पितृ पक्ष के 14वें (पूर्णिमा से शुरु होने के कारण) दिन त्रयोदशी के श्राद्ध का विधान है। जिसे तेरस का श्राद्ध भी कहा जाता है। जानकारों के अनुसार त्रयोदशी तिथि पर मृत्यु प्राप्त किए पितरों के साथ ही मृत बच्चों के श्राद्ध का भी विधान है।
जानकारों के अनुसार इस दिन अल्प आयु में मृत बच्चों के श्राद्ध में दूध से तर्पण देने और खीर बनाने का भी विधान है।ऐसे में इस साल यानि पितृ पक्ष 2021 में त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध सोमवार 4 अक्टूबर को है। गुजरात में इस श्राद्ध तिथि को काकबली और बलभोलानी तेरस के नाम से भी जाना जाता है।
दरअसल श्राद्धों पर लोग कुछ पूजा अनुष्ठान करने के साथ ही परिवार के उन सदस्यों (जिनका निधन हो गया है) की शांति के लिए भोजन करते हैं। यह श्राद्ध कोई भी परिजन कर सकता है। इस दिन का श्राद्ध मुख्यत: फल्गु नदी में स्नान के बाद करने का विधान है।
पंडित एके शर्मा के अनुसार पितरों का तर्पण और श्राद्ध राहु काल में करना वर्जित है। कुतुप काल पर ही हमेशा ये काम करें। वहीं श्राद्ध के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठान अपराह्न काल से पहले ही पूरे हो जाने चाहिए। जबकि तर्पण हमेशा श्राद्ध के अंत में ही करना चाहिए।
त्रयोदशी श्राद्ध का ऐसे समझें महत्व
पितृ पक्ष की त्रयोदशी तिथि को त्रयोदशी श्राद्ध किया जाता है। जिनकी मृत्यु दोनों पक्षों में से किसी एक की त्रयोदशी के दिन हुई थी, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
वहीं जानकारों के अनुसार श्राद्ध करने के लिए कुटुप मुहूर्त और रोहिना मुहूर्त को शुभ माना जाता है। वहीं अपर्णा कला समाप्त होने तक उसके बाद का मुहूर्त रहता है। पितृ पक्ष के दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे शादी या मांगलिक कार्यक्रम नहीं किया जाता है।
श्राद्ध की पुराणों में मान्यता
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध पूजा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से पूर्वज संतुष्ट होते हैं और स्वास्थ्य, धन और सुख प्रदान करते हैं। वहीं मान्यता के अनुसार उस व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है जो श्राद्ध के सभी अनुष्ठानों को करता है। माना जाता है कि हर पीढ़ी पितरों का श्राद्ध कर पितृ पक्ष में अपना ऋण चुकाकर उऋण होती है।
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