माता लक्ष्मी के इस मंदिर में प्रसाद के रूप में मिलते हैं सोने-चांदी के सिक्के

आज धनतेरस है और कल दिवाली। लाइट फेस्टिवल के नाम से पहचाने जाने वाले दिवाली के पर्व के दिन सभी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करते हैं, ताकि घर में मां लक्ष्मी का आगमन हो। लेकिन आज हम आपको मां लक्ष्मी के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो बेहद ही खास है। हमारे देश में हर मंदिर की एक विशेषता और एक अलग कहानी है। मंदिरों में भक्त भगवान को भोग लगाते हैं। उसी भोग को प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि माता लक्ष्मी का एक ऐसा मंदिर भी है जहां प्रसाद के रूप में सोने और चांदी के सिक्के दिए जाते हैं। आइए जानते हैं माता लक्ष्मी के उस मंदिर में बारे में....

 

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मां महालक्ष्मी मंदिर रतलाम
मध्यप्रदेश के रतलाम के माणक में मां महालक्ष्मी का मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में लक्ष्मी जी के साथ धन कोषाध्यक्ष कुबेर की भी पूजा की जाती है। इस मंदिर के कपाट धनतेरस के दिन ही खुलते हैं। धनतेरस के दिन ब्रह्ममुहूर्त के दिन यह मंदिर खुलता है भाईदूज के दिन तक खुला रहता है। धनतेरस के दिन यह मंदिर पूरी तरह से सोने और चांदी के गहनों और नोट से सजा होता है।

बांटे जाते हैं सोने और चांदी के सिक्के
धनतेरस के 8 दिन पहले इस मंदिर में सजावट का काम शुरू हो जाता है। पूरे विधि-विधान से माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि यहां से प्रसाद के रूप में मिले सोने-चांदी के सिक्के और आभूषणों को घर ले जाने से धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती।

 

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टोकन से मिलती हैं मंदिर में एंट्री
रतलाम के इस मंदिर में लोग बहुत सारे आभूषण और नोटों की गड्डियां लेकर आते हैं। मंदिर में प्रवेश से पहले श्रद्धालुओं को टोकन कटवाना पड़ता है और जाते समय उस टोकन के हिसाब से उन्हें प्रसाद दिया जाता है। लोगों का मानना है कि प्रसाद के रूप में मिले आभूषण, सिक्के घर ले जाने से लोग अमीर बन जाते हैं।

बरसों से चली आ रही है ये परंपरा
कहते हैं रतलाम शहर पर राज करने वाले उस समय के तत्कालीन राजा को महालक्ष्मी माता ने स्वप्न दिया था। इसके बाद से उनके द्वारा ही यह परंपरा शुरू की गई थी। इस परंपरा को उस समय से आज तक निभाया जा रहा है। इस मंदिर की यह अनूठी परंपरा ही इसे बाकी मंदिरों से अलग और खास बनाती है। शायद ही और कोई ऐसा मंदिर होगा जिसमें प्रसाद के रूप में चांदी और सोने के सिक्के मिलते हैं।



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