Vaikunth Chaturdashi 2020: इस मंदिर में खड़े दीए की होती है पूजा, निसंतान दंपत्तियों की भरती है गोद

हिंदू धर्म में कार्तिक महीने (जो इस समय चल रहा है) का विशेष महत्व माना जाता है। ये महीना भगवान विष्णु की आराधना के लिए विशेष महत्व रखता है। इस महीने में कई धार्मिक आयोजन व त्यौहार भी होते हैं, जो विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होते हैं। ऐसा ही एक विशेष दिन बैकुंठ चतुर्दशी (Baikunth Chaturdashi 2020) का भी है, जो इस बार 28 नवंबर को है।

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को विशेष रूप ने नारायण की पूजा का विधान है, ताकि मोक्ष की प्राप्ति की जा सके। वहीं इस विशेष दिन देवभूमि उत्तराखंड के श्रीनगर में स्थित कमलेश्वर मंदिर (Kamleshwar Mandir) में खास पूजा अर्चना की जाती है और माना जाता हकै कि इस पूजा से निसंतान दंपत्तियों की गोद भर जाती है।

Baikunth Chaturdashi 2020: An Special temple for get children

मंदिर में लगता है मेला
बैकुंठ चतुर्दशी (Baikunth Chaturdashi) के मौके पर यहां दो दिवसीय मेले का आयोजन होता है और इस मेले में विशेष रूप से वो महिलाएं पहुंचती है, जो लाख कोशिशों के बाद भी मां नहीं बन सकीं। संतान की इच्छा लिए महिलाएं इस मेले में पहुंचती है, जहां दीया हाथ में लेकर रात भर भगवान से प्रार्थना की जाती है। इस अनुष्ठान में शामिल होने के लिए बाकायदा रजिस्ट्रेशन तक होता है और भाग्यशाली दंपत्तियों को इसमें शामिल होने का मौका मिलता है।

कमलेश्वर मंदिर एक ऐसा मंदिर है जहां अद्भुत शक्ति के नजारे को लोग अपनी आंखों में बसा लेते हैं। कलयुग में भले ही कम लोग इस बात पर भरोसा करें लेकिन सच ये भी है कि इस मंदिर में जो भी निसंतान आया उसे संतान की प्राप्ति हुई है।

पूजा : खड़े दीए की
संतान की इच्छा के लिए महिलाएं बैकुंठ चतुर्दशी के दिन खड़े दीए की पूजा करती हैं। ये पूजा काफी कठिन भी मानी जाती है। इस पूजा में चतुर्दशी के दिन से शुरु हुए उपवास के बाद रात को मंदिर में स्थापित शिवलिंग के सामने महिलाएं हाथ में दीपक पकड़कर रात भर खड़ी रहती हैं और भोलेनाथ से संतान प्राप्ति का वरदान मांगती हैं।

ऐसे होता है अनुष्ठान
वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोधूलि बेला पर पुजारी दीपक प्रज्वलित कर अनुष्ठान की शुरुआत करते हैं। मंदिर के ब्राहमणों द्वारा हर निसंतान दंपति से संकल्प लिया जाता है और पूजा कराई जाती है। खड़ारात्रि पूजा कर रही महिलाएं दो जुड़वा नींबू, दो अखरोट, श्रीफल, चावल और पंचमेवा को अपनी कोख से बांधती हैं। इसके बाद घी से भरा दीपक लेकर रात भर खड़ी रहती हैं। महिला अगर थक जाए तो उसके पति या परिवार के सदस्य कुछ देर के लिए दीपक को हाथ में ले सकते हैं।

दूसरे दिन सुबह शुभ मुर्हत पर भगवान कमलेश्वर का अभिषेक किया जाता है। हर दंपति अपना दीपक शिव मंहत को साक्षी मान शिवार्पण करते हैं। बाद में श्रीफल देकर निसंतान दंपतियों को भोजन कराया जाता है।

इससे पहले बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन की वेदनी बेला पर शुरू हुए उपवास के बाद रात्रि के 2 बजे महंत द्वारा शिवलिगं के आगे एक विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। जिसमें 100 व्यजनों का भोग लगाकर शिवलिगं को मक्खन से ढक दिया जाता है। इसके बाद नि:संतान दंपति को अनुष्ठान पूरा करना होता है। जिसके तहत वे जलता हुआ दीपक लेकर पूरी रात 'ओम् नम: शिवाय' का जप करते हुए खड़े रहते हैं।

कमलेश्वर मंदिर से जुड़ी है ये प्राचीन कथा
मान्यता है कि कमलेश्वर मंदिर में भगवान विष्णु ने देवासुर संग्राम के दौरान अस्त्र शस्त्रों के लिए भगवान शंकर की तपस्या की थी। कहा जाता है कि उस दौरान उस पूजा के साक्षी कुछ निसंतान दंपति भी थे जिन्होंने भगवान शिव से संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की थी। तब भगवान शिव ने कहा कि जो भी कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के अवसर पर पूरी रात खड़ा दीया अनुष्ठान करेगा उसे संतान की प्राप्ति होगी। तभी से बैकुंठ चतुर्दशी की रात यहां निसंतान महिलाएं विशेष पूजा करती हैं और ईश्वर की कृपा से उनकी गोद भर जाती है।

वहीं एक अन्य कथा के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने जामवंती के कहने पर कमलेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना की। जिसके बाद उन्हें स्वाम नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। इस अनुष्ठान को एक नि:संतान दंपति ने देखा और शिव की आराधना की जिसके बाद उन्हें भी संतान की प्राप्ति हुई। मन्दिर से जुड़ी एक और मान्यता के अनुसार ब्राह्मण हत्या से मुक्ति पाने के लिए श्रीराम चन्द्र जी ने इसी स्थल पर शिव की तपस्या की थी।



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