देवभूमि उत्तराखंड की धरती से लोगों की आस्था का सदियों पुराना नाता है। यहां कदम कदम पर मौजूद देवस्थान ये साबित करने के लिए काफी हैं। देवी-देवताओं की इस धरती में हजारों मंदिर अपनी अलग ही कहानी समेटे हुए हैं।
इन्ही मंदिरों में एक पाषाण देवी मंदिर भी है। जो देवभूमि उत्तराखंड के नैनीताल जिले में मौजूद है। इस पाषाण देवी मंदिर नैनीताल के लोगों के साथ साथ पूरे देश से आने वाले भक्तों के लिए खासा महत्व रखता है।
खासतौर से नवरात्रि के पावन पर्व में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। जबकि नवरात्रि के नवें दिन इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि इस दिन मंदिर में मां भगवती के सभी 9 स्वरूपों के दर्शन एक साथ होते हैं। मां के नौ रूपों के दर्शन के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं।
नैनी झील के किनारे चट्टान पर मां भगवती की कुदरती आकृति बनी हुई है। वहीं नौ पिंडी को मां भगवती के नौ स्वरूप माना जाता है। मंदिर में माता को सिंदूर का चोला पहनाया जाता है। साथ ही मान्यता है कि माता की पादुकाएं नैनीताल की झील के अंदर हैं। इसलिए झील के जल को कैलास मानसरोवर की तरह पवित्र माना जाता है।
श्रद्धालु इस नैनी सरोवर के जल को अपने घर लेकर जाते हैं। कहा जाता है कि ये इतना पवित्र जल है कि इससे त्वचा से संबंधित तमाम रोग दूर हो जाते हैं। लोक मान्यता है कि जल को घर में रखने से घर में सुख शांति बनी रहती है।
मान्यता है कि एक बार एक अंग्रेज अफसर मां पाषाण देवी मंदिर से गुजर रहा था। उसने पास में बने इस छोटे से मंदिर को देखा तो उपहास करने लगा। तभी अचानक उसका घोड़ा बिदक गया और अंग्रेज अफसर घोड़े सहित झील में गिर गया।
जब अंग्रेज अफसर ने मां से क्षमा-याचना मांगी तब जाकर वो आगे बढ़ सका। इसके बाद उसे गलती का एहसास हुआ और स्थानीय महिलाओं के सहयोग से उसने माता को सिंदूर का चोला पहनाया। जिसके बाद से यहां पर मां का श्रृंगार सिंदूरी के चोले से किया जाता है।
यहां प्रत्येक मंगलवार, शनिवार और नवरात्रि पर मां को चोली पहनाने की परंपरा है। माना जाता है कि मां को स्नान कराए गए पानी से समस्त त्वचा रोग दूर होते हैं। जल को लेने के लिए दूर-दूर से लोग नैनीताल के इस मंदिर में आते हैं। नवरात्रि में यहां पूजा- अर्चना करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। यहां अद्भुत दैवीय शक्ति का अहसास भी होता है।
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