Bachh Baras 2024: बछ बारस व्रत क्यों किया जाता है? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

Bachh Baras 
 

Highlights 

 

बछ बारस पूजा 2024 कब है। 

बछ बारस का महत्व जानें।

बछ बारस की पूजा विधि और मुहूर्त क्या है।

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Bach Baras : वर्ष 2024 में बछ बारस का पर्व 30 अगस्त, दिन शुक्रवार को मनाया जा रहा है। यह व्रत प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के कृष्‍ण पक्ष की द्वादशी तिथि पर किया जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार जन्माष्टमी के ठीक 4 दिन बाद यह पर्व पड़ता है। पुराणों के अनुसार बछ बारस, गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक, माघ, वैशाख और श्रावण महीनों की कृष्ण द्वादशी को होता है। भाद्रपद मास की गोवत्स द्वादशी के दिन गाय-बछड़े की पूजा की जाती है। इसी दिन अजा एकादशी का पारण भी किया जाएगा।

 

आइए यहां जानते हैं पूजन का मुहूर्त, विधि और महत्व के बारे में: 

 

बछ बारस 2024 व्रत-पूजन के शुभ मुहूर्त : 

30 अगस्त 2024, शुक्रवार भाद्रपद कृष्ण द्वादशी के शुभ मुहूर्त समय
 

ब्रह्म मुहूर्त- तड़के 04:29 से 05:13 तक। 

प्रातः सन्ध्या- सुबह 04:51 से 05:58 तक। 

अभिजित मुहूर्त- अपराह्न 11:56 से 12:47 तक। 

विजय मुहूर्त- दोपहर 02:29 से 03:20 तक। 

गोधूलि मुहूर्त- शाम 06:45 से 07:07 तक। 

सायाह्न सन्ध्या- सायं 06:45 से 07:52 तक। 

अमृत काल- दोपहर 03:24 से 05:05 तक। 

निशिता मुहूर्त- अपराह्न 11:59 से 31 अगस्त 12:44 तक। 

सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 05:58 से शाम 05:56 तक।  

राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक


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महत्व : धार्मिक मान्यतानुसार बछ बारस या गोवत्स द्वादशी व्रत पुत्र की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। अत: भारत के अधिकांश हिस्सों में भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है। पुराणों में गौ माता या गाय के प्रत्येक अंग में देवी-देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।

पद्म पुराण के अनुसार गाय के मुख में चारों वेदों का निवास हैं। उसके सींगों में भगवान शिव और विष्णु सदा विराजमान रहते हैं। गाय के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सीगों के अग्र भाग में इन्द्र, दोनों कानों में अश्विनीकुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती, अपान (गुदा) में सारे तीर्थ, मूत्र स्थान में गंगा जी, रोमकूपों में ऋषि गण, पृष्ठभाग में यमराज, दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम पार्श्व में महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं स्थित हैं।

इस दिन गाय-बछड़ा और बाघ-बाघिन की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा की जाती है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद और कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को यह दिन विशेष तौर पर गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इसे बच्छ दुआ, वसु द्वादशी, बछ बारस, वसु बारस आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है।

मान्यता के मुताबिक इस दिन चाकू का प्रयोग नही करना चाहिए और ना ही काटे गए कोई भी खाद्य पदार्थ का सेवन किया जाता है। इस व्रत में द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाता है। इस दिन गाय का दूध, दही, गेहूं और चावल आदि खाना निषेध कहा गया है। इस दिन बाजरे की ठंडी रोटी तथा अंकुरित मोठ, मूंग, चने आदि ग्रहण किया जाता है तथा इन्हीं से बना प्रसाद चढ़ाने की परंपरा या प्रथा है।

 

पूजा विधि-

- बछ बारस पर्व या गोवत्स द्वादशी के दिन असली गाय और बछड़े की पूजा भी करती हैं।

- बछ बारस के दिन सुबह स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। 

- फिर दूध देने वाली गाय को बछड़े सहित स्नान कराएं, 

- फिर उनको नया वस्त्र चढ़ाते हुए पुष्प अर्पित करके तिलक करें। 

- कुछ जगहों या स्थानों पर लोग गाय के सींगों को सजाते हैं तथा तांबे के पात्र में इत्र, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर गौ का प्रक्षालन करते हैं। 

- गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं।  

- इस दिन पूजा के बाद गाय को उड़द से बना भोजन कराएं।

- गौ माता का पूजन करने के बाद बछ बारस की कथा सुनें। 

- सारा दिन व्रत करके गोधूलि में गौ माता की आरती करें। 

- मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर अपनी सास को दें। 

- उसके बाद भोजन ग्रहण करें।

 

अत: संतान की कामना एवं उसकी सुरक्षा के लिए किया जाने वाला यह व्रत है सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। व्रत के दिन शाम को बछड़े वाली गाय की पूजा करके तत्पश्चात कथा सुनने के बाद ही प्रसाद ग्रहण किया जाने की मान्यता है।

 

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