राजस्थान के करौली में कैला देवी का मंदिर विश्वभर में बहुत प्रसिद्द मंदिर है। कैला देवी का मंदिर उत्तर भारत के प्रसिद्ध दुर्गा मंदिरों में से एक माना जाता है। यहां सालभर भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है, लोग यहां मनोकामनाओं के साथ खाली झोली लेकर आते हैं और आशीर्वादों से भरी झोली लेकर जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार मंदिर से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटा जो भी सच्चे मन से जो भी मन्नत लेकर आता है उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है।
यहां होता है लक्खी मेले का आयोजन
कालीसिल नदी के चमत्कार विख्यात हैं। मान्यता है यहां आने वालों के लिए कालीसिल नदी में स्नान करना अनिवार्य है। कालीसिल नदी में स्नान के बाद ही भक्त कैला देवी के दर्शन के लिए जाते हैं। यहां साल में एक बार लक्खी मेले का आयोजन होता है। इसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और गुजरात समेत कई राज्यों से भारी मात्रा में भक्त पहुंचते हैं। यूं तो सालभर ही भक्तों की भीड़ लगी रहती है लेकिन नवरात्र के दिनों में भक्तों की भारी भीड़ यहां उमड़ती है।
बच्चों का मुंडन करवाने आते हैं लोग
मान्यताओं के अनुसार इसी स्थान पर बाबा केदारगिरी ने कठोर तपस्या कर माता के श्रीमुख की स्थापना की थी। कैला देवी के मंदिर में लोग अपने बच्चों का पहली बार मुंडन करवाते हैं और मां को अर्पित करते हैं। आसपास के क्षेत्र में यह भी मान्यता है की अगर किसी के परिवार में विवाह होता है तो नवविवाहित जोड़ा जब तक आकर मां का आशीर्वाद नहीं ले लेता तब तक परिवार का कोई सदस्य यहां दर्शन के लिये नहीं आता।
देवी के रूप में प्रकट हो गई थी बच्ची
माता देवकी के दुष्ट भाई कंस को जब से यह पता लगा था कि बहन की संतान ही उसकी मौत का कारण बनेगी तब से वह एक के बाद एक देवकी की संतान को मारता जा रहा था। इसी प्रकार से जब देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ तो उसी वक्त गोकुल में यशोदा और नंद के घर में बेटी का जन्म हुआ। इसके बाद वसुदेव गोकुल जाकर कृष्ण को वहां छोड़ आए और नंदरायजी की बेटी को अपने साथ मथुरा ले आए।
कंस को जब पता चला कि देवकी की आठवीं संतान हो चुकी है तो वह उसे भी मारने कारागार में पहुंचा। कंस ने उसे मारने के लिए जैसे ही शिला पर पटका वह देवी के रूप में प्रकट होकर आकाश में चली गईं। यह देवी योगमाया थीं। इसी देवी ने कंस को बताया कि तुम्हारा अंत करने वाला उत्पन्न हो चुका है। देवी भागवत पुराण के अनुसार इसके बाद देवी विंध्य पर्वत पर विंध्यवासिनी देवी के रूप में निवास करने लगीं। एक अन्य मत है कि कंस से छूटकर देवी राजस्थान में कैला देवी के रूप में विराजमान हुईं।
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