नाग पूजा हमारे धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है। नाग देवता के कई ऐसे अनोखे मंदिर भी भारत देश में हैं जो कि बहुत प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर हैं। यहां नाग देवताओं की पूजा की जाती है। इन्हीं सभी स्थानों में एक स्थान हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से करीब 70 किलोमीटर दूर है।
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इस स्थान की खासियत यह है कि यहां पानी के नीचे छिपा हुआ खजाना दिखाई देता है। लेकिन यहां के स्थानियों का कहना है कि नाग देवता के होने के कारण वहां आज तक कोई खजाने के छू नहीं पाया और जिसने भी इस खजाने को चुराने की कोशिश की उसके साथ कुछ ना कुछ अनर्थ हुआ। आइए इस विचित्र मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं...
यहां है यह अद्भुत स्थान
दरअसल, हम जिस अद्भुत स्थान के बारे में बात कर रहे थे। वो मंडी जिले के कमराह नामक स्थान में मौजूद घने जंगलों से घिरी एक पहाड़ी है, जिसका नाम कमरूनाग है। पुरातत्व विभाग का कहना है की इस झील में नजर आने वाला खजाना महाभारत काल का है और झील के किनारे कमरूनाग देवता का मंदिर है। जो की इस खजाने की रक्षा करता है। इस मंदिर में जुलाई के महीने में मेले का आयोजन किया जाता है और नाग देवता की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है।
मुराद पूरी होने पर चढ़ाते हैं सोने-चांदी का चढ़ावा
मान्यताओं के अनुसार कमरूनाम झील की रक्षा स्वयं कमरूनाग ही करते हैं। यहां लोग अपनी मन्नतें पूरी होने के बाद करने के लिये सोने-चांदी का चढ़ावा चढ़ाते हैं। हालांकि कमरूनाग झील में सोना-चांदी और रुपये-पैसे चढ़ाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। बता दें कि समुद्रतल से नौ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस झील में अरबों का खजाना है। जो कि पानी से बिल्कुल साफ नजर आता है।
पांडवों की संपत्ति है झील में पड़ा खजाना
झील में पड़े खजाने की सुरक्षा स्वयं कमरूनाग देवता करते हैं। कहा जाता है कि एक बार एक आदमी ने झील से खजाने को चुराने का प्रयास किया। इसके लिए उसने झील के मुहाने पर छेद करके सारा पानी निकालने का प्रयास किया। कहा जाता है कि इस प्रयास में उसकी जान ही चली गई। इसके अलावा एक बार एक चोर ने झील से खजाने की चोरी का प्रयास किया। बाद में वह पकड़ा गया। कहा जाता है कि इस घटना के बाद उसकी आंखें पूर्ण रूप से खराब हो गईं। पौराणिक मान्यता यह भी है कि झील में पड़ा खजाना पांडवों की संपत्ति है। जिसे उन्होंने कमरूनाग देवता को समर्पित कर दिया था।
तो ऐसा पड़ा नाग देवता का नाम कमरूनाग
पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव रत्नयक्ष (जिन्हें महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने अपनी रथ की पताका से टांग दिया था) को एक पिटारी में लेकर हिमालय की ओर लेकर जा रहे थे। जब वह नलसर पहुंचे तब उन्हें एक आवाज सुनाई दी। जिसने उनसे उस पिटारी को एकांत स्थान पर ले जाने का निवेदन किया। इसके बाद वह उसे कमरूघाटी लेकर गए। वहां एक भेड़पालक को देखकर रत्नयक्ष इतना प्रभावित हुआ कि उसने वहीं रुकने का निवेदन किया।
क्योंकि रत्नयक्ष का जन्म उसी क्षेत्र में हुआ था। उसने पांडवों और उस भेड़चालक को बताया कि त्रेतायुग में उसका जन्म इसी स्थान पर हुआ था। उसे जन्म देने वाली नारी नागों की पूजा करती थी। उसने उसके गर्भ से 9 पुत्रों के साथ जन्म लिया था। रत्नयक्ष ने बताया कि उनकी मां उन्हें एक पिटारे में रखती थीं। लेकिन एक दिन उनके घर आई एक अतिथि महिला के हाथ से यह पिटारा गिर गया और सभी सांप के बच्चे आग में गिर गए। लेकिन रत्नयक्ष अपनी जान बचाने के प्रयास में झील के किनारे छिप गए। बाद में उनकी माता ने उन्हें ढू़ढ़ निकाला और उनका नाम कमरूनाग रख दिया।
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