हैं ।

 

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8- बड़ा उदासीन पंचायती अखाड़ा- इस अखाड़े की शुरुआत 1910 में हुई थी । इस अखाड़े के संस्थापक श्रीचंद्र आचार्य उदासीन हैं । इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य सेवा करना हैं ।

9- नया उदासीन अखाड़ा- इस अखाड़े की शुरुआत 1710 में हुई थी । ऐसी मान्यता है कि इस अखाड़े को बड़ा उदासीन अखाड़े के साधुओं ने बनाया था ।

 

10- निर्मल अखाड़ा- इस अखाड़े की स्थापना श्रीदुर्गासिंह महाराज ने की थी, जिनके ईष्टदेव पवित्र पुस्तक श्री गुरुग्रंथ साहिब हैं । कहा जाता है कि इस अखाड़े के लोगों को दूसरे अखाड़ों की तरह धूम्रपान करने की इजाजत नहीं हैं ।

11- वैष्णव अखाड़ा- इस अखाड़े की स्थापना मध्यमुरारी द्वारा की गई थी ।

12- नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा- इस अखाड़े की स्थापना 866 ईसवी में हुई, जिसके संस्थापक पीर शिवनाथ जी थे ।

 

13- जूना अखाड़ा- इस अखाड़े के ईष्टदेव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं । हरिद्वार में इस अखाड़े का आश्रम हैं । इस अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं ।

14- किन्नर अखाड़ा- अभी तक कुंभ में 13 अखाड़ों की पेशवाई होती थी, लेकिन इस बार कुंभ में किन्नर अखाड़ा भी शामिल हो चुका हैं । इस अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी हैं ।



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