Mata Purnagiri Darshan 2021 : एक दिन में दस हजार श्रद्धालु ही करेंगे,मां पूर्णागिरि के दर्शन

देवी मां के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है पूर्णागिरी माता का मंदिर, जिसे महाकाली की पीठ भी माना जाता है। देव भूमि उत्तराखंड में मौजूद पूर्णागिरी माता का मंदिर पर हर नवरात्रि को भक्तों की माता के दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। लेकिन इस बार कोरोना के 2021 में पुन: लगातार बढ़नेे को देखते हुए माता के दर्शन को लेकर प्रशासन को कुछ नए निर्णय लेने पड़े हैं।

दरअसल चम्पावत जिला प्रशासन ने एसओपी जारी करते हुए कहा है कि 30 मार्च से शुरु हो रहे पूर्णागिरि मेले के दौरान इस बार एक दिन में अधिकतम दस हजार श्रद्धालु ही मां पूर्णागिरि के दर्शन कर सकेंगे। श्रद्धालुओं को मेले में आने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य रूप से कराना होगा।

शनिवार देर शाम डीएम विनीत तोमर की अध्यक्षता में हुई बैठक में एसओपी को अंतिम रूप दिया गया। मेले में पहली बार श्रद्धालुओं की संख्या सीमित की गई है। इससे पूर्व तक मेले एक दिन में लाखों भक्त मां के दर्शन करते थे।

इसके अलावा श्रद्धालुओं को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना भी अनिवार्य किया गया है। श्रद्धालुओं को सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखना होगा। सेनिटाइजर आदि की व्यवस्था भी खुद करनी होगी। इस बार पूर्णागिरि मेला की अवधि भी घटा कर एक माह की गई है।

पूर्णागिरी माता मंदिर को महाकाली की पीठ माना जाता है। दरअसल जहां-जहां पर सती के अंग गिरे वहां पर शक्तिपीठ स्थापित हो गये। मान्यता के अनुसार पूर्णागिरी में सती का नाभि अंग गिरा जिसके चलते यहां पर देवी की नाभि के दर्शन व पूजा अर्चना की जाती है।

अत्यंत चमत्कारी इस शक्ति पीठ ( Purnagiri Mandir ) के संबंध में कहा जाता है कि अभी कुछ वर्षों पूर्व तक शाम होते ही यहां रूकना मना होता था, वहीं शाम के समय यहां से आने वाला सुमधुर संगीत बहुत कम व उन सिद्ध लोगों को ही सुनाई देता था जो यहां शाम के समय मौजूद रह जाते थे। लेकिन उनके लिए भी इस संगीत के स्थान तक पहुंचा मुमकिन न के बराबर था।

यहां पहुंचने का रास्ता अत्यन्त दुरुह और खतरनाक है। क्षणिक लापरवाही अनन्त गहराई में धकेलकर जीवन समाप्त कर सकती है। नीचे काली नदी का कल-कल करता पानी स्थान की दुरुहता से हृदय में कम्पन पैदा कर देता है।

देवराज इन्द्र ने भी यहां की थी तपस्या...
वहीं मंदिर के रास्ते में टुन्नास नामक स्थान पड़ता है, यहां पर देवराज इन्द्र ने तपस्या की, ऐसी भी जनश्रुती है। यहां ऊंची चोटी पर गाढ़े गए त्रिशुल आदि ही शक्ति के उस स्थान को इंगित करते हैं जहां सती का नाभि प्रवेश गिरा था।

पूर्णगिरी क्षेत्र की महिमा और उसके सौन्दर्य से एटकिन्सन भी बहुत अधिक प्रभावित था उसने लिखा है "पूर्णागिरी के मनोरम दृष्यों की विविधता एवं प्राकृतिक सौन्दर्य की महिमा अवर्णनीय है, प्रकृति ने जिस सर्वव्यापी वन सम्पदा के अधिर्वक्य से इस पर्वत शिखर पर स्वयं को अभिव्यक्त किया है, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का कोई भी क्षेत्र शायद ही इसकी समता कर सके, किन्तु केवल मान्यता व आस्था के बल पर ही लोग इस दुर्गम घने जंगल में अपना पथ आलोकित कर सके हैं।"

अत्यंत चमत्कारी व सिद्ध है पूर्णागिरी माता का मंदिर..
दरअसल पूर्णागिरी का मंदिर अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फीट की ऊंचाई पर है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहां पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था।

प्रतिवर्ष इस शक्तिपीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहां आते हैं। यह स्थान नैनीताल जनपद के पड़ोस में और चंपावत जनपद के टनकपुर से मात्र 17 किलोमीटर की दूरी पर है। "मां वैष्णो देवी" जम्मू के दरबार की तरह पूर्णागिरी दरबार में हर साल लाखों की संख्या में लोग आते हैं।

यहां वृक्ष नहीं काटे जाते
यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है, नेपाल इसके बगल में है। जिस चोटी पर सती का नाभि प्रदेश गिरा था उस क्षेत्र के वृक्ष नहीं काटे जाते। टनकपुर के बाद ठुलीगाढ़ तक बस से तथा उसके बाद घासी की चढ़ाई चढऩे के उपरान्त ही दर्शनार्थी यहां पहुंचते हैं।

बाघ भी आता था यहां
बुजुर्गों के अनुसार कुछ वर्ष पहले तक यहां शाम होते ही एक बाघ(माता की सवारी) आ जाता था, जो माता के मंदिर के पास ही सुबह तक रूकता। इस कारण पूर्व में लोग शाम होते ही यह स्थान खाली कर देते। अभी भी रात में यहां जाना वर्जित माना जाता है। मान्यता है कि यहां रात के समय केवल देवता ही आते हैं।

ऐसे पहुंचे माता के दरबार, यह रखें तैयारी
पूर्णागिरी मैया का यह धाम टनकपुर(उत्तरांचल) में ही स्थित है। यहां पहुंचने के लिए टनकपुर नजदीक का रेलवे स्टेशन है। इसके अलावा बरेली से टनकपुर के लिए तमाम बसें उपलब्ध रहती हैं।

टनकपुर टेक्सी स्टैंड से पूर्णागिरी धाम के लिए दिन भर टैक्सी, बसों की सेवा उपलब्ध रहती है। टनकपुर से पूर्णागिरी धाम की दूरी 22 किलोमीटर है।

शक्ति पीठ में दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों की संख्या वर्ष भर में 25 लाख से अधिक होती है। यहां आने के लिये आप सड़क या रेल के द्वारा पहुंच सकते है। वायु मार्ग से आने के लिए यहां का निकटतम हवाई अडड़ा पन्तनगर है। यहाँ सर्दी के मौसम में गरम कपड़े जरूरी हैं और तो और ग्रीष्म ऋतु मे हल्के ऊनी कपडों की जरूरत पड़ सकती है।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/3smTA05
Previous
Next Post »