आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। यह पूर्णिमा देवों के शयन के बाद चातुर्मास में आती है। ऐसे में चातुर्मास के इन चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं।
इन चार महीनों में न अधिक गर्मी होती है और न अधिक सर्दी। इसी कारण यह समय अध्ययन के लिए उपयुक्त माना गया हैं। माना जाता है कि जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता व फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तिथि शुक्रवार 23 जुलाई 2021 को 10:43 AM के बाद से लग जाएगी। जो शनिवार 24 जुलाई 2021 को 08:06 AM तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के चले गुरु पूर्णिमा का पर्व 24 जुलाई को मनाया जाएगा। इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
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शास्त्रों में भी गुरु की विशेष महिमा बताई गई है। गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है और ज्ञान ही हर प्रकार के अंधकार को दूर कर सकता है। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार भारतीय संस्कृति के अनुसार मानव जन्म से पांच प्रकार का ऋणी होता है, जिनमें देव ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण, लोक ऋण और भूत ऋण शामिल है। ऐसे में वह यज्ञ के द्वारा देव ऋण श्राद्ध और तर्पण के द्वारा पितृ ऋण, विद्या दान के द्वारा गुरु ऋण, शिव अराधना से भूत ऋण से मुक्ति का साधन है।
माना जाता है कि जब तक जीव ऋण मुक्त नहीं होता तब तक पुन: जन्म से छुटकारा नहीं मिल सकता। ऐसे में गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु ऋण मुक्ति के लिए सबसे खास माना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरु का सम्मान करते हुए उन्हें यथा शक्ति गुरु दक्षिणा प्रदान करते हैं। इस दिन श्रद्धापूर्वक गुरु का पूजन करने से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और गुरु के आशीर्वाद से ही दी हुई विद्या सिद्ध और सफल होती है।
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गुरु का महत्व यूं बतलाया गया है-
'गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा:।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।'
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है।
"अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया,चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः ''
गुरु और देवता में समानता के लिए कहे गए इस श्लोक के अनुसार जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।
गुरु पूर्णिमा व्रत का विधान
गुरु पूर्णिमा पर्व दरअसल अध्यात्म, संत-महागुरु और शिक्षकों के लिए समर्पित एक भारतीय त्यौहार है। इस वर्ष यह महोत्सव 24 जुलाई 2021 को मनाया जा रहा है। यह पर्व पारंपरिक रूप से गुरुओं के प्रति, संतों का सानिध्य प्राप्त करने, अच्छी शिक्षा ग्रहण तथा संस्कार करने, शिक्षकों को सम्मान देने और उनके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
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ऐसे करें गुरु पूर्णिमा पूजन :-
: प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके तैयार हो जाएं।
: घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए।
: फिर हमें 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
: इसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए।
: फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुकदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
: अब अपने गुरु अथवा उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए।
यह भी है खास :-
: गुरु पूर्णिमा पर व्यासजी द्वारा रचे हुए ग्रंथों का अध्ययन-मनन करके उनके उपदेशों पर आचरण करना चाहिए।
: यह पर्व श्रद्धा से मनाना चाहिए, अंधविश्वास के आधार पर नहीं।
: इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
: गुरु का आशीर्वाद सभी-छोटे-बड़े तथा हर विद्यार्थी के लिए कल्याणकारी तथा ज्ञानवर्द्धक होता है।
: इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है।
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