धूमावती जयंती पर पढ़ें स्तुति, अष्टक स्तोत्रं और कवच, देवी मां देंगी सौभाग्य और समृद्धि का शुभाशीष

Dhumavati Jayanti 
 

शनिवार, 27 मई 2023 को देवी धूमावती जयंती (Dhumavati Jayanti 2023) मनाई जा रही है। हिन्दू धर्म के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी तिथि को धूमावती प्रकटोत्सव पर्व मनाया जाता है। इस दिन विशेष कर 10 महाविद्या का पूजन भी किया जाता है।

यह दिन धूमावती देवी के स्तोत्र, पाठ, कवच आदि पढ़ने के लिए अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन मंत्रों के साथ धूमावती देवी की यह स्तुति पाठ करने से मां की अमोघ कृपा प्राप्त होती है। दारिद्र्य दूर होकर हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।


आइए जानते हैं स्तुति, अष्टक स्तोत्रं और कवच- 
 

 

देवी धूमावती की स्तुति-Mata Dhoomvati Stuti  

 

विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च मलिनाम्बरा,

विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,

काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,

सूर्पहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,

प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,

क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा काल्हास्पदा।।

 

॥ सौभाग्यदात्री धूमावती कवचम् ॥ Mata Dhoomvati Kavach 

 

धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी।

ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ॥1॥

कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके।

सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ॥2॥

सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः।

सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देविपुरं ययौ ॥3॥

 

॥ श्री सौभाग्यधूमावतीकल्पोक्त धूमावतीकवचम् ॥

 

॥ धूमावती कवचम् ॥ Dhoomvati Kavach 

  

श्रीपार्वत्युवाच

 

धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतम् विस्तरतो मया।

कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे ॥1॥

 

श्रीभैरव उवाच

 

शृणु देवि परङ्गुह्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे।

कवचं श्रीधूमावत्या: शत्रुनिग्रहकारकम् ॥2॥

 

ब्रह्माद्या देवि सततम् यद्वशादरिघातिनः।

योगिनोऽभवञ्छत्रुघ्ना यस्या ध्यानप्रभावतः ॥3॥

 

ॐ अस्य श्री धूमावती कवचस्य पिप्पलाद ऋषिः निवृत छन्दः,श्री धूमावती देवता, धूं बीजं, स्वाहा शक्तिः, धूमावती कीलकं, शत्रुहनने पाठे विनियोगः॥

 

ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु।

धूमा नेत्रयुग्मं पातु वती कर्णौ सदाऽवतु ॥1॥

 

दीर्ग्घा तुउदरमध्ये तु नाभिं में मलिनाम्बरा।

शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी ॥2॥

 

मुखं में पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम्।

सर्वा विद्याऽवतु कण्ठम् विवर्णा बाहुयुग्मकम् ॥3॥

 

चञ्चला हृदयम्पातु दुष्टा पार्श्वं सदाऽवतु।

धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ॥4॥

 

प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा।

क्षुत्पिपासार्द्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ॥5॥

 

सर्वाङ्गम्पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी।

इति ते कवचम्पुण्यङ्कथितम्भुवि दुर्लभम् ॥6॥

 

न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे।

पठनीयम्महादेवि त्रिसन्ध्यन्ध्यानतत्परैः।।7॥

 

दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रन्नैव संस्पृशेत्।। 7.1।।

 

॥ इति भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीतन्त्रे धूमावतीकवचं सम्पूर्णम् ॥
 

धूमावती अष्टक स्तोत्रं : Dhumavati Ashtakam Stotra

 

।।अथ स्तोत्रं।।

 

प्रातर्या स्यात्कुमारी कुसुमकलिकया जापमाला जपन्ती,

मध्याह्ने प्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम्।

सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां,

वहन्ती सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालिका पातु युष्मान्।।1।।

 

बद्ध्वा खट्वाङ्गकोटौ कपिलवरजटामण्डलम्पद्मयोने:,

कृत्वा दैत्योत्तमाङ्गैस्स्रजमुरसि शिर शेखरन्तार्क्ष्यपक्षै:।

पूर्णं रक्तै्सुराणां यममहिषमहाशृङ्गमादाय पाणौ,

पायाद्वो वन्द्यमानप्रलयमुदितया भैरव: कालरात्र्याम्।।2।।

 

