Varuthini Ekadashi Vrat 2023
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi 2023) सब पापों को नष्ट करने वाली मानी गई है। वर्ष 2023 में यह एकादशी रविवार, 16 अप्रैल को पड़ रही है। दस हजार वर्ष तक तप, सौभाग्य, मोक्ष तथा इस दिन किया गया अन्न का दान कन्या दान के बराबर बताया गया है। आइए जानते हैं यहां इस एकादशी के बारे में खास जानकारी एक स्थान पर-
वरुथिनी एकादशी के शुभ मुहूर्त- (Varuthini Ekadashi Muhurat 2023)
रविवार, अप्रैल 16, 2023 को वरुथिनी एकादशी
वैशाख कृष्ण एकादशी तिथि की शुरुआत- 15 अप्रैल 2023, शनिवार को 08:45 पी एम से।
एकादशी का समापन- 16 अप्रैल 2023 को 06:14 पी एम पर।
दिन का चौघड़िया
चर- 07.32 ए एम से 09.08 ए एम
लाभ- 09.08 ए एम से 10.45 ए एम
अमृत- 10.45 ए एम से 12.21 पी एम
शुभ- 01.58 पी एम से 03.34 पी एम
रात्रि का चौघड़िया
शुभ- 06.47 पी एम से 08.11 पी एम
अमृत- 08.11 पी एम से 09.34 पी एम
चर- 09.34 पी एम से 10.57 पी एम
लाभ- 01.44 ए एम से 17 अप्रैल को 03.07 ए एम
शुभ- 04.31 ए एम से 17 अप्रैल को 05.54 ए एम
व्रत कथा-(Vrat Katha)
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi Vrat Katha) व्रत की कथा के अनुसार प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करता था। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी था। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था, तभी न जाने कहां से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहा।
कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया। राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला। राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुआ।
उसे दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले- 'हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।'
भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। अत: जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गया था। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।
इस एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग मिला था। मान्यता है कि जो मनुष्य विधिवत इस एकादशी व्रत को करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। अत: मनुष्यों को धर्म कर्म करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए और पाप कर्मों से दूर रहना चाहिए तथा पापों को करने से डरना चाहिए।
पूजा विधि-(Puja Vidhi)
- वरुथिनी एकादशी के पहले दिन यानी दशमी तिथि की रात्रि में सात्विक और हलका भोजन करें, प्याज-लहसुन का त्याग दशमी से ही कर दें।
- एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लें।
- तत्पश्चात घर के पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें।
- श्री भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान करवाएं तथा अक्षत, दीपक, नैवेद्य आदि सामग्री से विधिपूर्वक पूजन करें।
- घर के आसपास पीपल का वृक्ष हो तो उसकी जड़ में कच्चा दूध चढ़ाकर, पूजा करें और घी का दीपक जलाएं।
- साथ ही तुलसी का पूजन करें।
- पूजन के दौरान 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप करते रहें।
- भगवान श्रीहरि को खरबूजे का भोग लगाएं।
- रात्रि में पुन: भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा तथा अर्चना करें।
- पूरे दिन श्री विष्णु का स्मरण करें।
- रात में भगवान श्री विष्णु का ध्यान, कीर्तन आदि करते हुए रात्रि जागरण करें।
- एकादशी व्रत के दिन अगर हो सकें तो एक ही बार फलाहार ग्रहण करें।
- एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी को व्रत खोलने से पूर्व पुन: श्री विष्णु का पूजन करके किसी योग्य ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को भोजन कराएं तथा दान-दक्षिणा दें।
- तत्पश्चात व्रत का पारण करें। पारण के समय शुभ मुहूर्त का अवश्य ध्यान रखें।
मंत्र-(Mantra)
- 'ॐ नमो नारायण'।
- 'ॐ नारायणाय नम:'।
- 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'।
- 'ॐ विष्णवे नम:'।
- 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:'।
- 'श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवा'।
पारण का समय-(Varuthini Ekadashi Paran Time)
वैशाख कृष्ण एकादशी (वरुथिनी) का पारण- 17 अप्रैल 2023, सोमवार को 05.54 ए एम से 08.29 ए एम
पारण के दिन द्वादशी तिथि का समापन- 03.46 पी एम।
महत्व-(Importance)
इस एकादशी के महत्व के अनुसार कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय एक मन स्वर्ण दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है। इस एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है। मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है।
इस दिन दान करने का भी विशेष महत्व माना गया है, शास्त्रों में वर्णन हैं कि हाथी का दान घोड़े के दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि दान, भूमि के दान से तिलों का दान, तिलों के दान से स्वर्ण का दान तथा स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है। अन्न दान से देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त हो जाते हैं। इतना ही नहीं इसे कन्या दान के बराबर माना गया है। वरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्न दान तथा कन्या दान दोनों के बराबर फल मिलता है।
इस व्रत के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। अत: मान्यतानुसार जो व्यक्ति विधिवत इस एकादशी का व्रत करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक तथा इस एकादशी का महात्म्य पढ़ने से एक हजार गोदान का फल प्राप्त होता है।
Ekadashi 2023
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