भगवान शिव का तीर्थ: कभी देवी मां लक्ष्मी ने स्वयं खोदा था ये कुंड, आज इस कुंड के पवित्र जल से होता है शिवलिंग का जलाभिषेक

भारत में सनातन धर्म को मानने वालों की संख्या सबसे अधिक है, ऐसे में सनातन धर्म में मंदिरों में भगवानों की पूजा के चलते देश भर में 33 कोटी देवों के करोड़ों मंदिर है। ऐसे में देवभूमि उत्तराखंड की पावन भूमि पर भी ढेर सारे पावन मंदिर और स्थल हैं। उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। भगवान शिव इसी धरा पर निवास करते हैं। इसी जगह पर भगवान शिव का एक बेहद ही खूबसूरत मंदिर है ताड़केश्वर भगवान का मंदिर।

माना जाता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत भगवान पूरी करते हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु न केवल देश से बल्कि विदेशों से भी आते हैं। वहीं इस मंदिर के पीछे एक बेहद रोचक कहानी भी छिपी है।

मंदिर की विशेषता...
भगवान शिव का यह ताड़केश्वर महादेव मंदिर सिद्ध पीठों में से एक है। बलूत और देवदार के वनों से घिरा हुआ ये मंदिर देखने में बहुत मनोरम लगता है। यहां कई पानी के छोटे छोटे झरने भी बहते हैं। यह मंदिर यहां आप किसी भी दिन सुबह 8 बजे से 5 बजे तक दर्शन कर सकते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि पर यहां का नजारा अद्भुत होता है। इस अवसर पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।

इसके साथ ही मंदिर परिसर में एक कुंड भी मौजूद है। जिसके संबंध में मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था। वर्तमान में इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों का लाना वर्जित है।

वहीं पौराणिक कथाओं के अनुसार, ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों से भगवान शिव से प्रार्थना कर ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा।

ताड़कसुर का अंत केवल भगवान शिव और माता पार्वती का पुत्र कार्तिकेय कर सकते थे। भगवान शिव के आदेश पर कार्तिकेय ताड़कासुर से युद्ध करने पहुंच गए। ऐसे में अपना अंत नजदीक जानकर ताड़कासुर भगवान शिव से क्षमा मांगता है।

जिस कारण भोलेनाथ असुरराज ताड़कासुर को क्षमा कर देते हैं और वरदान देते हैं कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलेनाथ ताड़केश्वर कहलाते हैं। वहीं इस मंदिर को लेर एक अन्य दंतकथा भी यहां प्रसिद्ध है, जिसके अनुसार एक साधु यहां रहते थे जो आस-पास के पशु पक्षियों को सताने वाले को ताड़ते यानी दंड देते थे। इनके नाम से यह मंदिर ताड़केश्वर के नाम से जाना गया।

वहीं ये भी माना जाता है कि ताड़कासुर से युद्ध व कार्तिकेय द्वारा उसका वध किए जाने के बाद भगवान शिव ने यहां पर विश्राम किया था। विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज किरणें पड़ रही थीं। भगवान शिव पर छाया करने के लिए स्वयं माता पार्वती सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुईं। इसलिए आज भी मंदिर के पास स्थित 7 देवदार के वृक्षों को देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।



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