चर्वन्तीमस्थिखण्डम्प्रकटकटकटाशब्दशङ्घातम्,

उग्रङ्कुर्वाणा प्रेतमध्ये कहहकहकहाहास्यमुग्रङ्कृशाङ्गी।

नित्यन्नित्यप्रसक्ता डमरुडिमडिमां स्फारयन्ती मुखाब्जम्,

पायान्नश्चण्डिकेयं झझमझमझमा जल्पमाना भ्रमन्ती।।3।।

 

टण्टण्टण्टण्टटण्टाप्रकरटमटमानाटघण्टां वहन्ती,

स्फेंस्फेंस्फेंस्कारकाराटकटकितहसा नादसङ्घट्टभीमा।

लोलम्मुण्डाग्रमाला ललहलहलहालोललोलाग्रवाचञ्चर्वन्ती,

चण्डमुण्डं मटमटमटिते चर्वयन्ती पुनातु।।4।।

 

वामे कर्णे मृगाङ्कप्रलयपरिगतन्दक्षिणे सूर्यबिम्बङ्कण्ठे,

नक्षत्रहारंव्वरविकटजटाजूटके मुण्डमालाम्।

स्कन्धे कृत्वोरगेन्द्रध्वजनिकरयुतम्ब्रह्मकङ्कालभारं,

संहारे धारयन्ती मम हरतु भयम्भद्रदा भद्रकाली।।5।।

 

तैलाभ्यक्तैकवेणी त्रपुमयविलसत्कर्णिकाक्रान्तकर्णा,

लौहेनैकेन कृत्वा चरणनलिनकामात्मन: पादशोभाम्।

दिग्वासा रासभेन ग्रसति जगदिदंय्या यवाकर्णपूरा,

वर्षिण्यातिप्रबद्धा ध्वजविततभुजा सासि देवि त्वमेव।।6।।

 

सङ्ग्रामे हेतिकृत्वैस्सरुधिरदशनैर्यद्भटानां,

शिरोभिर्मालामावद्ध्य मूर्ध्नि ध्वजविततभुजा त्वं श्मशाने प्रविष्टा।

दृष्टा भूतप्रभूतैः पृथुतरजघना वद्धनागेन्द्रकाञ्ची,

शूलग्रव्यग्रहस्ता मधुरुधिरसदा ताम्रनेत्रा निशायाम्।।7।।

 

दंष्ट्रा रौद्रे मुखेऽस्मिंस्तव विशति जगद्देवि सर्वं क्षणार्द्धात्,

संसारस्यान्तकाले नररुधिरवशा सम्प्लवे भूमधूम्रे।

काली कापालिकी साशवशयनतरा योगिनी योगमुद्रा रक्तारुद्धिः,

सभास्था भरणभयहरा त्वं शिवा चण्डघण्टा।।8।।

 

धूमावत्यष्टकम्पुण्यं सर्वापद्विनिवारकम्,

य: पठेत्साधको भक्त्या सिद्धिं व्विन्दन्ति वाञ्छिताम्।।9।।

 

महापदि महाघोरे महारोगे महारणे,

शत्रूच्चाटे मारणादौ जन्तूनाम्मोहने तथा।।10।।

 

पठेत्स्तोत्रमिदन्देवि सर्वत्र सिद्धिभाग्भवेत्,

देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगा:।।11।।

 

सिंहव्याघ्रादिकास्सर्वे स्तोत्रस्मरणमात्रत:,

दूराद्दूरतरं य्यान्ति किम्पुनर्मानुषादय:।।12।।

 

स्तोत्रेणानेन देवेशि किन्न सिद्ध्यति भूतले,

सर्वशान्तिर्ब्भवेद्देवि ह्यन्ते निर्वाणतां व्व्रजेत्।।13।।

 

।।इत्यूर्द्ध्वाम्नाये धूमावतीअष्टक स्तोत्रं समाप्तम्।।


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