गंगा स्नान से ज्ञात-अज्ञात पाप कर्मों का नाश
पतित पावनी मां का विशेष पूजन गंगा दशहरा पर्व जेष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 12 जून दिन बुधवार है। मां गंगा की महत्ता भारतीय धर्मशास्त्रों एवं पुराणों के पन्नों-पन्नों में बिखरी हुई मिलती है। महाभारत में गंगा को पापनाशिनी तथा कलियुग का सबसे सर्वोत्तम महनीय जलतीर्थ माना गया है। जो भी व्यक्ति विशेषकर गंगा दशहरा पर्व के दिन गंगा मैया में स्नान करता है मां गंगा उसके सभी ज्ञात-अज्ञात पाप कर्मों से मुक्त कर देती है।
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पतित पावनी मां गंगा
कहा जाता है कि- जैसे अग्नि इंधन को जला देती है, उसी प्रकार सैकड़ों निषिद्ध कर्म करके भी यदि गंगास्नान किया जाय तो गंगाजल उन सब पापों को भस्म कर देता है। सतयुग में सभी तीर्थ पुण्यदायक-फलदायक होते हैं। त्रेता में पुष्कर का महत्त्व था, द्वापर में कुरुक्षेत्र विशेष पुण्यदायक महत्व था और इस कलियुग में गंगा की विशेष महिमा है। गंगा मैया के दर्शन मात्र में पापों का नाश हो जाता है, तो फिर स्नान करने की बात ही कुछ और है।
गंगाजी का जल अमृत है
देवी भागवत् में मां गंगा को पापों को धोने वाली त्राणकर्त्ती के रूप में उल्लेख किया गया है- गंगाजी का जल अमृत के तुल्य बहुगुणयुक्त पवित्र, उत्तम, आयुवर्धक, सर्वरोगनाशक, बलवीर्यवर्धक, परम पवित्र, हृदय को हितकर, दीपन पाचन, रुचिकारक, मीठा, उत्तम पथ्य और लघु होम है तथा भीतरी दोषों का नाशक बुद्धिजनक, तीनों दोषों को नाश करने वाले सभी जलों में श्रेष्ठ है।
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मां गंगा
मान्यता है कि- औषधि जाह्नवी तोयं वेद्यौ नारायण हरिः। अर्थात- आध्यात्मिक रोगों (पाप वृत्तियों, कषाय-कल्मष) की एक मात्र दवा गंगाजल है और उन रोगियों के चिकित्सक नारायण श्री हरि परमात्मा हैं। जिनका उपाय-उपचार गंगा तट पर स्नान, उपासना-साधना करने से होता है और अगर गंगा दशहरा के दिन मां गंगा की विशेष आरती संध्या के समय की जाय तो पाप ताप व रोगों से मुक्ति मिलती है।
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