सनातन धर्म में कई भगवानों के समय समय पर धरती मे अवतार लेने की कथाएं मिलती है। इनमें से जहां भगवान शिव के कुछ अवतार शामिल हैं, वहीं माना जाता है कि जगत के पालनहार भगवान विष्णु अब तक नौ रुपों में अवतार ले चुके हैं। इनमें से जहां श्रीराम को उनका सातवां अवतार माना जाता है, वहीं श्रीकृष्ण को आठवां अवतार...
श्रीराम के संबंध में हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार जहां उन्होंने अयोध्या में अवतार लिया था वहीं श्रीकृष्ण का बचपन मथुरा में गुजरा था, ऐसे में आज हम आपको श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े एक ऐसे पर्वत के बारे में बता रहे हैं, जो आज लोगों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार कान्हा की नगरी मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत एक समय में दुनिया का सबसे बड़ा पर्वत था। कहा जाता है कि यह इतना बड़ा था कि सूर्य को भी ढ़क लेता था। इस पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में अपनी उंगली पर उठाकर इंद्र के प्रकोप से ब्रज को लोगों की मदद की थी।
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। इस पर्वत को लेकर धार्मिक मान्यता है कि यह पर्वत हर रोज तिल भर घटता जा रहा है। गोवर्धन पर्वत के तिल भर घटने की पीछे एक बेहद रोचक कहानी भी है।
दरअसल ब्रज में भगवान कृष्ण के समान गोवर्धन पर्वत को भी पवित्र माना जाता है, वहीं इसे भगवान का निवास स्थान माना जाता है। ऐसे में इस पर्वत की परिक्रमा लगाने ना सिर्फ देशभर से लोग आते हैं, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु यहां परिक्रमा करते हैं।
माना जाता है कि गिरिराज पर्वत हर रोज घट रहे हैं और कलयुग के अंत तक पूरी तरह विलीन हो जाएंगे।
भक्तों का मानना है कि गोवर्धन की परिक्रमा करके वह भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर रहे हैं। यह परिक्रमा सात कोस यानी 21 किमी है। वर्तमान में इस पर्वत का 7 किमी का हिस्सा राजस्थान में आता है और जबकि बाकी का हिस्सा उत्तर प्रदेश में आता है।
जानकारों के अनुसार यह केवल मान्यता नहीं है बल्कि विशेषज्ञों का भी कहना है कि 5 हजार साल पहले गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब यह पर्वत केवल 30 मीटर ही रह गया है।
भगवान श्रीकृष्ण ने ही ब्रज के लोगों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था, तभी से इस पर्वत की पूजा और परिक्रमा की जा रही है। यहां पर सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है और कोई खाली हाथ नहीं लौटता। साथ ही ना कोई भूखा रहता।
क्यों घट रहा है ये पर्वत!
मान्यता के अनुसार गोवर्धन पर्वत के हर रोज घटने का कारण ऋषि पुलस्त्य का शाप है। दरअसल एक बार ऋषि पुलस्त्य गिरिराज पर्वत के पास से गुजर रहे थे, तभी उनको इसकी खूबसूरती इतनी पसंद आई की वे मंत्रमुग्ध हो गए।
ऋषि पुलस्त्य ने द्रोणांचल पर्वत से निवेदन किया मैं काशी में रहता हूं आप अपने पुत्र गोवर्धन को मुझे दे दीजिए। मैं उसको काशी में स्थापित करुंगा और वहीं रहकर पूजा करुंगा।
द्रोणांचल पुत्र मोह से दुखी हो रहे थे लेकिन गोवर्धन ने कहा कि हे महात्मा, मैं आपके साथ चलूंगा लेकिन मेरी एक शर्त है। शर्त यह है कि आप मुझे सबसे पहले जहां भी रख देंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। पुलस्त्य ने गोवर्धन की शर्त को मान ली।
तब गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि मैं दो योजन ऊंचा और पांच योजन चौड़ा हूं, आप मुझे काशी कैसे लेकर जाएंगे। तब ऋषि ने कहा कि मैं अपने तपोबल के माध्यम से तुमको अपनी हथेली पर उठाकर ले जाउंगा।
रास्ते में ब्रज आया, तब गोवर्धन पर्वत को याद आया कि यहां पर भगवान कृष्ण अपने बाल्यकाल में लीला कर रहे हैं। यह सोचकर गोवर्धन पर्वत ऋषि के हाथों में अपना भार बढ़ाने लगे, जिससे ऋषि ने आराम और साधना के लिए पर्वत को नीचे रख दिया। ऋषि पुलस्त्य यह बात भूल गए थे कि उन्हें गोवर्धन पर्वत को कहीं पर भी रखना नहीं है।
साधना के बाद ऋषि ने पर्वत को उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन पर्वत हिला तक नहीं। इससे ऋषि पुलस्त्य बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने शाप दे दिया कि तुमने मेरे मनोरथ को पूर्ण नहीं होने दिया, इसलिए अब हर रोज तिल भर तुम्हारा क्षरण होता रहेगा। माना जाता है कि उसी समय से गिरिराज पर्वत हर रोज घट रहे हैं और कलयुग के अंत तक पूरी तरह विलीन हो जाएंगे।
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