Ahoi ashtami 2024: अहोई अष्टमी की पूजा क्यों करते हैं? जानें सही तिथि और पूजा विधि


 

 

Ahoi Ashtami 2024 In Hindi : वर्ष 2024 में अहोई अष्‍टमी पर्व 24 अक्टूबर, दिन बृहस्पतिवार को मनाया जा रहा है। कैलेंडर के मतांतर के चलते 23 अक्टूबर को भी इसे मनाने की बात कहीं जा रही है, लेकिन आपको बता दें कि इस बार यह व्रत 24 अक्टूबर को ही रखा जाएगा।

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार करवा चौथ और अहोई अष्टमी व्रत महिलाओं के दो विशेष पर्व माने गए हैं। और इन दोनों त्योहारों में परिवार कल्याण की भावना निहित होती है तथा सासू मां के चरणों को तीर्थ मानकर उनसे आशीर्वाद लेने की प्राचीन परंपरा आज भी दिखाई देती है। अत: आज भी अहोई अष्‍टमी पर्व को भारतीय महिलाएं रीति-रिवाज से यह व्रत-उपवास करती हैं। आइए यहां जानते हैं अहोई अष्टमी व्रत और पूजन विधि के बारे में...


Highlights 

 

  • 2024 में कब हैं अहोई अष्टमी।
  • अहोई अष्टमी क्यों मनाते हैं।
  • अहोई अष्टमी माता की पूजा विधि क्या है।

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क्यों करते हैं अहोई अष्टमी पूजा : धार्मिक मान्यता के अनुसार अहोई अष्टमी की पूजा और व्रत संतान वाली महिला करती हैं। अर्थात् अहोई अष्टमी का व्रत छोटे बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है, जिसमें अहोई देवी के चित्र के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं। यह पर्व हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे अहोई अष्‍टमी पर्व कहा जाता है।

अहोई माता का यह व्रत दीपावली से ठीक एक सप्ताह पूर्व आता है। तथा इस दिन विशेष तौर पर मां पार्वती और अहोई माता का पूजन किया जाता हैं। यह व्रत निर्जला होता है, जिसमें पूरा दिन जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है। यदि व्रतधारी की तबीयत ठीक नहीं हो और निर्जला व्रत रखना संभव न हो, तो फल ग्रहण कर सकती हैं। अहोई अष्टमी की पूजा सूर्यास्त के बाद की जाती है। अत: इस व्रत का उद्देश्य अपने बच्चों की सलामती और लंबी उम्र, खुशहाली भरा जीवन तथा तरक्की हो इसी आशा के साथ महिलाएं निर्जला रहकर यह उपवास रखती हैं। 

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कैसे करें अहोई अष्‍टमी की पूजा, जानें विधि : 

 

• अहोई अष्‍टमी के दिन माताएं या जिन महिलाओं को व्रत करना होता है, वह दिनभर निर्जला उपवास रखती हैं।

 

• सायंकाल भक्तिपूर्वक दीवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं।

 

• उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार में अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं, उनको लाकर भी पूजा की जा सकती है।

 

• संध्या के समय सूर्यास्त होने के बाद जब तारे निकलने लगते हैं तो अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है।

 

• पूजन से पहले जमीन को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जल भरकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रखें और भक्तिभाव से पूजा करें।

 

• अपने बच्चों के कल्याण की कामना करें। साथ ही अहोई अष्टमी के व्रत कथा का श्रद्धा भाव से सुनें।

 

• कथा सुनने के बाद अहोई देवी से बच्चों की रक्षा की प्रार्थना करें।

 

• इस पूजा के लिए माताएं चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं, जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ भी कहते हैं और उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है।

 

• जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है, उसी प्रकार चांदी की अहोई डलवानी चाहिए और डोरे में चांदी के दाने पिरोने चाहिए।

 

• फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें।

 

• जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें, एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेंहू के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास के चरण छूकर उन्हें दे दें।

 

• इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें।

 

• सास को रोली तिलक लगाकर चरण स्पर्श करते हुए व्रत का पारण या उद्यापन करें।

 

• इतना ही नहीं इस व्रत पर धारण की गई माला/ अहोई को दिवाली के बाद किसी शुभ समय में गले से उतार कर तथा गुड़ से भोग लगा कर और जल से छीटें देकर मस्तक झुका कर रख दें।

 

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