देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे! त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे। शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥1 ॥ हे देवी! सुरेश्वरी! भगवती गंगे! आप तीनों लोकों को तारने वाली हैं। शुद्ध तरंगों से युक्त, महादेव शंकर के मस्तक पर विहार करने वाली हे ...
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