सनातन संस्कृति परंपरा अनुसार चार धाम की यात्रा का बहुत महत्व है। इन्हें महातीर्थ भी कहा जाता है। सनातन धर्म के इन चारधामों में पहला है बद्रीनाथ, दूसरा जगन्नाथ पुरी, तीसरा रामेश्वरम और चौथा द्वारिका धाम। इसके अलावा उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को भी धाम कहा जाता है। इन धामों को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। आम लोगों की मान्यता है कि उत्तराखंड के धामों को धारण करने वाली एक देवी भी यहां देवभूमि उत्तराखंड (Dev Bhoomi Temple Uttarakhand) में विराजमान है।
मंदिर से मिलते हैं संकेतः लोगों का कहना है कि उत्तराखंड में इन चारों धामों को धारण करने वाली इस देवी के मंदिर (Dev Bhoomi Temple) में कोई या किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया जाता है, तो उत्तराखंड के चारों धाम में जलजला आ जाता है। यहां तक की ये चारों धाम हिल जाते हैं। मान्यता है कि ये देवी मंदिर ही उत्तराखंड के चारों धामों को अपने में धारण किए हुए हैं।
जनमानस में तो यहां तक मान्यता है कि इन चारों धाम में आने वाली किसी आफत के संबंध में भी उत्तराखंड के चारों धामों को अपने में धारण करने वाली इस धारी देवी मां के मंदिर (Dev Bhoomi Temple) में संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं।
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इसलिए धारी देवी नामः देवभूमि उत्तराखंड में देवी दुर्गा की अलग-अलग रूपों में पूजा होती है। ऐसे में बद्रीनाथ जाने वाले रास्ते पर देवभूमि के श्रीनगर से 15 किमी दूरी पर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर स्थित है(dhari devi mandir uttarakhand) । जिन्हें छोटे चार धाम को धारण करने वाला माना जाता है। इनका नाम धारण करने वाली देवी के नाम से ही धारी देवी पड़ा।
धारी देवी से जुड़ी मान्यताएं
उत्तराखंड का श्रीनगर शहर प्राचीन गढ़ नरेशों की राजधानी रहा है। यहीं मां धारी देवी का मंदिर है, जिसके बारे में जनमानस में कई मान्यताएं हैं। लोगों के अनुसार समूचा हिमालय क्षेत्र खासतौर से केदारनाथ मां दुर्गा और भगवान शंकर का मूल निवास स्थान है। इस केदारनाथ का मां धारी (dhari devi ) को द्वारपाल कहा जाता है। क्षेत्र के लोग तो ये भी कहते हैं कि साल 2013 में केदारनाथ में आई जलप्रलय भी मां धारी के कोप का ही परिणाम थी।
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स्थानीय लोगों के अनुसार धारी देवी मां काली (dhari devi) का ही एक रूप हैं। श्रीनगर में चल रहे हाइडिल-पॉवर प्रोजेक्ट के लिए साल 2013 में 16 जून की शाम मां धारी की प्रतिमा को प्राचीन मंदिर से हटा दिया गया था। प्रतिमा हटाने के कुछ घंटे बाद ही 17 जून को केदारनाथ में तबाही आ गई थी। जिसमें हजारों लोगों की जान गई। श्रद्धालुओं का मानना है कि मां धारी की प्रतिमा के विस्थापन की वजह से केदारनाथ का संतुलन बिगड़ गया था, जिस वजह से देवभूमि में प्रलय आई।
ऐसे में पहाड़ी बुजुर्गों का कहना है केदारनाथ विपदा का कारण मंदिर को तोड़कर मूर्ति को हटाया जाना है। ये प्रत्यक्ष देवी का प्रकोप है। पहाड़ के लोगों में यह मान्यता है कि पहाड़ के देवी-देवता जल्द ही रूष्ट हो जाते हैं और अपनी शक्ति से कैसी भी विनाशलीला रच डालते हैं। शाम छह बजे मूर्ति को उसके मूल स्थान से हटाया गया और रात्रि आठ बजे तबाही शुरू हो गई।
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जनमानस में मां धारी देवी के चमत्कार
पहाड़ समेते पूरे उत्तराखंड में धारी देवी मंदिर के चमत्कारों की कहानियां दूर-दूर तक सुनाई देती हैं। कहते हैं मां धारी की प्रतिमा सुबह एक बच्चे के समान लगती है, दोपहर में उसमें युवा स्त्री की झलक मिलती है, जबकि शाम होते-होते प्रतिमा बुजुर्ग महिला जैसा रूप धर लेती है। कई श्रद्धालुओं की ओर से प्रतिमा में होने वाले परिवर्तन को साक्षात देखने का दावा भी किया जाता है।
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