हर माह में पड़ने वाली दो एकादशी के हिसाब से साल में 24 एकादशी का व्रत किया जाता है। व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का व्रत माना जाता है, वहीं इन्हीं एकादशियों में से पौष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी पौष पुत्रदा एकादशी कहलाती है। जो इस बार 24 जनवरी 2021 को मनाई जाएगी।
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि ये व्रत करने वालों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही नाम से भी विदित है कि ये व्रत संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करना उत्तम माना जाता है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत मुहूर्त 2021...
: पौष पुत्रदा एकादशी पारणा मुहूर्त :07:12:49 से 09:21:06 तक 25, जनवरी को
: अवधि :2 घंटे 8 मिनट
इस व्रत को रखने के नियम?
यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है निर्जला और फलाहारी या जलीय व्रत। माना जाता है कि सामान्यतः निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए। इस के तहत व्रत से एक दिन पहले सात्विक भोजन करना चाहिए। प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से विष्णु भगवान की पूजा करें व्रत के अगले दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।
इस व्रत को निर्जला यानि बिना जल के किया जाता है। यदि विशेष परिस्थितियों में व्रती की क्षमता नहीं है तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार किया जा सकता है।
निसंतान दंपतियों के लिए खास
एकादशी तिथियों में पुत्रदा एकादशी का भी विशेष स्थान है। निसंतान दंपतियों के लिए यह व्रत एक बहुत महत्व रखता है। यह व्रत संतान प्राप्ति और संतान उन्नत्ति की कामना के लिए किया जाता है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा, नियम और विधि-विधान से पुत्रदा एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें योग्य संतान की प्राप्ति होती है, इसी कारण इसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। पौष माह में पड़ने के कारण इसे पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं।
पौष पुत्रदा एकादशी पूजा विधि
पौष पुत्रदा एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
1. पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
हर एकादशी तिथि की तरह पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के नियम भी दशमी तिथि से ही आरंभ हो जाते हैं। इसलिए यदि आप एकादशी का व्रत करने जा रहे हैं तो दशमी तिथि को दूसरे प्रहर का भोजन करने के बाद सूर्यास्त के बाद भोजन न करें।
2. प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवान का ध्यान करें। गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए।
3. इस व्रत में व्रत रखने वाले बिना जल के रहना चाहिए। यदि व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं।
4. व्रत के अगले दिन द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।
संतान की कामना के लिए...
संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की भी पूजा की जाती है। इसके लिए प्रातः काल पति-पत्नी को संयुक्त रूप से श्री कृष्ण की उपासना करनी चाहिए। उन्हें पीले फल, पीले फूल, तुलसी दल और पंचामृत अर्पित करें। इसके बाद संतान गोपाल मन्त्र का जाप करें। मंत्र जाप के बाद पति पत्नी संयुक्त रूप से प्रसाद ग्रहण करें। एकादशी के दिन भगवान् कृष्ण को पंचामृत का भोग लगाएं।
पौष पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा
एक समय की बात है भद्रावती नगर में सुकेतु नाम के राजा का राज्य था। राजा सुकेतु और उनकी रानी शैव्या के कोई संतान ना थी। इसके कारण दोनों पति-पत्नी बेहद दुखी रहते थे। एक दिन राजा सुकेतु ने अपनी रानी शैव्या के साथ वन जाने का मन बना लिया, और अपना राजपाठ मंत्री को सौंप कर निकल पड़े। वन पहुंचने के बाद राजा सुकेतु के मन में आत्महत्या करने का ख्याल आया, लेकिन फिर उनके अंतर्मन से मन आवाज आई की आत्महत्या करने से बड़ा पाप और कोई नहीं।
इसके बाद अचानक राजा सुकेतु के कानों में वेदों के पाठ गुंजने लगे और राजा सुकेतु और उनकी पत्नी उस ध्वनि को सुनते हुए साधुओं के पास पहुंची। जहां साधुओं ने उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के महत्व के बारे में ज्ञात कराया। दोनों पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और उन्हें संतान प्राप्ति हुई। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तब से पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व बढ़ गया, और नि:संतान दंपत्ति इस व्रत को करने लगे। इसलिए ऐसी मान्यता है कि जो दंपत्ति नि:संतान है, उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी व्रत जरूर करना चाहिए।
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