धर्म, शास्त्र कहते है कि तिलक के बिना कोई भी सत्कर्म सफल नहीं हो पाता, मिट्टी, चन्दन एवं भस्म आदि के तिलक को विद्वान या अन्य किसी के द्वारा लगाना चाहिए। माथे पर तिलक बैठकर ही लगाना या लगवाना चाहिये। लेकिन भगवान पर चढ़ाने के बाद बचे हुए चन्दन को ही अपने माथे पर लगाना चाहिये। शास्त्र कहते हैं कि जो व्यक्ति प्रतिदिन अपने माथे पर तिलक लगाते हैं उनकी बुद्धि प्रखर व विवेकावान होने के साथ उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होने लगती है।
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ऐसे लगाना चाहिए माथे पर तिलक
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार अनामिका तथा अंगूठा तिलक लगाने के लिए शुभ होते हैं। अनामिका अंगुली से तिलक धारण करने पर शांति मिलती है। मघ्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है। अंगूठा प्रभाव और ख्याति तथा आरोग्य प्रदान कराता है। इसीलिए राजतिलक अथवा विजय तिलक अंगूठे से ही करने की परंपरा रही है। अगर दोपहर से पहले भस्म का तिलक लगावे उसमें जल मिलाकर ही लगावे। दोपहर के बाद बिना जल मिलाये लगाना चाहिए। सुबह या दोपहर में चन्दन, अष्टगंध या कुमकुम का तिलक लगाने से मन मस्तिष्क में शांति बनी रहेगी।
माथे पर लगा हुआ तिलक हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है। तिलक केवल धार्मिक मान्यता ही नहीं है बल्कि इसके कई वैज्ञानिक कारण भी है। हिंदू धर्म में साधु, संतों के जितने पंथ है, संप्रदाय है वे सब अपने अलग-अलग प्रकार के तिलक लगाते हैं। हिन्दू धर्म में स्त्रियां लाल कुंकुम का तिलक लगाती है। लाल रंग ऊर्जा एवं स्फूर्ति का प्रतीक होता है। तिलक स्त्रियों के सौंदर्य में अभिवृद्धि करता है। तिलक लगाना देवी की आराधना से भी जुड़ा है। देवी की पूजा करने के बाद माथे पर तिलक लगाया जाता है। तिलक देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
शास्त्रों में कुल 7 प्रकार के तिलकों का मुल्लेख मिलता है, जिसे- सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों में अलग-अलग तिलक लगाये जाते हैं।
1- शैव- शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है ।
2- शाक्त- शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।
3- वैष्णव- वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए है। इनमें प्रमुख हैं- लालश्री तिलक-इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।
4- विष्णुस्वामी तिलक- यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है।
5- रामानंद तिलक- विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है।
6- श्यामश्री तिलक- इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।
7- अन्य तिलक- गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।
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