1. श्रीराम- जिनमें योगीजन रमण करते हैं
2. रामचन्द्र- चंद्रमा के समान आनन्दमयी एवं मनोहर राम
3. रामभद्र- कल्याणमय राम
4. शाश्वत- सनातन राम
5. राजीवलोचन- कमल के समान नेत्रोंवाले
6. श्रीमान् राजेन्द्र- श्री सम्पन्न राजाओं के भी राजा, चक्रवर्ती सम्राट
7. रघुपुङ्गव- रघुकुल में श्रेष्ठ
8. जानकीवल्लभ- जनकसुता सीता के प्रियतम
9. जैत्र- विजयशील
10. जितामित्र- शत्रुओं को जीतनेवाला
11. जनार्दन- सम्पूर्ण मनुष्यों द्वारा याचना करने योग्य
12. विश्वामित्रप्रिय- विश्वामित्रजी के प्रियतम
13. जितेंद्राये-विजेताओं का स्वामी, जो इन्द्र को जीत सकते हैं
14. शरण्यत्राणतत्पर- शरणागतों के रक्षा में तत्पर
15. बालिप्रमथन- बालि नामक वानर को मारनेवाले
16. वाग्मी- अच्छे वक्ता
17. सत्यवाक्- सत्यवादी
18. सत्यविक्रम- सत्य पराक्रमी
19. सत्यव्रत- सत्य का दृढ़ता पूर्वक पालन करनेवाले
20. व्रतफल- सम्पूर्ण व्रतों के प्राप्त होने योग्य फलस्वरूप
21. सदा हनुमदाश्रय- हनुमानजी के ह्रदयकमल में निवास करनेवाले
22. कौसलेय-कौसल्याजी के पुत्र
23. खरध्वंसी-खर नामक राक्षस का नाश करनेवाले
24. विराधवध पण्डित- विराध नामक दैत्य का वध करने में कुशल
25. विभीषण-परित्राता- विभीषण के रक्षक
26. दशग्रीवशिरोहर- दशशीश रावण के मस्तक काटनेवाले
27. सप्ततालप्रभेता- सात ताल वृक्षों को एक ही बाण से बींध डालनेवाले
28. हरकोदण्ड खण्डन- जनकपुर में शिवजी के धनुष को तोड़नेवाले
29. जामदग्न्यमहादर्पदलन- परशुरामजी के महान अभिमान को चूर्ण करनेवाले
30. ताडकान्तकृत- ताड़का नामवाली राक्षसी का वध करनेवाले
31. वेदान्तपार- वेदान्त के पारंगत विद्वान अथवा वेदांत से भी अतीत
32. वेदात्मा- वेदस्वरूप
33. भवबन्धैकभेषज- संसार बन्धन से मुक्त करने के लिये एकमात्र औषधरूप
34. दूषणप्रिशिरोsरि- दूषण और त्रिशिरा नामक राक्षसों के शत्रु
35. त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, विष्णु और शिव- तीन रूप धारण करने वाले
36. त्रिगुण- त्रिगुणस्वरूप अथवा तीनों गुणों के आश्रय
37. त्रयी- तीन वेदस्वरूप
38. त्रिविक्रम-जिसका तीन प्रगति पूरी दुनिया को कवर किया
39. त्रिलोकात्मा- तीनों लोकों के आत्मा
40. पुण्यचारित्रकीर्तन- जिनकी लीलाओं का कीर्तन परम पवित्र हैं
41. त्रिलोकरक्षक- तीनों लोकों की रक्षा करने वाले
42. धन्वी- धनुष धारण करनेवाले
43. दण्डकारण्यवासकृत्- दण्डकारण्य में निवास करनेवाले
44. अहल्यापावन- अहल्याको पवित्र करनेवाले
45. पितृभक्त- पिता के भक्त
46. वरप्रद- वर देनेवाले
47. जितेन्द्रिय- इन्द्रियों को काबू में रखने वाले
48. जितक्रोध-क्रोध को जीतने वाले
49. जितलोभ-लोभ की वृत्ति को परास्त करनेवाले
50. जगद्गुरु-अपने आदर्श चरित्रों से सम्पूर्ण जगत् को शिक्षा देने वाले
51. ऋक्षवानरसंघाती- वानर और भालुओं की सेना का संगठन करने वाले
52. चित्रकूट समाश्रय- वनवास के समय चित्रकूट पर्वत पर निवास करनेवाले
53. जयन्तत्राणवरद- जयन्त के प्राणों की रक्षा करके उसे वर देनेवाले
