भगवान शिव को महादेव कहा जाता है और शिव जैसा भोला भी कोई नहीं है, इसलिये ही उनका नाम भोलेनाथ पड़ा। माता पार्वती नें भगवान शिव को पाने के लिये घोर तपस्या की और उन्हें पाया, जिसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव का महाशिवरात्रि के दिन विवाह हुआ। यही कारण है की हर साल महाशिवरात्रि के दिन बहुत ही धूम-धाम से यह पर्व मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है माता पार्वति ने भगवान शिव को पाने के लिये घोर तपस्या कहां की थी, तो आइए जानते हैं...
यहां की थी माता पार्वती नें तपस्या
दरअसल, भगवान शिव को पाने के लिये माता पार्वती ने जहां तपस्या की थी वो जगह केदारनाथ के पास स्थित गौरी कुंड है। गौरी कुंड बहुत ही प्रसिद्ध व प्रभावी जगह मानी जाती है, यहां की सबसे खास बात यह है कि यहां का पानी सर्दी में भी गर्म रहता है। बताया जाता है कि जब माता गौरी नें अपनी तपस्या पूरी की उसके बाद उन्होंने गुप्तकाशी में शिव जी के सामने विवाह प्रस्ताव रखा जो कि स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद देवी पार्वती नें अपने पति हिमालय से प्रस्ताव रखा और विवाह की तैयारियां शुरु कर दी। इसके बाद रुद्रप्रयाग जिले में भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हो गई।
यहां हुई थी भगवान शिव और माता पार्वती की शादी
रुद्रप्रयाग जिले का एक गांव है त्रिर्युगी नारायण। ऐसी प्रबल मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हिमालय के मंदाकिनी इलाके में त्रियुगीनारायण गांव में ही संपन्न हुआ था। यहां एक पवित्र अग्नि भी जलती रहती है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह त्रेतायुग से लगातार जल रही है और इसी के सामने भगवान शिव ने मां पार्वती के साथ फेरे लिए थे। विवाह में भाई की सभी रस्में भगवान विष्णु ने और पंडित की रस्में ब्रह्माजी ने पूरी की थीं। विवाह में बहुत महान तपस्वी, ऋषि-महर्षि भी शामिल हुए थे।
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