अगर चाहते हैं आतंकवादियों का अंत, तो इस महाशिवरात्रि सब मिलकर करें, यह शत्रु विनाशक रूद्र स्तुति

महाशिवरात्रि सभी तरह की कामनाओं की पूर्ति का दिन माना जाता है, कुछ ही दिनों बाद यानी की 4 मार्च 2019 को आने वाला है शिवजी का सबसे बड़ा पर्व महाशिवरात्रि । इस दिन शिवजी से जो मांगा जाता हैं वे उस इच्छा को पूरी कर देते है, वर्तमान समय में जो स्थिति बनी हुई, शत्रुओं की बुरी नजर भारत पर हर लगी हुई । अगर सभी देशवासी मिलकर महाशिवरात्रि के दिन जिसको जब समय मिले तब सामुहिक रूप से आतंकवाद के संपूर्ण खात्मा के लिए भगवान महाकाल की इस शत्रु विनाशक स्थिति का पाठ जरूर करें, ऐसा एक साथ करने पर आतंक और आतंकवादियों का समूल विनाश हो जायेगा । जाने महाकाल शिव की शत्रु विनाशक स्तुति को कैसे करना है ।

 

त्रेतायुग में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने रावन जैसे भयंकर राक्षस शत्रु का नाश एवं उसके आतंक से सृष्टि को बचाने के लिए रामेशवरम में श्रीराम ने शिवजी की स्थापना कर महाकाल शिव की इसी शत्रु विनाशक स्तुति जिसे "रूद्राष्टकम" स्तुति कहा जाता हैं, का पाठ किया था और महादेव ने प्रसन्न होकर रामजी को विजयी होने और रावन जैसे आतंकी के विनाश का आशीर्वाद दिया था । परिणाम स्वरूप रावन के संपूर्ण आतंकवादी नामक कुल का अंत हो गया था । आज भी देश ही नही दुनिया आतंक से सहमी हुई है, ऐसे में अगर सभी मिलकर एक साथ भगवान महाकाल की इस शत्रु विनाशक स्तुति "रूद्राष्टकम" का पाठ, आतंकवाद के पूरी तरह से खात्मा की भावना से महाशिवरात्र पर किया जाय तो निश्चित ही आतंक समाप्त हो जायेगा ।

 

mahashivratri

।। अथ रुद्राष्टकम ।।

1- नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥

2- निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥


3- तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥

4- चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥


5- प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥

6- कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥


7- न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥

8- न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥

9- रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥


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