परीक्षा के बाद महादेव ने दिया था भगवन विष्णु को सुदर्शन चक्र

भगवान शिव व विष्णु से जुड़ी अनेक कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है। ऐसी ही एक रोचक कथा कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी से भी जुड़ी है। वही इस दिन बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु व शिव की पूजा करने का विधान है। पुराणों में इस व्रत से जुड़ी जो कथा है, जो इस प्रकार है। शास्त्रों के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी पर विष्णु जी की पूजा निशिता काल में की जाती है, इसलिए बैकुंठ चतुर्दशी 6 नवंबर को मनाई जाएगी।

बैकुंठ चतुर्दशी 2022 : कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की बैकुंठ चतुर्दशी तिथि 6 नवंबर 2022 को शाम 4 बजकर 28 मिनट से शुरू होगी। अगले दिन 7 नवंबर 2022 को शाम 4 बजकर 15 मिनट पर चतुर्दशी तिथि का समापन होगा। शास्त्रों के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी पर विष्णु जी की पूजा निशिता काल में की जाती है, इसलिए यह पर्व 06 नवंबर 2022 को मनाया जाएगा।

बैकुंठ चतुर्दशी 2022 मुहूर्त
निशिताकाल पूजा मुहूर्त- 06 नवंबर 2022, 11:45 पीएम - से 07 नवम्बर, 2022 12:37 एएम तक
सुबह पूजा का मुहूर्त - 06 नवंबर 2022, प्रातः 11.48 - दोपहर 12.32 तक

बैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा विधि
चतुर्दशी के दिन प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद श्री हरि विष्णु की 108 कमल पुष्पों से पूजा करें।
अब भगवान शंकर की भी पूजा अनिवार्य रूप से करें।
इस पूरे दिन विष्णु और शिव जी के नाम का उच्चारण करें।
पूजा के दौरान इस मंत्र जाप को अवश्य करें-विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्। वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।

बैकुंठ चतुर्दशी महत्व
बैकुंठ चतुर्दशी का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन इसीलिए विशेष हैं क्यूंकी इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की आराधना की जाती है। शिव पुराण के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही भगवान शिव ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र दिया था। धार्मिक मान्यता के अनुसार यदि कोई भक्त इस दिन भगवान विष्णु की 1 हजार कमल के फूल से पूजा करता है तो उसे बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होता है।

सुदर्शन चक्र की कथा....
कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु, शिवजी का पूजन करने के लिए काशी आए। यहां मणिकार्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल फूलों से भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया। अभिषेक के बाद जब भगवान विष्णु पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल कम कर दिया। भगवान विष्णु को अपने संकल्प की पूर्ति के लिए एक हजार कमल के फूल चढ़ाने थे।

एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा कि मेरी आंखें ही कमल के समान हैं इसलिए मुझे कमलनयन और पुण्डरीकाक्ष कहा जाता है। एक कमल के फूल के स्थान पर मैं अपनी आँख ही चढ़ा देता हूं। ऐसा सोचकर भगवान विष्णु जैसे ही अपनी आँख भगवान शिव को चढ़ाने के लिए तैयार हुए, वैसे ही शिवजी प्रकट होकर बोले- हे विष्णु। तुम्हारे समान संसार में कोई दूसरा मेरा भक्त नहीं है।

आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब से बैंकुठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी। इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका और बाद में मेरा पूजन करेगा और बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। तब प्रसन्न होकर शिवजी ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया और कहा कि यह चक्र राक्षसों का विनाश करने वाला होगा। तीनों लोकों में इसकी बराबरी करने वाला कोई अस्त्र नहीं होगा।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/9nUej1d
Previous
Next Post »