Pradosh Vrat: इस प्रदोष भगवान शिव के साथ ही पाएं न्याय के देवता शनि का आशीर्वाद

भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत का महत्व भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी के समान माना जाता है। एकादशी की तरह ही यह व्रत भी हर माह में दो बार आता है। ऐसे में इस बार भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर 18 सितंबर को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। वहीं ये व्रत इस बार शनिवार को होने के कारण शनि प्रदोष कहलाएगा।

प्रदोष व्रत के सबंध में पुराणों में उल्लेख है कि इस व्रत से लम्बी आयु का वरदान मिलता होता है। वहीं यदि प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ने पर शनि प्रदोष व्रत कहते हैं (दरअसल हर प्रदोष साप्ताहिक दिनों के आधार पर उनके नाम से जाना जाता है)।

प्रदोष व्रत जहां भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष माना जाता है, वहीं मान्यता है कि शनि प्रदोष का व्रत करने वालों को भगवान शिव के साथ ही शनि की भी कृपा भी प्राप्त होती है।

अत: इस दिन भगवान शिव के साथ ही शनिदेव की पूजा अर्चना भी करनी चाहिए। इसका कारण ये है कि मान्यता के अनुसार शनि देव अपने गुरु भगवान शिव के साथ अपनी पूजा किए जाने पर अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि- प्रदोष व्रत में शाम के समय सूर्यास्त से करीब 40 मिनट पहले शिव पूजन मुख्य माना जाता है। साथ ही इस दिन सभी शिव मन्दिरों में शाम के समय प्रदोष मंत्र के जाप किए जाते हैं।

वहीं इस दिन सूर्य उदय होने से पहले उठने के बाद स्नानादि करके साफ कपड़े पहन लें। गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें। फिर बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव का पूजन करें।

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इसके बाद नम: शिवाय ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं। वहीं शनि प्रदोष होने पर इस दिन शनिदेव की आराधना के लिए सरसों के तेल का दीया पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं। जबकि एक दीया शनिदेव के मंदिर में भी जलाएं। व्रत का पारायण त्रयोदशी तिथि के अंत में करें।

शनि प्रदोष व्रत का महत्व- हिन्दू धर्म में शनि प्रदोष व्रत को बहुत शुभ माना गया है। मान्यता है कि शनि प्रदोष का व्रत करने वालों को भगवान शंकर के साथ शनि देव का भी आशीर्वाद मिलता है। जिसके चलते शनि की दशा या दृष्टि से पीडित लोग इस समय शनिदेव को प्रसन्न कर उनके दंड से काफी हद तक मुक्ति पा सकते है।

वहीं दूसरी ओर मान्यता है कि इस व्रत को रखने वाले जातकों के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं पुराणों के अनुसार प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं, इसी वजह से लोग शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन प्रदोष व्रत रखते हैं।



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