54. सुमित्रापुत्र- सेवित- सुमित्रानन्दन लक्ष्मण के द्वारा सेवित
55. सर्वदेवाधिदेव- सम्पूर्ण देवताओं के भी अधिदेवता
56. मृतवानरजीवन- मरे हुए वानरों को जीवित करनेवाले
57. मायामारीचहन्ता- मारीच नामक राक्षस का वध करने वाले
58. महाभाग- महान सौभाग्यशाली
59. महाभुज- बड़ी- बड़ी बाँहोंवाले
60. सर्वदेवस्तुत- सम्पूर्ण देवता जिनकी स्तुति करते हैं
61. सौम्य- शांतस्वभाव
62. ब्रह्मण्य-ब्राह्मणों के हितैषी
63. मुनिसत्तम- मुनियों मे श्रेष्ठ
64. महायोगी-सम्पूर्ण योगों के अधीष्ठान होने के कारण महान योगी
65. महोदर- परम उदार
66. सुग्रीवस्थिर राज्यपद- सुग्रीव को स्थिर राज्य प्रदान करनेवाले
67. सर्वपुण्याधिकफलप्रद- समस्त पुण्यों के उत्कृष्ट फलरूप
68. स्मृतसर्वाघनाशन- स्मरण करनेमात्र से ही सम्पूर्ण पापों का नाश करनेवाले
69. आदिपुरुष- किसी वंश या साम्राज्य की पहली कड़ी
70. महापुरुष-समस्त पुरुषों मे महान
71. परमपुरुष-सर्वोत्कृष्ट पुरुष
72. पुण्योदय-पुण्य को प्रकट करनेवाले
73. महासार-सर्वश्रेष्ठ सारभूत परमात्मा
74. पुराणपुरुषोत्तम- पुराणप्रसिद्ध क्षर-अक्षर पुरुषों से श्रेष्ठ लीलापुरुषोत्तम
75. स्मितवक्त्र- जिनके मुखपर सदा मुस्कान की छटा छायी रहती है
76. मितभाषी- कम बोलने वाले
77. पूर्वभाषी- पूर्ववक्ता
78. राघव- रघुकुल में अवतीर्ण
79. अनन्तगुण गम्भीर- अनन्त कल्याणमय गुणों से युक्त एवं गम्भीर
80. धीरोदात्तगुणोत्तर- धीरोदात्त नायकके लोकोतर गुणों से युक्त
81. मायामानुषचारित्र- अपनी मायाका आश्रय लेकर मनुष्योंकी-सी लीलाएँ करनीवाले
82. महादेवाभिपूजित- भगवान शंकर के द्वारा निरन्तर पूजित
83. सेतुकृत-समुद्रपर पुल बाँधनेवाले
84. जितवारीश- समुद्र को जीतने वाले
85. सर्वतीर्थमय- सर्वतीर्थस्वरूप
86. हरि- पाप-ताप को हरनेवाले
87. श्यामाङ्ग- श्याम विग्रहवाले
88. सुन्दर- परम मनोहर
89. शूर- अनुपम शौर्यसे सम्पन्न वीर
90. पीतवासा-पीताम्बरधारी
91. धनुर्धर- धनुष धारण करने वाले
92. सर्वयज्ञाधिप- सम्पूर्ण यज्ञों के स्वामी
93. यज्ञ- यज्ञ स्वरूप
94. जरामरणवर्जित- बुढ़ापा और मृत्यु से रहित
95. शिवलिंगप्रतिष्ठाता- रामेश्वर नामक ज्योतिर्लिंग की स्थापना करनेवाले
96. सर्वाघगणवर्जित- समस्त पाप-राशियों से रहित
97. सच्चिदानन्दविग्रह- सत्, चित् और आनन्द के स्वरूप का निर्देश कराने वाले
98. परं ज्योति- परम प्रकाशमय,परम ज्ञानमय
99. परं धाम-सर्वोत्कृष्ट तेज अथवा साकेतधामस्वरूप
100. पराकाश त्रिपाद- विभूतिमें स्थित परमव्योम नामक वैकुण्ठधामरूप
101. परात्पर पर- इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदि से भी परे परमेश्वर
102. परेश- सर्वोत्कृष्ट शासक
103. पारग- सबको पार लगाने वाले
104. पार- सबसे परे विद्यमान
105. सर्वभूतात्मक- सर्वभूतस्वरूप
106. परमात्मा- परम आत्मा
107. रामचन्द्र- चाँद की तरह नेक
108. शिव-परम कल्याणमय
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