पितृ पक्ष में कौए का बड़ा ही महत्व है। यही कारण है कि श्राद्ध का एक अंश कौए को भी दिया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कौआ अतिथि आगमन का सूचना तो देता ही है, साथ ही पितरों का आश्रम स्थल भी माना जाता है।
मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में अगर कौआ आपके दिए गए अन्न ग्रहण कर ले तो कहा जाता है कि आपके ऊपर पितरों की कृपा हो गई। गरूड़ पुराण के अनुसार, कौए को यम का संदेश वाहक कहा गया है। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में कौए का अधिक महत्व माना गया है।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में कौए को जो कोई भी भोजन कराता है, यह भोजन कौए के माध्यम पितर ग्रहण करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में विचरण कर सकती है। श्राद्ध पक्ष में कौए और पीपल को पितृ का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि इन दिनों में कौए को खाना खिलाकर और पीपल को पानी पिलाकर तृप्त किया जाता है।
कभी भी अकेले भोजन नहीं करता कौआ
ध्यान देने वाली बात है कि कौआ कभी भी अकेले भोजन नहीं करता है। अगर आप ध्यान देंगे तो देखेंगे कि कौआ किसी साथी के साथ मिलकर ही भोजन करता है। इसके अलावा यह भी ध्यान देने वाली बात है कि कौए की कभी भी स्वभाविक मृत्यु नहीं होती है। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से होती है। इसके बारे में कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त अमृत को इसने चख लिया था।
भगवान राम ने फोड़ दी कौए की आंख
कहा जाता है कि देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने कौआ का रूप धारण किया था। बताया जाता है कि त्रेतायुग में जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के के पौर में चोंच मार दी थी। तब भगवान राम में कौए रूपी जयंत की तिनके से आंख फोड़ दी थी।
जयंत ने भगवान राम से मांगी माफी
इसके बाद जयंत में भगवान राम से अपने किए की माफी मांगी। उसके बाद भगवान राम ने कौए को वरदान दिया कि पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोजन में से एक हिस्सा तुम्हे भी दिया जाएगा। तब से ही यह परंपरा चली आ रही है और कौए को श्राद्ध पक्ष में एक हिस्सा दिया जाता है।
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