भगवान विष्णु के प्रिय माह में से एक वैशाख हिन्दू कैलेंडर का दूसरा माह है। वहीं ये भी माना जाता है कि त्रेतायुग की शुरुआत भी Baishak Month से हुई। इस वैशाख मास को ब्रह्म देव ने भी सभी मासों में अच्छा बताया है। इस माह में भगवान विष्णु, बह्म देव और देवों के देव महादेव को प्रसन्न करना सबसे सरल माना जाता है।
मान्यता के अनुसार वैशाख मास में भगवान विष्णु के कई अवतारों ने जन्म लिया साथ ही श्री हरि विष्णु इस माह में अति प्रसन्न होते हैं। ऐसे में कहा जाता है कि वैशाख मास में सूर्योदय से पूर्व स्नान करके Lord Vishnu को जल अर्पित करना चाहिए।
वहीं दूसरी ओर वैशाख की एकादशी भी भगवान विष्णु का ही पर्व होने के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई हैं। वहीं इस माह के सोमवार भी सावन व कार्तिक के सोमवार की तरह ही भगवान शिव की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माने गए हैं।
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ऐसे में इस बार यानि 2021 में 07 मई शुक्रवार को वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है, जिसे वरूथिनी एकादशी भी कहा जाता है। वैसे तो साल के हर माह के हर पक्ष में एकादशी तिथि होती है और सबका अपना-अपना महत्व भी है,
लेकिन माना जाता है कि वैशाख माह की वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान के वराह अवतार का पूजन करने से सभी कामनाएं पूरी होने लगती है। वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन दान पुण्य करने से भगवान विष्णु के परम धाम की प्राप्ति होती है।
2021 एकादशी शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि शुरू - 06 मई 2021 को दोपहर 02 बजकर 10 मिनट 12 सेकंड से
एकादशी तिथि समाप्त - 07 मई 2021 को शाम 03 बजकर 32 मिनट तक
एकादशी व्रत पारण समय- 08 मई को सुबह 05 बजकर 35 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 16 मिनट तक
पारण का कुल समय - 2 घंटे 41 मिनट
बैशाख मास की इस एकादशी को व्रत रखकर भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा की जाती है। वरूथिनी एकादशी के दिन व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इस Ekadashi के दिन सूर्यास्त के समय भगवान लक्ष्मी नारायण के चरणों में सफेद रंग के फूल चढ़ाने से नारायण के साथ Goddess lakshmi भी प्रसन्न होकर मनचाही इच्छा पूरी होने का आशीर्वाद देती हैं।
वरूथिनी Ekadashi के दिन धन-वैभव और संपन्नता प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु के विशेष मंत्र का जप करना चाहिए।
- ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
- ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।
वरुथिनी एकादशी पर ऐसे करें पूजा...
इस दिन यानि एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्य कर्मों के पश्चात स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान श्री हरि विष्णु की अक्षत, दीपक, नैवेद्य सहित सोलह सामग्री से विधिवत पूजा करनी चाहिए।
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इसके बाद घर के पास लगे किसी पूजित पीपल की पूजा भी करें और उसकी जड़ में कच्चा दूध चढ़ाने के बाद घी का दीपक लगाएं। वहीं यदि पीपल का पेड़ घर के आसपास नहीं है तो घर पर ही तुलसी का पूजन करते हुए ॐ नमो भगवत वासुदेवाय नम: के मंत्र का जप भी करें।
इसके बाद रात के समय भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा करें। वहीं दिन के समय भगवान विष्णु का स्मरण करते रहें, जबकि रात में पूजा स्थल के समीप जागरण करें। वहीं एकादशी के अगले दिन द्वादशी को व्रत पारण मुहुर्त में खोलें। साथ ही इस दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं।
इस दिन न करें ये कार्य...
इस एकादशी के दिन दूसरी बार भोजन नहीं करना चाहिए,यानि फलाहार भी एक ही समय करना चाहिए। वहीं कांसे के बर्तन में भोजन करना भी इस दिन अनुचित माना गया है। इसके अलावा इस दिन मांस, मसूर की दाल, चने का शाक,शहद आदि से दूरी बना कर रखें। साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन करें।
कांस्यं मांसं मसूरान्नं चणकं कोद्रवांस्तथा।
शाकं मधु परान्नं च पुनर्भोजनमैथुने।।- भविष्योत्तर पुराण
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वहीं ये भी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से अन्नदान और कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है। इसके अलावा इस एकादशी के व्रत से समस्त पाप, ताप नष्ट होने के साथ सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वरूथिनी एकादशी का व्रत अथाह पुण्य फल प्रदान करने वाला माना जाता है।
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