छठ महापर्व: उमड़ेगा आस्था का जनसैलाब, देव सूर्य मंदिर में जुटेंगे 8-9 लाख श्रद्धालु

छठ महापर्व में सूर्य देवता व छठ मइया की पूजा का विशेष महत्‍व माना जाता है। छठपर्व 4 दिनों तक मनाया जाता है, इस दिन डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाता है। इस दौरान सभी नदी, तालाब व घाटों की रौनक और भी बढ़ जाती है। वहीं बिहार और झारखंड के लगभग सभी मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर यह पर्व मनाया जाता है लेकिन बिहार के औरंगाबाद जिले के देव सूर्य मंदिर में छठ महापर्व कुछ अलग ही अंदाज में मनाया जाता है।

 

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छठ पूजा के लिए इस मंदिर में हर साल लाखों श्रद्घालु दर्शन के लिये आते हैं। खास बात तो यह है कि देव सूर्य मंदिर में देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु दर्शन के लिये आते हैं। छठ पर्व के दौरान यहां छठव्रतियों की भारी भीड़ देखने को मिलती है।

 

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देश के कोने-कोने से आते हैं लोग

औरंगाबाद जिला मुख्यालय से करीब 18 किलामीटर दूर देव सूर्य मंदिर स्थित है। यह मंदिर पश्चिमोभिमुख सूर्य मंदिर है। जो की अपनी स्थापत्य और अद्धितिय शिल्पकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। आस्था एवं शिल्पकला के उत्कृष्ट उदाहरण माने जाने वाले देश के अपने तरह के इकलौते सूर्य मंदिर देव में श्रद्धालुओं का वैसे तो देश के तमाम हिस्सों से लोगों का आना जाना लगा ही रहता है। लेकिन साल के कार्तिक मास में खासकर छठ महापर्व के दौरान यहां का नजारा देखने लायक होता है।

 

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छठ पर लगता है मेला

छठ पर्व के दौरान यहां विशाल मेला लगता है। जिसमें लगभग 8 से 9 लाख श्रद्धालूओं की भीड़ भी जुटती है। जी हां लोक आस्था के महापर्व छठ के दौरान लोगों की अटुट आस्था यहां क्षद्धालुओं को खींच लाती है। यहां आकर लोग छठ व्रत का अनुष्ठान कर खुद को बहुत धन्य मानते हैं। मान्यता यह है कि यहां स्थित सूर्यकुण्ड तालाब में स्नान मात्र से ही सारे रोग दूर तो हो जाते हैं और कुष्ठ रोग तथा बांझपन की भी समस्या से निजात मिल जाता है।

 

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कोणार्क सूर्य मंदिर से भी पुराना है देव सूर्य मंदिर

देव स्थित सूर्य मंदिर को लेकर लोगों की मान्यता है कि यहां दर्शन के लिए आए श्रद्धालु जो भी मांगते हैं उनकी सभी मुरादें जरुर ही पूरी होती है। मंदिर के बाहर लगे शिलालेख से स्प्ष्ट होता है कि इस मंदिर का निर्माण काल का एक लाख पचास हजार बारह वर्ष पूरा हो गया है। मंदिर की अद्भुत कलात्मकता भव्यता के कारण किंवंदती है कि मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथें से एक रात में किया था। इसके निर्माणकाल के विषय में सही जानकारी किसी के पास नहीं है। सूर्य मंदिर को देखने से ऐसा लगता है कि बिना किसी जुड़ाई के पत्थर से ही इस मंदिर का निर्माण करवाया गया है। 8वीं शताब्दी के इस मंदिर को पुरातत्व विभाग ने काफी प्राचीन बताते हुये इसे उड़ीसा के कोणार्क मंदिर से दो सौ साल पुराना करार दिया है।



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