द्रौपदी को इसलिए आधी रात में मिला था अखंड सौभाग्यवती का वरदान

महाभारत युद्ध के दौरान जब भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर उनके साथ पांडवों की पत्नी द्रौपदी कौरव के शिविर में भीष्म पितामह से मिलने के लिए पहंचे। वहां पहुंचकर श्रीकृष्ण भीष्म पितामह के कक्ष के बाहर ही रूक गए और द्रौपदी ने अकेली ही कक्ष में प्रवेश किया। जानें आधी रात को द्रौपदी को क्यों और कैसे मिला अंखड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलेगा।

 

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जब द्रौपदी ने भीष्म पितामह के कक्ष अन्दर जाकर उनको प्रणाम किया तो, गंगा पुत्र ने को द्रौपदी अखंड सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद दे दिया। फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि- पुत्री तुम इतनी रात में अकेली यहां कैसे आई हो, क्या तुमको श्रीकृष्ण यहां लेकर आये है। तब द्रोपदी ने कहा, "हां पितामह गोविंद ही मुझे यहां लेकर आएं और वे आपके कक्ष के बाहर ही खड़े हैं। सुनते ही भीष्म पितामह तुरंत कक्ष के बाहर आ गए और फिर दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया।

 

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भीष्म पितामह ने कहा, मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम केवल श्रीकृष्ण ही कर सकते हैं। वार्तालाप पूर्ण होने के बाद शिविर से वापस लौटते समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि- तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है। अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होती, तो शायद इस महाभारत युद्ध की नौबत ही न आती।

 

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श्रीकृष्ण आगे कहत हैं कि अगर जो कोई मनुष्य अपने से बड़ों को नित्य प्रणाम करते हैं, उनका आशीर्वाद लेता है, उस मनुष्य के जीवन की बड़ी से बड़ी बाधाएं नष्ट हो जाती है। हे सखे, प्रेम की परिभाषा कुछ इस तरह समझी जा सकती है।
प्रणाम प्रेम है। प्रणाम अनुशासन है। प्रणाम शीतलता है। प्रणाम आदर सिखाता है। प्रणाम से सुविचार आते हैं। प्रणाम झुकना सिखाता है। प्रणाम क्रोध मिटाता है। प्रणाम आंसू धो देता है। प्रणाम अहंकार मिटाता है। प्रणाम हमारी संस्कृति है।

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