प्राचीनकाल में रथ-पूजन, अश्व-पूजन, शस्त्र-पूजन कर इस परंपरा निर्वाह किया जाता था, वर्तमान में इस परंपरा का स्वरूप परिवर्तित होकर वाहन-पूजन के रूप में हमें दिखाई देता है, इसमें कोई बुराई नहीं किंतु हमें अपनी मूल परंपराओं का ज्ञान अवश्य होना चाहिए।
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